महाराष्ट्र में भाजपा-शिंदे गुट की सरकार को जनता ने मुहर लगा दी है। महाराष्ट्र की 608 ग्राम पंचायतों के लिए हुए चुनाव में शिवसेना पार्टी को महज 20 सीटों पर जीत हासिल हुई है। एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद सत्ता से बेदखल हुए उद्धव ठाकरे की पहली बार सियासी परीक्षा में बुरी तरह से हार हुई है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि ये तो होना ही था। इस चुनाव में शिंदे गुट के खाते में 40 सीटें जीतने का दावा किया जा रहा है। इस तरह एकनाथ शिंदे गुट ने उद्धव ठाकरे की लीडरशिप वाली शिवसेना को जमीन दिखा दी है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी विजेता बनकर उभरी है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले का दावा है कि भाजपा को 259 ग्राम पंचायतों में जीत हासिल हुई है। वहीं, शरद पवार की पार्टी एनसीपी को भी बड़ी जीत मिली है। एनसीपी का दावा है कि उसके खाते में 188 सीटें आई हैं। हालांकि ग्राम पंचायत के चुनाव पार्टी के सिंबल पर नहीं होते हैं लेकिन राजनीतिक दल अपने समर्थित उम्मीदवारों को उतारते हैं ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में वे अपना प्रभाव बना सकें। हालांकि पंचायत चुनावों का विधानसभा अथवा लोकसभा चुनावों से कोई सीधा संबंध नहीं होता है लेकिन ग्रामीण इलाकों में महत्व बताने के लिए उनकी अहमियत मानी जाती है। वहीं, शिवसेना के लिए महज 20 सीटों पर ही जीत हासिल करना चिंता की वजह है। अब यह भी सवाल उठने लगा है कि आखिर उद्धव ठाकरे कैसे पार्टी संभाल पाएंगे। लगातार झटके झेल रहे ठाकरे को अब सियासत में पहली बार चुनावी मैदान में जोरदार झटका लगा है। ठाकरे को यह एहसास हो गया है कि उनके पैर के तले से सियासी जमीन खिसकने लगी है।
इस चुनाव परिणाम पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की नपी तुली प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि वह भाजपा के साथ बेहतर तालमेल के साथ सरकार चलाने के लिए मानसिक रूप से मजबूत हैं। वहीं, डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र के लोगों को हमारा गठबंधन स्वीकार्य है और यही कारण है हमें पंचायत चुनाव में जीत मिली है। गौर करने वाली बात यह है कि शिवसेना पर भी एकनाथ शिंदे गुट ने दावा किया है और फिलहाल पार्टी पर दावे का मामला सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग में लंबित है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि शिवसेना की राजनीति भूल और अति महत्वाकांक्षा ने उसे आज जमीन पर ला दिया है। शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन परिणाम आने के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर दावेदारी की थी। भाजपा ने ठाकरे की इस मांग को ठुकरा दिया था। इसके बाद शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाकर महाविकास अघाड़ी (एमबीए) सरकार का गठन किया था। लेकिन सरकार में शुरू से ही खटपट चल रही थी। एनसीपी ने गृह मंत्रालय अपने पास रखा था। बाद में 100 करोड़ के घोटाले की बात सामने आयी। इस घोटाले में एनसीपी नेता एवं महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख अभी भी जेल में हैं। एक और मंत्री नवाब मलिक भी घोटाले के आरोप में जेल में हैं। एक के बाद एक घोटाले की बात सामने आने लगी, जिसके कारण शिवसेना के ही कुछ नेता आक्रोशित हो गए और अंत में उन्होंने अपनी ही सरकार गिराने की ठान ली। एकनाथ शिंदे ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली। परिणाम स्वरूप पंचायत चुनाव में लोगों ने भाजपा-शिंदे गुट के गठबंधन को जीत दिलाकर यह संदेश दिया कि प्रदेश को घोटाले में लिप्त सरकार नहीं चाहिए। उन्हें भ्रष्टाचार मुक्त सरकार चाहिए जो राज्य की जनता का विकास कर सके। First Updated : Tuesday, 20 September 2022