मध्यप्रदेश: डर के साये में पढ़ने को मजबूर बच्चे, 20 साल पुराने जर्जर भवन में पढ़ने को मजबूर बच्चे, शिकायत के बाद भी नहीं हुआ समाधान
शिक्षा विभाग के विकास की पोल खोलती यह खबर ठीक उसी तरह से है, जैसे तोते की जान पिंजरे में अटकी रहती है। वैसे ही शिक्षकों के साथ मासूम बच्चों की जान जर्जर भवन में अटकी हुई है
संबाददाता- चन्द्रभान सिंह देवड़ा (मध्यप्रदेश)
मध्यप्रदेश: शिक्षा विभाग के विकास की पोल खोलती यह खबर ठीक उसी तरह से है, जैसे तोते की जान पिंजरे में अटकी रहती है। वैसे ही शिक्षकों के साथ मासूम बच्चों की जान जर्जर भवन में अटकी हुई है। और शिक्षा विभाग के जवाबदार वर्षों से डायस में जानकारी देकर बरी हो रहे हैं।
पंचायतो के सचिव, इंजीनियर सहित छोटे से बड़े तक के सभी जवाबदार आखों के अंधे भ्रष्टाचार के खेल के खिलाड़ी जहां खेल खत्म होने पर ताली बजाई जाती है बस उसी दिन का इंतजार है। कि किस दिन कोई बड़ा हादसा हो और किसी का खेल खत्म हो।
जनभावना टाइम्स की टीम ने खाचरोद ब्लॉक के आखरी सीमा पर स्थित स्कूलों का दौरा किया, जहां सरकार के मुखिया और उनके जवाबदार नुमाइंदों के शिक्षा के लिए किए गए, विकास कार्यों के विकास की पोल खोल दी। नापाखेड़ी पंचायत का गांव ब्राह्मण खेड़ी जहां शिक्षा भवन के लिए दान दी गई जमीन पर भवन (2004) बना देखा जो बनने से पहले ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया।
एक और जहां गरीब किसान और मजदूरों के बच्चे जिनके अभिभावक भी मजबूर होकर बच्चों को स्कूल तो भेज रहे हैं, तो दूसरी ओर स्कूल के भवन को देखते हुए जब तक उनके बच्चे लौटकर घर नहीं आ जाते तब तक ये डर उनको लगा रहता है कि कहीं कोई हादसा न हो जाए। दरअसल स्कूल में मात्र 19 बच्चों के साथ 2 शिक्षकों के बैठने के लिए जो भवन है वो एकदम जर्जर स्थिति में है, जो कभी भी बड़े हादसे में तब्दील हो सकता है। ऐसे में हर वक़्त खतरा मासूम बच्चों और शिक्षकों के सर पर मड़रा रहा है।
नापाखेड़ी पंचायत का ही दूसरा गांव पल्याखुर्द का स्कूल भवन जहां 38 बच्चों के साथ मात्र 1 शिक्षक और एक अतिथि है, कुल मिलाकर 40 जिंदगियां दांव पर लगी हुई है, जहां कभी-कभार अधिकारियों का दौरा तो होता है, लेकिन सिर्फ आश्वासन देकर, खतरे से पल्ला झाड़ निकल लेते हैं।
पंचायत नापाखेड़ी मे भी शिक्षा भवन की हालत एकदम जर्जर है, जहां गांव के सरपंच और सचिव का रोज दौरा होता है। ऐसे ही हाल संकुल भवन घिनोदा का भी है जहां संकुल अधिकारी का भवन भी जर्जर हो रहा है। ऐसे कितने ही गांव है, जहां शिक्षा भवन की राशि को बंदरबांट कर भ्रष्टाचार हुआ है और शिक्षा का स्तर और देश का भविष्य दोनों आज खतरे से बाहर नहीं है।
साथ ही साथ भवनों के निर्माण कार्य से लेकर मध्यान भोजन में भी डाका डाल रहे है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि पिछले कई सालों में इस तरह के स्कूल भवनों में मासूमो की जान खतरे में है, और जवाबदारों के पास कोई ठोस जवाब नहीं मिलता। आखिर कौन दोषी है, इन हालातों के जहां शिक्षा भी भय के साये में मिल रही है, हमने जवाबदारों से जवाब मांगा लेकिन अभी तक कोई ठोस जवाब नहीं मिला।