जिया-उल-हक हत्याकांड: 10 दोषियों को मिली उम्रकैद, क्या मिलेगा परिवार को न्याय?
Zia-ul-Haq Murder Case: प्रतापगढ़ के सीओ जिया-उल-हक की हत्या के मामले में सभी 10 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. इस हत्याकांड ने उत्तर प्रदेश में हड़कंप मचा दिया था. क्या इस फैसले से जिया-उल-हक के परिवार को न्याय मिलेगा? जानें पूरी कहानी और इसके पीछे के राज!
Zia-ul-Haq Murder Case: प्रतापगढ़ के सीओ जिया-उल-हक हत्याकांड ने पूरे उत्तर प्रदेश को हिलाकर रख दिया था. अब इस मामले में सीबीआई स्पेशल कोर्ट ने सभी 10 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है. इसके साथ ही, कोर्ट ने इन पर 19,500 रुपये का जुर्माना भी लगाया है. इस जुर्माने की आधी रकम जिया-उल-हक की पत्नी, परवीन आजाद को दी जाएगी. यह फैसला इस मामले में न्याय की ओर एक बड़ा कदम है.
2 मार्च 2013 को कुंडा के बलीपुर गांव में जमीन के विवाद के चलते प्रधान नन्हे यादव की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद, प्रधान के समर्थक ने उग्र होकर कामता पाल के घर पर हमला कर दिया. जब जिया-उल-हक और पुलिस की टीम घटनास्थल पर पहुंची तो भीड़ ने उन्हें घेर लिया. स्थिति बेकाबू हो गई और सुरेश यादव की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस दौरान भीड़ ने जिया-उल-हक की पीट-पीटकर हत्या कर दी.
कोर्ट का फैसला और आरोपी
सीबीआई स्पेशल कोर्ट के जज धीरेंद्र कुमार ने 10 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई. इनमें फूलचंद यादव, पवन यादव, मंजीत यादव, घनश्याम सरोज, राम लखन गौतम, छोटे लाल यादव, राम आसरे, पन्नालाल पटेल, शिवराम पासी और जगत बहादुर पटेल शामिल हैं. इससे पहले 5 अक्टूबर को इन सभी को दोषी ठहराया गया था.
एफआईआर और जटिलताएं
दरअसल इस मामले में दो एफआईआर दर्ज हुई थीं. पहली एफआईआर एसओ मनोज कुमार शुक्ला ने दर्ज कराई थी, जबकि दूसरी परवीन आजाद ने. परवीन ने अपनी एफआईआर में तत्कालीन मंत्री राजा भैया और उनके साथियों को आरोपी बनाया था. हालांकि सीबीआई ने उन्हें क्लीन चिट दे दी. परवीन ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की, जिसके बाद दोबारा जांच हुई. लेकिन 23 दिसंबर 2023 को सीबीआई ने फिर से उन्हें क्लीन चिट दे दी.
न्याय का रास्ता
सीओ जिया-उल-हक की हत्या एक गंभीर अपराध है जिसने पुलिस और प्रशासन की सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं. कोर्ट का फैसला भले ही उन 10 दोषियों के लिए एक सजा है लेकिन इससे यह सवाल भी उठता है कि क्या राजनीतिक संरक्षण के कारण अन्य आरोपी बच सकते हैं? परवीन आजाद का संघर्ष इस मामले में न्याय की खोज का प्रतीक है. अब देखना यह है कि क्या जिया-उल-हक को पूरी तरह से न्याय मिलेगा या यह मामला अभी भी अधूरा रहेगा.