हरियाणा में बीजेपी का जलवा, दुष्यंत चौटाला का सपना चूर, JJP का खाता खुलने से भी रहा दूर!

हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में बीजेपी ने तीसरी बार सरकार बनाने में सफलता हासिल की है लेकिन कांग्रेस ने नतीजों पर सवाल उठाए हैं, alleging EVM tampering. दुष्यंत चौटाला, जो पिछली बार किंगमेकर बने थे इस बार अपनी सीट उचाना कलां से हार गए हैं. उनके लिए यह एक बड़ा झटका है क्योंकि उन्होंने खुद को चौधरी देवीलाल की विरासत का धनी माना है. क्या दुष्यंत अपनी पार्टी को फिर से खड़ा कर पाएंगे या उन्हें इंडियन लोक दल में लौटने पर विचार करना होगा? जानिए पूरी कहानी!

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Edited By: JBT Desk

Dushyant Chautala defeat: हरियाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद एक नाम जो सुर्खियों में है, वो है दुष्यंत चौटाला. जन नायक जनता पार्टी (JJP) के प्रमुख और पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत ने इस बार उचाना कलां सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन चुनाव परिणाम उनके लिए निराशाजनक रहे. उन्हें अपनी सीट बचाने में नाकामी मिली और उनका खाता भी नहीं खुला. इससे हरियाणा की राजनीतिक स्थिति में कई सवाल खड़े हो गए हैं.

चुनावी मैदान में दुष्यंत का सफर

दुष्यंत चौटाला ने पिछले चुनाव में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और चार साल तक डिप्टी सीएम रहे. उस समय उन्होंने अपनी पार्टी को आगे बढ़ाने का दावा किया, लेकिन इस बार चुनावी मैदान में उनका प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा. उचाना कलां सीट पर बीजेपी के देवेंद्र चतरभुज अत्री ने महज 39 वोटों से जीत हासिल की जबकि दुष्यंत चौटाला को छठे स्थान पर रहना पड़ा. यह न केवल उनके लिए बल्कि उनकी पार्टी के लिए भी बड़ा झटका है.

जाट वोटर्स का समर्थन और स्थिति

दरअसल हरियाणा में जाट वोटर्स की भूमिका काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. दुष्यंत चौटाला ने हमेशा खुद को जाट समुदाय का सच्चा प्रतिनिधि बताया है. लेकिन इस बार जब जाट वोटर्स ने बीजेपी को समर्थन दिया तो चौटाला को क्यों नहीं मौका मिला? यह सवाल उनकी राजनीतिक रणनीति पर बड़ा सवालिया निशान लगाता है. इससे एक बात तो साफ तौर पर स्पष्ट है कि मतदाताओं ने सीधे बीजेपी और कांग्रेस के बीच अपनी पसंद चुन ली और दुष्यंत की ओर से अनदेखी की है.

चौटाला परिवार की राजनीतिक विरासत

चौटाला परिवार का हरियाणा की राजनीति में एक लंबा इतिहास रहा है. दुष्यंत चौटाला, चौधरी देवीलाल के पोते हैं और हमेशा से उनकी राजनीतिक विरासत का दावा करते रहे हैं. लेकिन इस बार उनके लिए स्थिति जटिल हो गई. उचाना कलां सीट पर, जहां से उनकी राजनीतिक पृष्ठभूमि भी जुड़ी हुई है उन्हें हार का सामना करना पड़ा. इससे यह सवाल उठता है कि क्या परिवार की राजनीतिक विरासत अब कमजोर हो रही है.

भविष्य की राह

अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि दुष्यंत चौटाला और उनकी पार्टी आगे क्या कदम उठाएंगे. क्या वे अपनी पार्टी को फिर से मजबूत कर पाएंगे या फिर परिवार के भीतर के मनमुटाव उन्हें और कमजोर कर देंगे? क्या उन्हें बीजेपी के साथ फिर से गठबंधन करने का विचार करना चाहिए या खुद को पूरी तरह से अलग कर लेना चाहिए? इन सभी सवालों का उत्तर अगले कुछ महीनों में स्पष्ट होगा.

हरियाणा की राजनीति में दुष्यंत चौटाला की हार ने यह दिखाया है कि समय के साथ बदलाव की आवश्यकता है. चुनावी नतीजे न केवल उनकी राजनीतिक पहचान को चुनौती देते हैं, बल्कि यह भी साबित करते हैं कि जनता की आकांक्षाएं समय के साथ बदलती हैं. अब दुष्यंत को यह सोचने की जरूरत है कि आगे का रास्ता क्या होगा और कैसे वे अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत कर सकते हैं.

इस चुनाव ने यह भी साबित किया है कि जाट वोटर्स की सोच अब बीजेपी और कांग्रेस के बीच सिमट गई है. अगर दुष्यंत चौटाला अपनी पार्टी को पुनर्जीवित करना चाहते हैं तो उन्हें नए सिरे से रणनीति बनानी होगी. 

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08 October 2024, 08:33 PM IST

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