मध्य प्रदेश: वर्ष 1971 भारत-पाक युद्ध, जब भारत ने कर दिए पाकिस्तान के दो टुकड़े
भारतीय नौसेना के रिटायर्ड कमांडर एसके मिश्रा व भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर डीपी तिवारी इंदौर के वो योद्धा हैं जिन्होंने इस युद्ध में दुश्मनों से लोहा लिया था
Vijay Diwas 2022: इंदौर। वर्ष 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध की स्मृति में 16 दिसंबर को विजय दिवस मनाया जाता है। इस युद्ध में शौर्य दिखाने वाले सेना के जांबाजों में इंदौर के योद्धा भी शामिल थे। भारतीय नौसेना के रिटायर्ड कमांडर एसके मिश्रा व भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर डीपी तिवारी इंदौर के वो योद्धा हैं जिन्होंने इस युद्ध में दुश्मनों से लोहा लिया था। तो आइए जानते हैं युद्ध की कहानी उनकी जुबानी…
युद्ध लड़ने का मौका लेफ्टिनेंट बनते ही मिला -
भारतीय नौसेना के कमांडर रह चुके एसके मिश्रा ने बताया कि वर्ष 1971 में उनकी बतौर पोस्टिंग लेफ्टिनेंट नौसेना की पश्चिमी कमान आईएनएस मैसूर में हुई थी। हमारे जहाजों ने 4 दिसंबर को कराची पर हमला किया था और हमारी मिसाइलों ने पाकिस्तान के बड़े-बड़े जहाजों को नष्ट किया था।
इसी दौरान पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस हेंगोर ने 9 दिसंबर 1971 में आईएनएस खुखरी को युद्ध के दौरान टारपीडो से नष्ट किया था और इस हमले में करीब 100 जवान शहीद हुए थे। वहीं आईएनएस मैसूर पर मौजूद हमारी टीम ने रेस्क्यू ऑपरेशन चलाकर आईएनएस खुखरी पर मौजूद जवानों को बचाया था। फिर इसके बाद हमने पाकिस्तानी नौसेना के पश्चिमी हिस्से को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया था। इसी वजह से पाकिस्तान को जलमार्ग से सहायता मिलनी बंद हो गई थी।
पाक एयरफील्ड्स को कम समय में ही किया था नष्ट -
वहीं भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर डीपी तिवारी ने हमें बताया कि 1971 में उन्होंने बतौर ट्रेनी ऑफिसर वायुसेना को जॉइन किया था। इस दौरान युद्ध को बेहद करीब से देखने का मौका मिला था। यह पहला युद्ध था, जिसमें तीनों सेनाएं बराबरी से लड़ रही थी। भारतीय वायुसेना के विमान पाक वायुसेना के मुकाबले काफी कमजोर थे।
बावजूद इसके भारतीय वायुसेना ने ईस्टर्न सेक्टर में पाक वायुसेना को दो से तीन दिनों में ही ध्वस्त कर दिया था। जोश से लबरेज पायलटों ने लड़ाकू जहाजों का सामना करते हुए दुश्मन की एयरफील्ड्स को नष्ट कर दिया था।
इसके साथ ही लोंगेवाला की लड़ाई जो टैंक-युद्धों में सबसे खतरनाक मानी जाती है, इस लड़ाई में भी भारत के 120 जवानों ने पाक के दो हजार सैनिकों को धूल चटा दी थी। इस लड़ाई में वायुसेना ने लगातार भारतीय थल सेना की मदद की थी।
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