Maharastra Election 2024: महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार का नाम एक मजबूत और अनुभवी नेता के रूप में लिया जाता है. छह दशकों से ज्यादा का सियासी सफर, जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से लेकर केंद्र में कृषि और रक्षा मंत्री तक की जिम्मेदारियां संभाली. लेकिन, हालिया विधानसभा चुनावों में शरद पवार और उनकी पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) को जनता ने नकार दिया. उनकी पार्टी सिर्फ 12 सीटों पर सिमट गई और महाविकास अघाड़ी गठबंधन को भी भारी हार का सामना करना पड़ा. इस हार के पीछे कई वजहें थीं, जिन्होंने पवार की इस सियासी बाजी को उनकी ‘आखिरी बाजी’ बना दिया.
चुनाव प्रचार में संन्यास के संकेत
चुनाव प्रचार के दौरान 84 वर्षीय शरद पवार ने खुद संकेत दिए थे कि अब वह चुनावी राजनीति से दूर होने का विचार कर रहे हैं. बारामती में एक सभा के दौरान उन्होंने कहा, 'कहीं तो रुकना होगा. अब चुनाव नहीं लड़ना है. नए लोगों को मौका देना चाहिए.' उन्होंने यह भी कहा कि वे पार्टी संगठन के कामों में सक्रिय रहेंगे. लेकिन चुनाव के नतीजे इतने खराब आए कि यह सवाल उठने लगा है कि क्या यह उनका आखिरी चुनाव साबित होगा?
अपनी पार्टी का विभाजन और चुनाव चिह्न की हार
शरद पवार की राजनीति को सबसे बड़ा झटका तब लगा जब उनके भतीजे अजित पवार ने बगावत करते हुए पार्टी को ही तोड़ दिया. अजित पवार ने 8 विधायकों के साथ शिंदे-बीजेपी गठबंधन में शामिल होकर डिप्टी सीएम की कुर्सी संभाल ली. इस बीच चुनाव आयोग ने भी NCP का नाम और चुनाव चिह्न ‘घड़ी’ अजित पवार गुट को सौंप दिया. शरद पवार गुट को नया नाम ‘NCP शरद चंद्र पवार’ और चुनाव चिह्न ‘तुरही’ दिया गया. पार्टी के इस विभाजन और गुटबाजी ने शरद पवार की स्थिति कमजोर कर दी.
महाविकास अघाड़ी की रणनीति फेल
शरद पवार ने कांग्रेस और उद्धव ठाकरे गुट के साथ मिलकर महाविकास अघाड़ी को मजबूत करने की कोशिश की. लेकिन गठबंधन की महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे जनता को प्रभावित नहीं कर सके. महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना की ‘महायुति’ ने महिलाओं के लिए ‘लाडली बहन योजना’ जैसे वादों से जनता को लुभा लिया. शरद पवार का पारंपरिक वोट बैंक भी इस बार बीजेपी की रणनीति के आगे टिक नहीं पाया.
बीजेपी की ध्रुवीकरण की राजनीति का तोड़ नहीं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीएम योगी आदित्यनाथ जैसे बीजेपी के बड़े नेताओं ने प्रचार के दौरान ध्रुवीकरण की राजनीति को केंद्र में रखा. शरद पवार इस रणनीति का जवाब देने में नाकाम रहे. अजित पवार की बगावत और विपक्ष में एकजुटता की कमी ने पवार के लिए हालात और मुश्किल कर दिए.
राजनीति से विदाई के संकेत?
इस हार के बाद शरद पवार के संन्यास की चर्चा तेज हो गई है. क्या यह उनका आखिरी चुनाव होगा? क्या वह अब पूरी तरह से राजनीति से दूरी बना लेंगे? यह तो आने वाला वक्त बताएगा. लेकिन इस हार ने पवार की मजबूत राजनीतिक छवि पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है. महाराष्ट्र के सियासी मैदान में यह हार सिर्फ एक चुनावी परिणाम नहीं, बल्कि छह दशकों के राजनीतिक सफर का सबसे बड़ा झटका है. First Updated : Saturday, 23 November 2024