आप किसी भी धर्म के हो या फिर किसी भी धर्म को मानते हों, लेकिन कुछ धार्मिक स्थलों पर जाकर मन अपने आप ही शांत होता है और आनंद की अनुभूति होती है। ये मंदिर न सिर्फ अध्यात्म का प्रतीक होते हैं बल्कि अपनी स्थापत्य काल, बनावट और खूबसूरती के लिए भी जाने जाते हैं। हर एक मंदिर पवित्रता और शांति का प्रतीक होता है।
देशभर में ऐसे ही कई मशहूर मंदिर हैं, जो अपनी खूबसूरती और सुंदरता के लिए जाने जाते हैं, जिसमें से एक है अहिल्यानगरी यानी इंदौर में स्थिति जैन मंदिर जो कि अपनी कलाकृति के कारण एक अलग जगह रखता है। जी हां हम बात कर रहे हैं इंदौर के जैन कांच मंदिर की जिसे शीश महल भी कहा जाता है।
बता दें कि इंदौर का कांच मंदिर ना केवल देश में बल्कि विदेशों में भी काफी मशहूर है। हाल ही में इस मंदिर ने अपने सौ साल पूरे किए हैं। वहीं इस मंदिर का पूरा इंटीरियर कांच से किया गया है यानी छत से लेकर, दरवाज़े, खिड़कियां, खंभे, झूमर सब कुछ कांच का ही बना हुआ है। आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़े कुछ फैक्ट्स के बारे में.....
इंदौर के इस मंदिर को बने हुए सौ साल से ज्यादा हो चुके हैं। ये कांच मंदिर न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी काफी मशहूर है। इस मंदिर को शीश महल भी कहा जाता है।
इंदौर के इस मंदिर का पूरा इंटीरियर कांच से किया गया है। इसकी छत से लेकर दरवाजे और खिड़कियां एवं खंभे और झूमर सब कुछ कांच से बना हुआ है।
जैन समाज के इस मंदिर बनाने की शुरुआत 1913 में हुई थी। इसे इंदौर के सर सेठ हुकुमचंद ने बनवाया था। यहां काले संगमरमर की आदिनाथ और सफ़ेद संगमरमर की चन्द्रप्रभू भगवान की मूर्ती बनाई गई है।
इस मंदिर को बनवाने के लिए बेल्जियम से कांच मंगवाया गया था। इस कांच को लगाने के लिए ईरान से कारीगर आए थे। पत्थर और उसके कारीगर राजस्थान से आए थे।
इस मंदिर की इमारत में सीमेंट के बजाय चूने से पत्थर की जुड़ाई की गई है। इसका आर्किटेक्ट खुद सेठ हुकुमचंद ने किया था।
इस मंदिर को बनवाने में 1 लाख 62 हजार का खर्चा आया था। इसे कम से कम करीब ढाई सौ कारीगरों ने मिलकर बनाया है।
इस मंदिर की खास बात यह है कि ये छत से जमीन तक कांच का बना हुआ है। इस मंदिर में जैन समाज के सभी गुरु एवं मुनियों की कलाकृतियों के साथ- साथ धर्म से जुड़ी खूबसूरती की नक्काशी की गई है। First Updated : Monday, 20 March 2023