Jharkhand Politics: झारखंड में साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले सियासी गलियारों में हलचल देखने को मिल रही है. इस बीच झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल होने वाले चंपई सोरेन को लेकर भी चर्चा जोरों पर है. ऐसे में 'कोल्हान टाइगर' के नाम से मशहूर चंपई सोरेन लंबे समय से झारखंड की राजनीति में एक प्रमुख राजनेता रहे हैं. वहीं चम्पाई सोरेन आदिवासी अधिकारों के प्रति अपने समर्पण और राज्य आंदोलन में अपनी प्रभावशाली भूमिका के लिए भी मशहूर हैं.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, चंपई सोरेन के जेएमएम छोड़कर भाजपा में शामिल होने का फैसला झारखंड की राजनीति में एक अहम मोड़ लेकर आया है. उनके इस कदम से जेएमएम को बड़ा झटका लगा है. वहीं भाजपा हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार के साथ बढ़ते असंतोष का फायदा उठाने को पूरी तरह तैयार है.
दरअसल, 28 अगस्त 2024 को सरायकेला निर्वाचन क्षेत्र से सात बार विधायक रहे चंपई सोरेन ने हेमंत सोरेन के नेतृत्व में पार्टी की दिशा और नेतृत्व से अपनी निराशा को जगजाहिर करते हुए JMM से इस्तीफा देकर 30 अगस्त को भाजपा में शामिल हो गए थे. वहीं कई महीनों के आंतरिक कलह के बाद यह इस्तीफा जेएमएम नेतृत्व की अपने वरिष्ठ नेताओं की चिंताओं को दूर करने और पार्टी की एकता बनाए रखने में विफलता को उजागर करता है.
हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद चंपई सोरेन ने इस्तीफा दे दिया है. जिस तरह से चंपई सोरेन को दरकिनार किया गया, वह जेएमएम के आंतरिक लोकतंत्र पर खराब प्रभाव डालता है और आदिवासी नेतृत्व के प्रति उसकी प्रतिबद्धता पर गंभीर सवाल उठाता है. इस कुप्रबंधन की व्यापक आलोचना हुई है, जिसमें कई लोगों ने जेएमएम पर भाई-भतीजावाद का आरोप लगाया है. उन नेताओं को कमतर आंकने का आरोप लगाया है जो आदिवासी समुदायों के बीच पार्टी के समर्थन की रीढ़ रहे हैं.
इस बीच झारखंड के मुख्यमंत्री के हेमंत सोरेन का कार्यकाल विवादों और भ्रष्टाचार के आरोपों से भरा रहा है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा उनकी गिरफ्तारी इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार की आलोचना उसके अप्रभावी शासन, वादों को पूरा करने में विफलता और आदिवासी आबादी के हितों को बनाए रखने में असमर्थता के लिए की गई है. ये ऐसे मुद्दे हैं जिन्हें खुद चंपई सोरेन ने अपने इस्तीफे के कारणों में बताया था.
दरससल, हेमंत सोरेन के नेतृत्व में, जेएमएम आदिवासी अधिकारों की वकालत करने के अपने मूल मिशन से भटक गया है. पार्टी का ध्यान फिलहाल सत्ता को मजबूत करने पर है. इस बदलाव ने पार्टी के अंदर कई लोगों को अलग-थलग कर दिया है, जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में असंतोष बढ़ रहा है. आगामी चुनावों में आदिवासी मतदाताओं का विश्वास बनाए रखना हेमंत सोरेन के लिए मुश्किल होने वाला है।
चंपई सोरेन का बीजेपी में शामिल होना पार्टी के लिए एक बड़ी सफलता है क्योंकि वह झारखंड में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहती है. आदिवासी अधिकारों के कट्टर समर्थक के रूप में चंपई सोरेन की प्रतिष्ठा के साथ, भाजपा के पास अब एक शक्तिशाली सहयोगी है जो पार्टी को कोल्हान और दक्षिण छोटा नागपुर जैसे प्रमुख क्षेत्रों में आदिवासी मतदाताओं से जुड़ने में मदद कर सकता है. जहां पारंपरिक रूप से जेएमएम का दबदबा रहा है. ऐसे में चंपई सोरेन के इस कदम से झारखंड की चुनावी गतिशीलता में बदलाव आने की उम्मीद है.
कोल्हान क्षेत्र में उनके गहरे संबंध और आदिवासी समुदायों के बीच उनका प्रभाव उन्हें भाजपा के लिए अहम बनाता है. चंपई के साथ मिलकर भाजपा जेएमएम के पारंपरिक वोट बैंक में पैठ बनाने के लिए तैयार है. जिससे आदिवासी वोटर टूट सकते हैं. इसके अलावा बांग्लादेशी घुसपैठ के खतरे जैसे प्रमुख मुद्दों पर भाजपा के रुख का चंपई सोरेन द्वारा समर्थन भाजपा के अभियान में एक नया आयाम जोड़ता है. चंपई सोरेन ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि 'बांग्लादेशी घुसपैठ के कारण आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में है.' भाजपा के नेता भी बांग्लादेशी घुसपैठ का मुद्दा काफी वक्त से उठा रहे हैं. First Updated : Thursday, 12 September 2024