महाराष्ट्र में उद्धव सरकार की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। उद्धव सरकार में मंत्री एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद अब शिवसेना टूट की कगार पर खड़ी है। अब खबर ये आ रही है कि विधायकों की तरह ही शिवसेना के 19 में से करीब 8-9 सांसद भी उद्धव का दामन छोड़ सकते हैं। हालांकि, दलबदल विरोधी कानून की वजह से शिवसेना में रहना उनकी मजबूरी होगी। बताया जा रहा है कि इनमें से ज्यादातर सांसद कोंकण, मराठवाड़ा और उत्तर महाराष्ट्र से हैं।
इनमें से वाशिम की शिवसेना सांसद भावना गवली का नाम सबसे प्रमुख बताया जा रहा है। उन्होंने एकनाथ शिंदे के समर्थन में खत लिखकर उद्धव से बागी विधायकों की मांग पर विचार करने और इन नेताओं के खिलाफ कार्रवाई ना करने की अपील की है। शिवसेना सांसद भावना गवली ने अपने पत्र में लिखा है कि हिंदुत्व के पक्ष में बागी विधायकों की मांग पर विचार करना चाहिए। उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से ये भी अपील की है कि वो बागी विधायकों के खिलाफ कार्रवाई न करें। हालांकि, उद्धव समर्थित नेताओं का कहना है कि भावना के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच चल रही है। उन्हें ED की तरफ से तीन बार समन भेजा जा चुका है।
गवली के खिलाफ महिला प्रतिष्ठान ट्रस्ट में मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच चल रही है। इस ट्रस्ट में मनी लॉन्ड्रिंग का मामला काफी पुराना है। सूत्रों के मुताबिक, ये सभी सांसद सत्ता परिवर्तन का इंतजार कर रहे हैं और शिंदे के हाथ में शिवसेना की पूरी कमान आते ही ये उद्धव से अलग खड़े हो जाएंगे। इनके अलावा कुछ अन्य नामों की भी चर्चा जोरों पर हैं जिसका खुलासा गुरुवार को हो सकता है। एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे, ठाणे लोकसभा सांसद राजन विचारे और नागपुर की रामटेक सीट से सांसद कृपाल तुमाने भी पार्टी से नाराज बताए जा रहे हैं। इनके साथ मराठवाड़ा के भी कुछ सांसद उद्धव के फैसलों से नाराज हैं।
उनका कहना है कि लोकसभा में 19 सांसदों के साथ मजबूत स्थिति में खड़े होने के बावजूद उद्धव सिर्फ मुंबई तक सीमित रहे हैं और कई बार कहने के बावजूद लगातार उनसे जुड़े कार्यकताओं की उपेक्षा पार्टी में की जा रही है। बता दें कि दल-बदल कानून एक विरोधी कानून है जो विधायकों या सांसदों को पार्टी बदलने से रोकता है। दरअसल, यदि कोई विधायक चुनाव होने से पहले दल बदल लेता है तो कोई परेशानी नहीं है, लेकिन यदि वो किसी एक पार्टी से जीतने के बाद ऐसा करता है तो उसे पहले लोकसभा से इस्तीफा देना होगा और उसकी सीट पर फिर से चुनाव कराए जाएंगे।
इस कानून में एक प्रावधान भी है, जिसके तहत पार्टी के 2/3 सांसद एक साथ पार्टी को छोड़ते हैं तो उन्हें इस्तीफा देने की जरूरत नहीं होगी और ना ही उनकी सीटों पर चुनाव कराए जाएंगे और इस दौरान वो जिस भी पार्टी को समर्थन देंगे, उसकी सरकार बिना किसी परेशानी के सत्ता में आ जाएगी। हालांकि, सांसदों की स्थिति से महाराष्ट्र विधानसभा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। First Updated : Thursday, 23 June 2022