मध्य प्रदेश: ग्वालियर में सिर्फ दिवाली ही नहीं होली पर भी होती रामलीला, सजाया जाता है मन्नतों का दरबार

दिवाली के आसपास रामलीला के मंचन की आवाज या फिर खबर कानों तक पहुंचे तो सामान्य बात लगती है। लेकिन बात जब होली पर रामलीला मंचन होने की होती है दिमाग में एकसाथ कई सवाल उठते हैं। बता दें कि इस परंपरा को कायम रखे हुए है

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दिवाली के आसपास रामलीला के मंचन की आवाज या फिर खबर कानों तक पहुंचे तो सामान्य बात लगती है। लेकिन बात जब होली पर रामलीला मंचन होने की होती है दिमाग में एकसाथ कई सवाल उठते हैं। बता दें कि इस परंपरा को कायम रखे हुए है, अविभाजित हिंदुस्तान के ग्वालियर संभाग के झंग जिले के रसीदपुर गांव से आए झंग बिरादरी के सदस्य।

इन लोगों ने ग्वालियर आने के बाद अपनी परंपरा और संस्कृति को संजोकर रखा हुआ है। होली पर आठ दिन के महोत्सव के तहत रसीदपुर गांव में धार्मिक नाटकों के मंचन के साथ यह सिलसिला आजादी के पूर्व शुरू हुआ था। ग्वालियर आने के बाद रामलीला का मंचन भी इसमें जुड़ गया। बता दें कि नाटकों के साथ सबसे पहले धनुष यज्ञ का मंचन किया था।

लेकिन अब रामलीला के साथ मंचन किया जाता है। इस रामलीला की विशेषता यह है कि मंचन के लिए बाहर से किसी मंडली को नहीं बुलाया जाता है। परंपरागत रूप से रामलीला के सभी पात्र समिति से जुड़े लोग पीढ़ी दर पीढ़ी निभाते आ रहे हैं।

यह सिलसिला जीविका के लिए शुरू हुआ था -

वहीं सहयोगी पंजाबी सेवा समिति के अध्यक्ष मोहनलाल अरोरा के मुताबिक पूर्वजों ने यह बताया था कि पहले वर्तमान में भी रंग और गुलाल उड़ना होली के सात दिन पहले से प्रारंभ हो जाता था। होली के त्योहार की उमंग में काम और धंधा भी ठंडा रहता था। उन्होंने बताया कि रसीदपुर गांव में युवा पीढ़ी को नशे से दूर रखने के लिए होली पर प्रतिदिन भक्त प्रहलाद और राजा हरिश्चंद्र जैसे नाटकों का मंचन किया जाता था।

वहीं बंटवारे के बाद कई परिवार यहां आकर बस गए, मगर झंग बिरादरी ने यहां पर भी होली की इस परंपरा को नहीं छोड़ा। बता दें कि नाटकों के मंचन में विभिन्न पात्र में केवल समाज के लोग ही अभिनय करते थे। वहीं समय के साथ बदलाव हुआ और नाटकों के साथ रामलीला का मंचन एक अलग अंदाज में होने लगा।

बिरादरी के कई सदस्य काम और धंधे के लिए विदेश के अलावा अन्य कई शहरों में चले गए, मगर होली पर सभी लोग सब काम छोड़ रामलीला में भाग लेने चले आते हैं और वे सभी अभिनय भी करते हैं। बता दें कि रामलीला का समापन चल समारोह के साथ होता है। रामलीला में खुद मोहनलाल अरोरा भरत और रावण का पात्र अभिनीत करते हैं।

लगभग 116 साल से मंचन हो रहा है -

बता दें कि ग्वालियर में 115 साल पहले वर्तमान अविभाजित झंग जिले के रसीदपुर गांव में होली पर युवाओं को नशे से दूर रखने के लिए नाटकों का मंचन शुरू किया गया था। वहीं बंटवारे के बाद भारत आ रहे झंग बिरादरी के लोग भले ही भौतिक चीजें न ला पाए हों, मगर वे यह अनूठी संस्कृति और विरासत अपने साथ लेकर आ गए। सिर्फ यहीं नहीं इस संस्कृति और विरासत का समृद्ध रूप में आज भी निर्वाह किया जाता है।

वहीं झंग बिरादरी की तीसरी पीढ़ी आज भी इस विरासत को संजोकर हुए है। देश भर में अधिकतर स्थानों पर दशहरे के आसपास रामलीला का मंचन शुरू होता है। लेकिन झंग बिरादरी द्वारा ग्वालियर में होली से सात दिन पहले शिवाजी मार्ग (जिंसी नाला नंबर-1) पर स्थित बाजार में आरक्षित लगभग 400 वर्गफीट की जगह में रामलीला का मंचन शुरू कर दिया जाता है।

रामलीला का समापन भाई दूज पर होता है -

बता दें कि भाई दूज पर राम दरबार सजने के साथ इसका समापन होता है और इसको मन्नतों का दरबार भी माना जाता है। मन्नत भी एक अलग तरीके से मांगी जाती है। बिरादरी के इसके लिए लोग देश और विदेश के अलग- अलग हिस्सों से ग्वालियर आते हैं।

वहीं पंजाबी समाज से ताल्लुक रखने वाली झंग बिरादरी के लालचंद्र मदान, बुढ़ाराम बैरी, भगवानदास मिगलानी और चिम्मनलाल मदान के साथ आधा सैकड़ा से ज्यादा परिवार यहां पर आए थे। झंग बिरादरी ने रोजी- रोटी के संघर्ष के साथ अपनी विरासत को भी संजोकर रखा और उसे बढ़ाया। बता दें कि आदर्श रामलीला समिति के बैनर तले रामलीला का मंचन किया जाता है। First Updated : Saturday, 04 March 2023

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