Uttar Pradesh News: उत्तर प्रदेश में कुछ समय के बाद विधानसभा में खाली हुईं 10 सीटों के लिए उपचुनाव होने वाले हैं. इसके लिए बीजेपी, कांग्रेस के साथ ही SP और BSP ने भी पूरी कमर कस ली है. इस बीच प्रदेश में सियासी बयानों का दौर भी शुरू हो गया है. बुआ और भतीजे की जोड़ी में दरार भी आने लगी है. एक साथ हाथ पकड़कर अखिलेश यादव की सरकार बनवाने वाली मायावती इन दिनों उनके खिलाफ बयान पर बयान दे रही है. अब उन्होंने SP-BSP गठबंधन टूटने के पीछे के कारण की बात करते हुए अखिलेश यादव पर एक खुलासा किया है. जिसकी चर्चा होने लगी है.
उत्तर प्रदेश के आगामी उपचुनाव की तैयारियों में जुटी बसपा ने 59 पृष्ठों की एक बुकलेट प्रकाशित की है. इसका उद्देश्य पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों को बसपा की नई रणनीति से अवगत कराना है. बुकलेट के माध्यम से बताया गया है कि मायावती ने पिछले कुछ वर्षों में जो अहम निर्णय लिए हैं, उनके पीछे की असल वजह को स्पष्ट किया गया है कि बसपा ही दलितों के हितों की सबसे बड़ी संरक्षक है.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने 2019 लोकसभा चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी (सपा) से गठबंधन टूटने के पीछे का खुलासा किया है. मायावती ने कहा कि चुनाव के बाद अखिलेश यादव ने बसपा के नेताओं का फोन उठाना बंद कर दिया था, जिसके कारण उन्हें सपा से गठबंधन खत्म करना पड़ा.
मायावती ने बुकलेट में लिखा है कि 2019 के चुनावों में बसपा को 10 और सपा को 5 सीटें मिली थीं, जिसके बाद अखिलेश यादव ने बसपा नेताओं से संपर्क बंद कर दिया था. मायावती ने बताया कि इस व्यवहार के कारण, बसपा ने अपने स्वाभिमान को ध्यान में रखते हुए सपा से गठबंधन तोड़ने का फैसला किया.
बुकलेट में मायावती ने गेस्ट हाउस कांड पर भी अपनी पीड़ा व्यक्त की है. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस घटना के बावजूद उन्होंने सपा के साथ गठबंधन क्यों किया था. मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को रोकने के लिए अखिलेश यादव ने पुरानी गलतियों को नजरअंदाज कर साथ आने की पेशकश की थी.
मायावती ने अपने समर्थकों को समाजवादी पार्टी के पीडीए (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक गठबंधन) से सावधान रहने की हिदायत दी है. बुकलेट के जरिए बसपा का मुख्य उद्देश्य अपने कार्यकर्ताओं और आम जनता को पार्टी की नीतियों के बारे में जागरूक करना है. खासकर, दलित और पिछड़े वर्गों को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि अन्य पार्टियां सिर्फ उनके वोटों के लिए काम करती हैं, जबकि बसपा उनके हितों की असली पैरोकार है.