दिल्ली सरकार को लगातार दरकिनार कर रहे एलजीः मनीष सिसोदिया
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मंगलवार को कहा कि उपराज्यपाल वीके सक्सेना और दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है। जहां गंभीर अपराध करने के आरोपी लोग छुटकारा पाकर बच सकते हैं।
रिपोर्ट। मुस्कान
नई दिल्ली। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मंगलवार को कहा कि उपराज्यपाल वीके सक्सेना और दिल्ली के मुख्य सचिव नरेश कुमार ने एक ऐसी स्थिति पैदा कर दी है। जहां गंभीर अपराध करने के आरोपी लोग छुटकारा पाकर बच सकते हैं।
मनीष सिसोदिया ने कहा कि राज्य के खिलाफ किए गए अपराधों के लिए अभियोजन स्वीकृति राज्य सरकार द्वारा दी जानी चाहिए। सिसोदिया ने कहा कि कई जघन्य अपराध इसी श्रेणी में आते हैं। दिल्ली सरकार के विधि विभाग के अनुसार इस कानून में राज्य सरकार का अर्थ निर्वाचित सरकार है। इसका मतलब यह है कि प्रभारी मंत्री ही सक्षम प्राधिकारी है और इन सभी मामलों में मंत्री की स्वीकृति ली जानी चाहिए थी। उन्होंने कहा कि मंत्री की स्वीकृति लेने के बाद यह तय करने के लिए फ़ाइल एलजी को भेजी जाएगी कि क्या वह मंत्री के फैसले से अलग है और क्या वह इसे भारत के राष्ट्रपति को संदर्भित करना चाहते हैं।
सिसोदिया ने मुख्य सचिव को ऐसे सभी मामलों की सूची पेश करने का निर्देश दिया। जहां एलजी के कार्यालय द्वारा मंजूरी दी गई थी, लेकिन प्रभारी मंत्री से मंजूरी नहीं ली गई थी। सिसोदिया ने कहा कि कुछ महीने पहले तक यही प्रक्रिया अपनाई जा रही थी। हालांकि, पिछले कुछ महीनों में मुख्य सचिव ने मंत्री को दरकिनार करते हुए इन सभी फाइलों को सीधे उपराज्यपाल को भेजना शुरू कर दिया।
डिप्टी सीएम ने कहा कि एलजी को इन सभी मामलों में अनुमोदन दिया। हालांकि वे अनुमोदन प्राधिकारी नहीं हैं। इसलिए पिछले कुछ महीनों में ऐसे सभी आपराधिक मामलों में अभियोजन पक्ष के लिए दी गई मंजूरी अमान्य है। जब आरोपी इस बिंदु को अदालत में उठाएंगे तो उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। सीआरपीसी की धारा 196 (1) के तहत, राज्य सरकार से अभियोजन के लिए वैध मंजूरी कुछ अपराधों के लिए एक शर्त है। इसमें अभद्र भाषा, धार्मिक भावनाओं को आहत करना, घृणा अपराध, राजद्रोह, राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ना, दुश्मनी को बढ़ावा देना आदि जैसे अपराध शामिल हैं।
डिप्टी सीएम ने कहा कि एलजी की कार्रवाइर् न केवल माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून को कमजोर करती हैं बल्कि न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता को भी कम करती हैं। जो कानूनी रूप से स्थायी अभियोजन के लिए एक वैध मंजूरी के रूप में एक आवश्यक शर्त के रूप में विफल होने के लिए गति में स्थापित की जा रही है। सिसोदिया ने कहा कि निर्वाचित राज्य सरकार को दरकिनार कर दी गई मंजूरी से बचने योग्य कमी है, जिसका अपराधियों द्वारा अपने लाभ के लिए फायदा उठाया जा सकता है।