झारखंड में ऐसा क्या हुआ के वैज्ञानिकों की फटी रह गईं आँखें!, सालों पुराना है राज

झारखंड में वैज्ञानिकों ने एक अनोखी खोज की है. वैज्ञानिकों ने यहां एक पेट्रोफाइड जीवाश्म खोजा है, जिसे करीब 10 से 14 करोड़ साल पुराना बताया जा रहा है. इस खोज से संकेत मिलता है कि झारखंड की धरती के नीचे एक समृद्ध इतिहास छिपा हुआ है. डॉ. सिंह का कहना है कि इस इलाके में और भी जीवाश्म होने की संभावना है, इसलिए गहन शोध और अनुसंधान की आवश्यकता है.

Suraj Mishra
Edited By: Suraj Mishra

पृथ्वी के इतिहास को समझने के लिए वैज्ञानिक लगातार शोध कर रहे हैं और इसी कड़ी में झारखंड से एक अनोखी खोज सामने आई है. वैज्ञानिकों ने यहां एक पेट्रोफाइड जीवाश्म खोजा है, जिसे करीब 10 से 14 करोड़ साल पुराना बताया जा रहा है. यह खोज न केवल वैज्ञानिकों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए भी गर्व का विषय है.

जीवाश्म से मिलेगी प्राचीन सभ्यता की जानकारी

रिपोर्ट के अनुसार, वैज्ञानिकों की टीम ने एक विशाल वृक्ष के जीवाश्मकृत अवशेषों की खोज की है, जो इस क्षेत्र के भूगर्भीय इतिहास को समझने में मदद करेगा. इस खोज से संकेत मिलता है कि झारखंड की धरती के नीचे एक समृद्ध इतिहास छिपा हुआ है. डॉ. सिंह का कहना है कि इस इलाके में और भी जीवाश्म होने की संभावना है, इसलिए गहन शोध और अनुसंधान की आवश्यकता है.

स्थानीय लोग पहले मानते थे पूजनीय

डॉ. रंजीत के मुताबिक, झारखंड का पाकुड़ जिला पेट्रोफाइड फॉसिल से समृद्ध है. दिलचस्प बात यह है कि यहां के लोग पहले इन जीवाश्मों को पूजनीय मानते थे. इन्हें लकड़ी समझकर पूजा करते थे. लेकिन अब धीरे-धीरे उनकी समझ में आ रहा है कि ये जीवाश्म विज्ञान और इतिहास की दृष्टि से बेहद कीमती हैं.

पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा

इस खोज से न सिर्फ वैज्ञानिक अध्ययन को बल मिलेगा, बल्कि इससे क्षेत्र में पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकता है. पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनने से स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी फायदा होगा.

जीवाश्म संरक्षण के लिए जियोपार्क की योजना

इस महत्वपूर्ण खोज को संरक्षित करने के लिए वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने विस्तृत अध्ययन की योजना बनाई है. झारखंड वन विभाग के प्रभागीय वनाधिकारी मनीष तिवारी के साथ मिलकर भूविरासत विकास योजना का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है, जिसके तहत इस क्षेत्र में एक विशेष जियोपार्क विकसित करने पर विचार किया जा रहा है. इससे न केवल शोध को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए यह ज्ञान का स्रोत भी बनेगा.

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27 February 2025, 08:30 PM IST

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