इस्लाम में क्या होता है '40वां' जिसमें शामिल होने के लिए अब्बास अंसारी ने मांगी ज़मानत?
Mukhtar Ansari: मुख्तार अंसारी की मौत को 40 दिन होने वाले हैं, इस्लाम में मरने के 40 दिन बाद एक रस्म की जाती है जिसको चालीसवां कहते हैं.
Mukhtar Ansari: 28 मार्च की रात रानी दुर्गावती मेडिकल कॉलेज में मुख्तार अंसारी की मौत हो गई थी. जेल में बंद मुख्तार के बेटे ने अपने पिता को आखिरी बार देखने के लिए बाहर आने की इजाजत मांगी थी, लेकिन उनको कोर्ट ने इजाजत नहीं दी थी. एक बार फिर से मुख्तार के बेटे ने अपने पिता के चालीसवें के लिए जेल से बाहर आने की इजाजत मांगी है.
क्या होता है चालीसवां?
हर धर्म के लोगों की अपनी अपनी मान्यताएं होती हैं. खुशी हो या गम हो इसको मनाने का सबके अपने तरीके होते हैं अपनी रिवायतें होती हैं. दुनिया में कोई पैदा होता या कोई मरता है तो एक समाज के लोग उसका स्वागत या विदाई अपने तरीके से करते हैं. ऐसा ही इस्लाम में मरने के बाद चालीसवां करने का चलन होता है. सीधी भाषा में समझें तो ''मौत के चालीस दिनों के बाद, मरने वाले के लिए फातिहा (कुरआन ख्वानी) का आयोजन किया जाता है, जिसमें मरने वाले घर वाले और आसपास के लोग इकट्ठा होते हैं. साथ ही पकवान बनाए जाते हैं जो गरीबों में बांटा जाता है.''
40वें के अलावा, तीजा (मरने के तीन दिन बाद), 10वां, 20वां भी मनाए जाते हैं. इन दिनों में भी कुरआन का पाठ किया जाता है और खाना पकाकर गरीबों को खिलाया जाता है. इस्लाम क्योंकि मरने के बाद की जिंदगी को भी अहमियत देता है. इसीलिए मुर्दे की रूह को सवाब (पुण्य) पहुंचाने के मकसद से इन दिनों का आयोजन किया जाता है.
लेकिन इसमें कई मतभेद भी हैं, कुछ लोगों का कहना है कि इस्लाम और शरीयत में तीजा, 10वां, 20वां और 40वें की कोई जगह नहीं है. इस्लाम में भी कई फिरकें हैं, कुछ फिरके इन दिनों को मानते हैं तो वहीं कुछ ने सिरे से खारिज कर दिया है. अक्सर देखा गया है कि बरेली फिरके के लोग ये दिन मनाते हैं और देबवंदी उलेमाओं ने इस तरह का आयोजन करने से इनकार किया है. उनकी दलील है कि मरने वाले के लिए कुरान पढ़ना या फिर गरीबों को खाना खिलाने के लिए किसी खास दिन आयोजन करना आवश्यक नहीं है. इसके लिए कोई भी दिन हो सकता है.
इमाम हुसैन की शहादत
वहीं शिया फिरके के लोग हजरत इमाम हुसैन की शहादत के 40वें दिन भी इस तरह के आयोजन करते हैं. जिसे 'अरबईन' भी कहते हैं. हालांकि कुछ फिरकों के उलेमाओं ने इसको भी गलत बताया है. वो फिर से यही दलील देते हैं कि दिनों की गिनती करते हुए इस तरह का आयोजन नहीं करना चाहिए. बेशक इस तरह का आयोजन कर सकते हैं लेकिन जब आपको सही लगे तब करें. ऐसा नहीं होना चाहिए कि 40वें दिन ही करना है.