उमर अब्दुल्ला के लिए आसान नहीं गांदरबल का रण, इश्फाक जब्बार बढ़ाएंगे चुनौती

Jammu and Kashmir  Assembly Elections 2024: जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने वाला है. यहां एनसी 52 सीटों पर और कांग्रेस 31 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. प्रदेश के गांदरबल सीट से नेकां के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला चुनावी मैदान में उतरे हैं. हालांकि इस सीट से चुनाव लड़ना उनके लिए आसान नहीं है. इस सीट से उन्हें पहले भी दो बार हार का सामना करना पड़ा है और इस बार भी उनके लिए इश्फाक जब्बार चुनौती साबित हो सकते हैं.

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Jammu and Kashmir  Assembly Elections 2024: जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दल प्रचार -प्रसार में जुटे हैं. नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला गांदरबल क्षेत्र से चुनावी मैदान में उत्तर उतरे हैं. उमर के दादा और पिता भी इसी क्षेत्र से प्रतिनिधित्व कर चुके हैं लेकिन बदलते युग और परिवेश और आकांक्षाओं के मध्य इस बार चुनाव में उनकी राहें कठिन नजर आ रही है.

भले ही यह चुनावी क्षेत्र उनका पारिवारिक गढ़ माना जाता है लेकिन इस बार उनके सामने कई चुनौतियां खड़ी है जो उनके जीते के आड़े आ सकती है. उनके सामने पीडीपी के उम्मीदवार चुनौती बनकर खड़ी है. उमर अब्दुल्ला को न सिर्फ पीडीपी के उम्मीदवार से टक्कर का सामना करना पड़ेगा बल्कि अपने पुराने साथी से इशफाक जब्बार से भी चुनौती मिल सकती है. इसके अलावा उनके सामने स्थानीय मतदाताओं के सवाल भी एक चुनौती बनकर खड़ी है.

गांदरबल क्षेत्र का इतिहास

गांदरबल क्षेत्र की बात करें तो 16 साल पहले तक यह श्रीनगर जिले का हिस्सा था और एक मजबूत गढ़ माना जाता था. इस क्षेत्र ने तीन-तीन मुख्यमंत्री प्रदेश को दिए हैं. नेकां के संस्थापक और उमर अब्दुल्ला के दादा शेख मोहम्मद 1977 में यहां से चुनाव लड़े थे और जीते दर्ज की थी. उमर अब्दुल्ला के पिता डॉक्टर फारूक अब्दुल्ला साल 1983, 1987 और 1996 में इसी क्षेत्र से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे लेकिन उमर के लिए यह रन कभी भी इतना आसान नहीं रहा.

उमर अब्दुल्ला के सामने कई चुनौतियां 

उमर अब्दुल्ला को पहले दो बार चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. साल 2002 में वह इस क्षेत्र से चुनाव लड़े थे लेकिन पीडीपी की लहर में हार गए. पीडीपी के काजी अफजल ने उमर को हराकर उस वक्त सबको हैरान कर दिया था. साल 2008 में फिर यहीं से उमर चुनावी मैदान में उतरे लेकिन इस बार उन्होंने जीत दर्ज किया और मुख्यमंत्री भी बने. हालांकि, साल 2014 में शेख इश्फात की जिद के कारण उमर ने गांदरबल क्षेत्र को छोड़ दिया और सोनवार और बीरवार से चुनाव लड़े. इश्फात ने नेकां के टिकट पर 2014 का चुनाव लड़ा और जीता था. उमर अब फिर गांदरबल से चुनाव लड़ने जा रहे हैं लेकिन इस बार उनके सामने एक नहीं बल्कि कई चुनौतियां हैं.

युवाओं की सोच अलग

दरअसल, उमर अब्दुल्ला के लिए गांदरबल का रण इसलिए आसान नहीं है क्योंकि, यहां की युवाओं की सोच अब पहले जैसी नहीं रही. राजनीतिक मामलों के जानकार बिलाल बशीर का कहना है कि 5 अगस्त 2019 के बाद से यहां की स्थिति काफी बदल चुकी है. बुजुर्ग मतदाताओं का जुड़ाव अभी भी पार्टी के साथ है लेकिन युवाओं की सोच इन सब से अलग है. वे अन्य दल में भी रुचि लेते हैं.

स्थानीय लोगों के मुद्दे

इसके अलावा स्थानीय लोगों के मुद्दे भी उमर अब्दुल्ला के लिए चुनौती बनकर खड़ी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि उमर यहीं से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बने थे लेकिन उन्होंने क्षेत्र के लिए कोई काम नहीं किया. लोगों का कहना है कि वह छह वर्ष तक मुख्यमंत्री थे अगर वो चाहते तो पूरे इलाके का कायाकल्प कर सकते थे. गांदरबल में पुरातत्व महत्व के कई स्थान हैं, मंदिर हैं, इस पूरे इलाके में पर्यटन की अपार संभावना है,लेकिन इसके लिए उन्होंने कुछ नहीं किया. स्थानीय लोगों का कहना है कि आज भी इस क्षेत्र  में सड़कों की स्थिति अत्यंत दयनीय है. बिजली,पानी और स्वास्थ्य सेवा जैसी मौलिक सुविधाओं का अभाव है.

ये भी है चुनौतियां

गांदरबल में पीडीपी का अपना खासा वोट बैंक है. उमर के पुराने साथी शेख इश्फाक जब्बार जम्मू कश्मीर यूनाइटेड मूवमेंट संगठन बनाकर चुनावी मैदान में हैं. वह गांदरबल के हैं और उमर के लिए ही परेशानी पैदा करेंगे. लोग अनुच्छेद 370 और आटोनामी के भावनात्मक मुद्दों पर पर वोट नहीं देंगे. अगर नेकां रोजगार और विकास का मुद्दा उठाती है तो मतदाता उनसे ही सवाल करेंगे. उमर के विरोधी भी इसे उछालेंगे.

First Updated : Wednesday, 04 September 2024