क्या उत्तराखंड सरकार के पास जोशीमठ के लिए भविष्य का कोई रोडमैप है?

जोशीमठ में ज़मीन दरक रही है।उजड़ रहे आशियानों में सिर्फ चीत्कार सुनाई पड़ रही है।उत्तराखंड सरकार मुसीबत के मारे लोगों को भरोसा दे रही है।प्रधानमंत्री कार्यालय लगातार स्थिति पर निगाह बनाए हुए है।अब तक 65 परिवारों को शिफ्ट किया गया है

Janbhawana Times
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जोशीमठ में ज़मीन दरक रही है।उजड़ रहे आशियानों में सिर्फ चीत्कार सुनाई पड़ रही है।उत्तराखंड सरकार मुसीबत के मारे लोगों को भरोसा दे रही है।प्रधानमंत्री कार्यालय लगातार स्थिति पर निगाह बनाए हुए है।अब तक 65 परिवारों को शिफ्ट किया गया है जबकि 603 घरों में दरारें साफ नज़र आती है।वक्त बीतने के साथ इलाकाई वाशिंदों की सांसें थमती दिख रही हैं।
 
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक दिन पहले प्रभावित इलाकों का दौरा किया था।उन्होंने फोन पर प्रधानमंत्री को मौजूदा हालात से अवगत भी कराया। उस इलाके के कुछ लोगों का यहां तक कहना है कि ये हालात अचानक नहीं बने,बल्कि ये हालात तो 1970 से चल रहे हैं।पहले कभी-कभार ऐसी दरारें देखीं जाती थीं,मगर तत्कालीन सरकारों ने इस पर ध्यान नहीं दिया।इस बीच जब एक के बाद एक तमाम घरों और कार्यालयों में दरारें देखीं गयी,जमीन धंसते दिखी तब जाकर प्रशासन के कान खड़े हुए।
 
पर्यावरण मामलों के कुछ जानकार इसका एक कारण 16216 करोड़ की लागत से तैयार हो रही 125 किमी लंबी ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक तैयार हो रहे रेल प्रोजेक्ट को बता रहे हैं। 105 किमी रेल लाइन 17 सुरंगों के भीतर से होकर गुजरेगी।इन सुरंगों को बनाने के लिए गहरी खुदाई की गयी जिससे पहाड़ कमज़ोर हो गये हैं।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना को तय समय पर धरातल पर उतारने के लिए रेल विकास निगम ने पूरी ताकत झोंक दी है।
 
हिमालयी क्षेत्र के विषम भूगोल में तैयार हो रही इस परियोजना पर कुल 213 किमी सुरंग बननी हैं ।जाहिर है इससे भी इलाके में असर पड़ा है और फिर अतीत में केदार घाटी में हुए जल प्रलय की खौफनाक घटना को लोग अभी तक भूल नहीं पाए हैं।इसके बाद भी ये पहाड़ी इलाका अनिश्चित मौसम की मार झेलता आया है।कुछ लोगों का तो यहां तक कहना है कि कोविड के बाद शुरू हुई चारधाम यात्रा की वजह से भी पहाड़ कमजोर हुए हैं।क्योंकि ये यात्रा दो साल तक रुकी रही और जब ये शुरू हुई तो रिकॉर्ड संख्या में पर्यटक और श्रद्धालुओं ने अपने वाहनों से यहां का रुख किया।इस वजह से भी इलाके में दबाव बढ़ा।
 
पहाड़ों में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी जमीन दरकने का एक बड़ा कारण हो सकता है।पेड़ों की लगातार कटाई से भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं।इस स्थिति पर पर्यावरण प्रेमी और भूगर्भशास्त्री लगातार चिंता व्यक्त करते रहे हैं।अगर इस इलाके को बचाना है तो अनियोजित विकास को रोकना पड़ेगा।
 
पहाड़ों में मौसम काफी अनिश्चित रहता है।फिलहाल मौसम काफी ठंडा है और स्थानीय लोग मुसीबत से दो चार हैं।अगर आगामी दिनों में बारिश होती है तो हालात बिगड़ सकते हैं।अभी जहां -जहां जमीन धंस रही है वहां की मिट्टी बारिश होते ही गीली और कमजोर हो जाएगी।इसके बाद स्थिति के खराब होने का अंदेशा है।फिलहाल तो लोग ईश्वर से दुआ कर रहे हैं कि जोशीमठ और आसपास के इलाकों में बारिश ना हो। जहां तक सरकार का प्रश्न है वह लोगों को राहत तो प्रदान कर रही है पर सवाल यही है कि जिन 4 हजार परिवारों पर संकट है उनके भविष्य का क्या होगा,उनके परिवार और बच्चों के भविष्य का क्या होगा।क्या सरकार के पास जोशीमठ के लिए भविष्य का कोई रोडमैप है?ये सवाल आज हर कोई पूछ रहा है।
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09 January 2023, 01:21 PM IST

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