बटेंगे तो कटेंगे: योगी का नारा और जातीय उभार की चुनौती

योगी आदित्यनाथ का 'बटेंगे तो कटेंगे' नारा हिंदी पट्टी में जातीय उभार को चुनौती देने के लिए उठाया गया है. संघ और बीजेपी इसे एकजुटता का प्रतीक मान रहे हैं, जबकि पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) का प्रभाव चुनावों में बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा कर चुका है. इस नारे के पीछे की रणनीति और संघ की बैठकें भी चर्चा का विषय हैं. क्या यह नारा पीडीए के प्रभाव को कम कर पाएगा? जानने के लिए पूरी खबर पढ़ें!

JBT Desk
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Yogi Adityanath Slogan: हिंदी पट्टी में जातीय उभार के बीच, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का 'बटेंगे तो कटेंगे' नारा एक नया मोड़ ले रहा है. इस नारे को भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) द्वारा जातीय विभाजन को रोकने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. यह सवाल उठता है कि क्या यह नारा पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के उभार को कमजोर कर पाएगा?

संघ का समर्थन

योगी के इस नारे का समर्थन संघ के सरकार्यवाह दतात्रेय होसबाले ने भी किया है. उनका कहना है कि अगर अगड़ा और पिछड़ा जाति और भाषा के आधार पर भेद करेंगे, तो हम कटेंगे. इतिहास ने हमें यही सिखाया है कि हिंदुओं का एकजुट होना जरूरी है. उनके इस बयान के बाद, यह साफ हो गया है कि आने वाले समय में इस नारे की गूंज और भी अधिक सुनाई दे सकती है.

पीडीए की चुनौतियां

2024 के लोकसभा चुनाव में पीडीए ने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया है. यूपी, राजस्थान, हरियाणा और बिहार जैसे राज्यों में जातीय गोलबंदी ने बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. कई जगहों पर, बीजेपी की सीटें इंडिया गठबंधन से भी कम थीं. इस जातीय गोलबंदी के कारण पार्टी को चुनाव में केवल 240 सीटों पर जीत मिली, जो पिछले चुनावों की तुलना में काफी कम है.

जातीय जनगणना की मांग

हिंदी पट्टी में जातिगत जनगणना और हिस्सेदारी की मांग अभी भी जोर पकड़ रही है. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव अपनी पीडीए रणनीति को और मजबूत कर रहे हैं. वे गांवों में पीडीए पंचायत आयोजन करने की योजना बना रहे हैं, जबकि कांग्रेस दलित वोटरों को साधने के लिए संविधान सम्मेलन का आयोजन कर रही है.

बटेंगे तो कटेंगे का फॉर्मूला

बीजेपी ने बटेंगे तो कटेंगे के फॉर्मूले के जरिए पीडीए के प्रभाव को कमजोर करने का प्रयास किया है. योगी आदित्यनाथ ने पहली बार इस नारे का इस्तेमाल आगरा की एक रैली में किया था. इसके पीछे एक विशेष रणनीति है, जिसे बीजेपी ने तैयार किया है.

सूत्रों के मुताबिक, इस नारे की स्क्रिप्टिंग जून 2024 के बाद से शुरू हो गई थी. आरएसएस के 23 विचारकों की एक मीटिंग में यह चर्चा की गई थी कि हिंदी पट्टी से जातीय उभार को कैसे खत्म किया जाए. इस बैठक के कुछ समय बाद ही योगी ने इस नारे का प्रयोग किया.

'बटेंगे तो कटेंगे' का नारा अब बीजेपी और संघ की एकता का प्रतीक बन गया है. यह नारा जातीय उभार के खिलाफ एकजुटता का आह्वान करता है. अगर बीजेपी इस नारे के जरिए जातीय विभाजन को रोकने में सफल होती है, तो इसका चुनावी परिणाम पर बड़ा असर पड़ सकता है. लेकिन क्या यह नारा पीडीए के उभार को रोक पाएगा? यह तो भविष्य ही बताएगा.

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27 October 2024, 12:02 AM IST

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