Truth Behind Abua Awas Yojana: झारखंड में विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) आदिवासी समुदाय के अधिकारों और कल्याण के मुद्दे पर चुनावी मैदान में हैं. हेमंत सोरेन ने चुनावी वादों में आदिवासियों को उनके अधिकार दिलाने की बात कही थी, लेकिन उनके द्वारा शुरू की गई योजनाओं की सच्चाई अब सवालों के घेरे में है. इनमें से एक है 'अबुआ आवास योजना', जिसे आदिवासियों के लिए घर मुहैया कराने का वादा किया गया था, लेकिन इसकी असलियत कुछ और ही नजर आ रही है.
आदिवासियों को 'आवास' नहीं, घूस की जरूरत?
हेमंत सोरेन सरकार ने इस साल अगस्त में 'अबुआ आवास योजना' का ऐलान किया था. योजना का उद्देश्य था झारखंड के गरीब और आदिवासी परिवारों को सस्ते, पक्के मकान मुहैया कराना. 15 अगस्त को हुई घोषणा में कहा गया था कि आदिवासियों को 2 लाख रुपये में तीन कमरों वाला घर मिलेगा. कुल 25 लाख झारखंडियों को इस योजना का लाभ मिलने का वादा किया गया था. लेकिन जब बात धरातल पर आई, तो तस्वीर कुछ और ही सामने आई.
बीजेपी ने इस योजना को लेकर तीखा हमला किया है. भाजपा के सह-प्रभारी हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि अबुआ आवास योजना 'बाबू आवास योजना' बन गई है, क्योंकि आदिवासियों को घर मिलने के लिए अधिकारियों को घूस देनी पड़ रही है. उनका कहना है कि बिना घूस दिए न तो आवास के लिए फंड जारी होते हैं और न ही काम की कोई प्रगति होती है.
योजनाओं के बीच भ्रष्टाचार की सच्चाई
अबुआ आवास योजना के आंकड़े झारखंड सरकार ने अपने रिपोर्ट में दिए हैं, जिसमें दावा किया गया है कि वित्तीय वर्ष 2023-24 में 2 लाख घरों के निर्माण की स्वीकृति दी जा चुकी है. हालांकि, ये घर कब तक बनेंगे और कितने घर बनाए गए हैं, इसकी जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है. वहीं, योजनाओं को लेकर आदिवासी समुदाय में शिकायतें बढ़ रही हैं. कई परिवारों ने बताया कि उन्हें इस योजना का लाभ उठाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है. बिना घूस के सरकारी अधिकारी और ठेकेदार काम करने को तैयार नहीं होते.
इस भ्रष्टाचार की सच्चाई को कई आदिवासियों ने सोशल मीडिया पर भी साझा किया है. कई वीडियो वायरल हुए हैं, जिसमें आदिवासी लोग आरोप लगा रहे हैं कि पीएम आवास योजना के लिए भी उन्हें रिश्वत देनी पड़ती है. यही नहीं, कई आदिवासी इलाकों में निर्माण कार्य अधूरा पड़ा हुआ है और कई जगहों पर ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत से फंड का दुरुपयोग हो रहा है.
आदिवासी अधिकारों की धज्जियां
हेमंत सोरेन की सरकार के तहत आदिवासियों के लिए कई घोषणाएं की गईं, लेकिन इन योजनाओं का लाभ हकीकत में न के बराबर पहुंचा. अबुआ आवास योजना के तहत जो आदिवासी परिवार अपना पक्का घर पाने के हकदार थे, वे अब घूसखोरी और भ्रष्टाचार के कारण अपने हक से वंचित हो रहे हैं.
सिर्फ अबुआ आवास योजना ही नहीं, आदिवासी समाज के लिए अन्य योजनाओं में भी भ्रष्टाचार की शिकायतें हैं. कई आदिवासी परिवारों का आरोप है कि उन्हें इस योजना के बारे में सही जानकारी नहीं दी जाती और हर कदम पर नौकरशाही की दीवारें खड़ी कर दी जाती हैं. इसके बाद भी जब घर का स्वीकृति मिलती है, तो रिश्वत देने के बिना काम रुक जाता है. यह स्थिति स्पष्ट रूप से आदिवासी समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन है और राज्य सरकार की नीयत पर भी सवाल खड़ा करती है.
हेमंत सोरेन सरकार के वादों का क्या हुआ?
हेमंत सोरेन सरकार ने आदिवासियों के लिए कई वादे किए थे, लेकिन अब इन वादों की सच्चाई सामने आ रही है. आदिवासी समुदाय अब यह महसूस कर रहा है कि सरकार ने उनके साथ धोखा किया है. आदिवासी समुदाय को अपने हक के लिए घूस देने की मजबूरी हो गई है, जबकि सरकार के वादे सिर्फ दिखावा बनकर रह गए हैं.
झारखंड विधानसभा चुनाव में यह सवाल महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या हेमंत सोरेन की सरकार आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा कर पाई है, या फिर उनका शोषण और अधिकारों का उल्लंघन बढ़ा है? अबुआ आवास योजना के तहत कितने घर बने, यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है. चुनाव के नतीजे यह बताएंगे कि क्या JMM वाकई आदिवासियों की आवाज बन पाई है, या यह सिर्फ एक राजनीतिक चाल है.
आवास देने का वादा
हेमंत सोरेन सरकार ने आदिवासियों को आवास देने का वादा किया था, लेकिन अबुआ आवास योजना के तहत भ्रष्टाचार और घूसखोरी के आरोपों ने इस योजना की सच्चाई को बेनकाब कर दिया है. आदिवासी समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन और प्रशासनिक लापरवाही सरकार के वादों पर सवाल खड़े करती है. अब यह देखना होगा कि झारखंड के चुनाव में आदिवासियों की आवाज को किस पार्टी के मंच पर सुना जाएगा और क्या उनका असली हक उन्हें मिलेगा या नहीं. First Updated : Monday, 18 November 2024