प्रिंसिपल ने छात्राओं से उतरवाई शर्ट ... दी शर्मनाक सजा, अभिभावकों में आक्रोश
धनबाद के एक नामी स्कूल में प्रिंसिपल ने 50 से ज्यादा छात्राओं को सजा के तौर पर शर्ट उतारने का आदेश दिया और उन्हें सिर्फ ब्लेजर पहनकर घर भेज दिया। छात्राओं की गुहार का भी प्रिंसिपल पर कोई असर नहीं हुआ। इस घटना के बाद प्रशासन ने जांच के आदेश दिए हैं, और अभिभावकों में गहरा आक्रोश है। आखिर क्यों दी गई इतनी अजीबोगरीब सजा? जानिए पूरी कहानी।
Shocking Punishment: झारखंड के धनबाद जिले में एक प्रतिष्ठित स्कूल से ऐसा मामला सामने आया है, जिसने सभी को शर्मसार कर दिया। स्कूल के प्रिंसिपल ने 50 से अधिक छात्राओं को शर्ट उतारने का आदेश दिया और उन्हें सिर्फ ब्लेजर पहनकर घर जाने को मजबूर कर दिया। इस घटना के बाद बच्चियों के अभिभावक और स्थानीय प्रशासन में आक्रोश है।
उज्जवल भविष्य की शुभकामनाओं पर गुस्सा
घटना तब हुई जब छात्राएं अपने स्कूल के आखिरी दिन परंपरागत तरीके से एक-दूसरे की शर्ट पर शुभकामनाएं लिख रही थीं। यह नजारा देखकर स्कूल के प्रिंसिपल का गुस्सा भड़क उठा। उन्होंने छात्राओं को जमकर फटकार लगाई और फिर सजा के तौर पर उनकी शर्ट उतरवाने का फरमान दे दिया।
बच्चियों की गुहार भी नहीं सुनी
छात्राओं ने प्रिंसिपल से माफी मांगते हुए दया की गुहार लगाई, लेकिन प्रिंसिपल ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया। बच्चियों को मजबूरन ब्लेजर पहनकर बिना शर्ट के घर लौटना पड़ा। घर पहुंचते ही बच्चियां रोने लगीं, जिससे उनके माता-पिता चिंतित हो गए।
अभिभावकों का गुस्सा और प्रशासन की कार्रवाई
बच्चियों के रोते हुए घर लौटने पर अभिभावकों का गुस्सा फूट पड़ा। उन्होंने स्कूल प्रशासन के इस अमानवीय रवैये की आलोचना की और इसे मानसिक प्रताड़ना करार दिया। स्थानीय विधायक रागिनी सिंह के नेतृत्व में अभिभावक जिला उपायुक्त माधवी मिश्रा से मिले। उपायुक्त ने मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल जांच कमेटी गठित करने का आश्वासन दिया।
बच्चियों पर मानसिक दबाव
अभिभावकों का कहना है कि उनकी बच्चियां मैट्रिक की परीक्षा की तैयारी कर रही हैं और ऐसे में यह घटना उनके मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। बच्चियों में डिप्रेशन का डर भी जताया गया है। जिला प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि इस मामले में जांच पूरी होने के बाद दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। साथ ही, बच्चियों को इस मानसिक आघात से उबारने के लिए हरसंभव मदद की जाएगी।
समाज से उठे सवाल
यह घटना सिर्फ एक स्कूल तक सीमित नहीं है बल्कि समाज के सामने यह सवाल खड़ा करती है कि शिक्षण संस्थानों में बच्चों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा का जिम्मा कौन उठाएगा? ऐसे मामलों में सख्त कदम उठाना और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। यह घटना समाज के लिए एक चेतावनी है कि बच्चों के साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।