क्या नीतीश कुमार मुस्लिम वोटों से दूरी बना रहे हैं? जानें वक्फ बिल के बाद बिहार की राजनीति में क्या है नया मोड़!
बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ आया है. वक्फ बिल के समर्थन के बाद नीतीश कुमार को मुस्लिम वोटों का खतरा बढ़ता दिख रहा है. इस बिल के पारित होने से JDU में मुस्लिम नेताओं के इस्तीफे का सिलसिला शुरू हो गया है और यह सवाल उठने लगा है कि क्या नीतीश कुमार मुस्लिम वोटों से दूरी बना रहे हैं? जानिए पूरी कहानी!

Bihar Politics: बिहार की राजनीति हमेशा से मुस्लिम और यादव समुदायों के बीच के गठजोड़ पर निर्भर रही है, जिसे आमतौर पर 'MY फैक्टर' के नाम से जाना जाता है. लेकिन अब बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले, वक्फ विधेयक के पारित होने के बाद यह सवाल उठने लगा है कि क्या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मुस्लिम वोटों से दूरी बना रहे हैं. हाल ही में वक्फ विधेयक पारित होने के बाद मुस्लिम नेताओं के पार्टी छोड़ने के कारण ये सवाल और भी अहम हो गए हैं.
वक्फ बिल पर नीतीश कुमार का समर्थन
पिछले कुछ दिनों में वक्फ (संशोधन) विधेयक पर नीतीश कुमार का समर्थन जेडीयू में असंतोष का कारण बना है. जब से यह विधेयक संसद से पारित हुआ है, पार्टी के तीन प्रमुख मुस्लिम नेताओं ने इस्तीफा दे दिया है. इन नेताओं में पूर्वी चंपारण से मोहम्मद कासिम अंसारी, जमुई से नवाज मलिक और मोहम्मद तबरेज सिद्दीकी शामिल हैं. इन इस्तीफों ने नीतीश कुमार के मुस्लिम समर्थक रुख को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं.
मुस्लिम वोटों का महत्व
बिहार में मुस्लिम समुदाय की संख्या लगभग 17.7% है और ये पारंपरिक रूप से महागठबंधन खासकर RJD के समर्थन में रहे हैं. बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम और यादव समुदायों का वोट महागठबंधन के पक्ष में निर्णायक साबित हुआ था. हालांकि, 2020 के बाद मुस्लिम वोटों में बंटवारा हुआ है, और इसका फायदा एआईएमआईएम जैसी पार्टियों को भी हुआ है.
नीतीश की स्थिति
नीतीश कुमार, जो पहले मुस्लिम वोटों का समर्थन करने के लिए जाने जाते थे, अब अपनी पार्टी के भीतर के विवादों के कारण मुश्किलों का सामना कर रहे हैं. हालांकि जेडीयू के प्रवक्ता राजीव रंजन ने इस बात से इनकार किया कि इस्तीफा देने वाले नेताओं का पार्टी से कोई खास रिश्ता था, लेकिन यह स्पष्ट है कि वक्फ विधेयक के समर्थन ने नीतीश कुमार की मुस्लिम समर्थक छवि को नुकसान पहुंचाया है.
बिहार के मुस्लिम वोट: बदलते समीकरण
बिहार के मुस्लिम वोट हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं, खासकर सीमांचल क्षेत्र में जहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है. लेकिन अब यह देखा जा रहा है कि मुस्लिम वोटों में विभाजन हो रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों की संख्या में गिरावट आई थी और 2020 में सिर्फ 19 मुस्लिम विधायक चुनाव जीतने में सफल रहे थे. इसका मुख्य कारण यह है कि मुस्लिम समुदाय के वोटों में विभाजन हो रहा है, जिससे राजनीतिक समीकरण बदल रहे हैं. नीतीश कुमार के साथ-साथ विपक्षी दल भी इस विभाजन को अपनी रणनीति का हिस्सा बना रहे हैं.
क्या नीतीश कुमार मुस्लिम वोट बैंक खो रहे हैं?
नीतीश कुमार के लिए यह एक चुनौतीपूर्ण समय है. उनके लिए मुस्लिम-ओबीसी-ईबीसी समीकरण विधानसभा चुनावों में तभी काम करेगा जब वे लालू यादव के साथ गठबंधन में रहेंगे. अगर मुस्लिम वोटों का बंटवारा और बढ़ता है तो नीतीश कुमार के लिए चुनावी मैदान में एक स्थिर वोट बैंक जुटाना और भी मुश्किल हो सकता है.
बिहार की राजनीति में मुस्लिम और यादव समुदाय का वोट महत्वपूर्ण होता है. नीतीश कुमार के वक्फ बिल पर समर्थन के कारण मुस्लिम वोटों का बंटवारा बढ़ सकता है, जो उनके लिए चुनावी चुनौती पैदा कर सकता है. इसके बावजूद, नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को यह समझना होगा कि अगर वे मुस्लिम वोटों को खोते हैं, तो उनका चुनावी भविष्य खतरे में पड़ सकता है.