ब्रिटिश राजा को दहेज में मिला था ये शहर, फिर हुआ कुछ ऐसा कि.... क्या है मायानगरी मुंबई का इतिहास?
क्या आप जानते हैं कि मुंबई दहेज में ब्रिटिशों को मिला था? जी हां, सही सुना आपने, 350 साल पहले, पुर्तगाल और ब्रिटिश राजघरानों के बीच हुई एक शादी में मुंबई (तब बॉम्बे) दहेज के रूप में अंग्रेजों को मिल गया. फिर क्या इस शहर को किराए पर दिया गया, गिरवी रखकर लोन लिया गया और धीरे-धीरे ये शहर शहरीकरण की ओर बढ़ने लगा. जानिए मुंबई के इस अनोखे इतिहास के बारे में जिसे सुनकर आपको हैरानी होगी!

The Untold Story of Mumbai: मुंबई, जिसे आज हम मायानगरी के नाम से जानते हैं, का इतिहास बेहद दिलचस्प और अनोखा है. यह शहर आज जहां देश की आर्थिक राजधानी के रूप में स्थापित है, वहीं इसका इतिहास हमें यह बताता है कि यह कभी दहेज के रूप में अंग्रेजों के हाथ में आया था. जी हां, सही सुना आपने! करीब 350 साल पहले इस शहर का मालिकाना हक एक ऐतिहासिक शादी के जरिए अंग्रेजों को मिला. आइए जानते हैं मुंबई के इस दिलचस्प इतिहास के बारे में.
मुंबई का नाम और पुर्तगालियों का कब्जा
मुंबई का नाम पहले 'बॉम्बे' था और यह नाम पुर्तगालियों द्वारा दिया गया था. दरअसल, मुंबई सात छोटे द्वीपों से मिलकर बना था और इसे काफी समय तक पुर्तगालियों के कब्जे में रखा गया. 1534 में गुजरात के बहादुर शाह से पुर्तगालियों ने यह द्वीप समूह छीना और तब से मुंबई उनके नियंत्रण में था. लेकिन यह स्थिति ज्यादा समय तक नहीं रही. 1661 में ब्रिटिश शासक चार्ल्स द्वितीय की शादी पुर्तगाल की राजकुमारी कैथरीन डी ब्रिगांजा से हुई. इस शादी के उपहार के रूप में पुर्तगालियों ने मुंबई (तब बॉम्बे) को अंग्रेजों को दहेज में दे दिया. चार्ल्स द्वितीय को यह शहर इस शाही शादी के एक हिस्से के रूप में मिला. अब, यहां से एक और दिलचस्प मोड़ आता है.
ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दी मुंबई
1668 में चार्ल्स द्वितीय ने मुंबई को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया. इसके बदले कंपनी ने ब्रिटिश सरकार को हर साल 10 पौंड का किराया दिया. लेकिन इसके बाद भी ब्रिटिश शासक ने मुंबई के बदले एक और बड़ा सौदा किया. उन्होंने इस शहर को गिरवी रखकर 50,000 पौंड का लोन लिया, और उस पर 6 प्रतिशत ब्याज दर भी तय की गई. इससे साफ होता है कि मुंबई का शुरुआती इतिहास उतार-चढ़ाव से भरा हुआ था.
मुंबई का शहरीकरण और विकास
मुंबई का असली शहरीकरण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के यहां आने के बाद ही शुरू हुआ. 1661 में मुंबई की जनसंख्या केवल 10,000 थी, लेकिन 1675 तक यह बढ़कर 60,000 हो गई. धीरे-धीरे यह शहर बढ़ता चला गया और आज मुम्बई महानगरी में 2.5 करोड़ लोग रहते हैं. 1687 में, ईस्ट इंडिया कंपनी ने मुंबई को अपना मुख्यालय बना लिया और यहां से शहर का विकास तेजी से हुआ.
मुंबई की अहमियत और बंबई का नाम
मुंबई को लंबे समय तक बंबई ही कहा गया. यह नाम पुर्तगालियों ने दिया था और अंग्रेजों के समय में भी यही नाम चला. भारत की आज़ादी के बाद भी यह शहर बंबई के नाम से ही जाना जाता था. लेकिन 1995 में इसका नाम आधिकारिक रूप से मुंबई रखा गया.
मुंबई और भारत की पहली रेलवे लाइन
मुंबई का विकास न केवल शहरीकरण से हुआ, बल्कि यहां की अवसंरचना में भी कई बड़े बदलाव हुए. 1845 में हॉर्नबाय वेल्लार्ड नामक परियोजना के तहत मुंबई के सातों द्वीपों को जोड़ने का काम शुरू हुआ. इसके बाद 1853 में मुंबई को ठाणे से जोड़ने के लिए भारत की पहली रेलवे लाइन बिछाई गई. इस प्रकार, मुंबई एक प्रमुख व्यापारिक और व्यावसायिक केंद्र बन गया. मुंबई का इतिहास हमें यह सिखाता है कि यह शहर किस तरह से एक साधारण द्वीप समूह से एक विश्वव्यापी महानगर में तब्दील हुआ. दहेज के रूप में अंग्रेजों को मिला मुंबई आज भारतीय अर्थव्यवस्था का केंद्र बन चुका है. यह शहर न केवल अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए बल्कि अपने लगातार विकास और उन्नति के लिए भी प्रसिद्ध है.