ब्राजील ने फ्लेक्स गाड़ियों के जरिए देश में कम किया प्रदूषण लेवल, जानिए कैसे करता है ये काम

देश में प्रदूषण लेवल को कम करने के लिए सरकार लगातार इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा दे रही है। लेकिन पेट्रोल में एथनॉल और बायो फ्यूल मिला कर भी इसे कम किया जा सकता है। ब्राजील ने इसे कर दिखाया है। फ्लेक्स गाड़ियों के जरिए आसानी से प्रदूषण लेवल को कम कर सकते हैं। भारत सरकार भी इस दिशा में काम कर रही है।

ब्राजील ने फ्लेक्स गाड़ियों के जरिए देश में प्रदूषण लेवल को कम किया है। भारत सरकार की तरफ से भी से इसे कम करने के लिए लगातार कोशिश जारी है। फिलाहल हमारे देश में लोगों की नजर इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर है। सरकार भी इसे बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी दे रही है। पेट्रोल और डीजल इंजन के मुकाबले इसे चलाना किफायती है। लेकिन बायो फ्यूल और एथनॉल ऑयल के जरिए भी बहुत ही आसानी से प्रदूषण लेवल को कम किया जा सकता है। 2025 तक 20% बायो फ्यूल यूज करने की बातें कही जा रही है।
 
हाइब्रिड गाड़ियों में फ्लेक्स फ्यूल इस्तेमाल करने के फायदे और नुकसान दोनों है। इस से वायु प्रदूषण को भले ही कम कर लें, लेकिन ये जल को प्रदूषित करता है। सिर्फ इतना ही नहीं बायो फ्यूल बनाने के लिए बहुत सारा पानी और कच्चा माल के रूप में स्टार्च वाले कृषि की जरूरत पड़ती है। इनमें आलू, अंगूर, गन्ना और मक्का शामिल है। क्या आपको पता है कि फ्लेक्स गाड़ियों में बायो फ्यूल कैसे काम करता है। इसके फायदे और नुकसान से ना रहें अनजान।
 
ब्राजील के रास्ते पर भारत चलने के लिए है तैयार
 
E-20 प्रोजेक्ट के अनुसार भारत में 2025 तक पेट्रोल में  लगभग 20% तक एथनॉल मिलाने का अनुमान है। ऐसा करने से लगभग हर साल 30,000 करोड़ रुपये तक की बचत पेट्रोलियम पर खर्च होने से बचा सकते हैं। कुल पेट्रोल की खपत की तुलना में यह 0.7% है। लेकिन इसके लिए जल जंगल और जमीन तीनों की जरूरत पड़ेगी। हमारे देश में अधिक जनसंख्या होने के साथ ही खेती योग्य जमीन होना भी जरूरी है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार खेती को बढ़ावा दे सकती है। 
 
एथनॉल बायो फ्यूल के क्या फायदे हैं
 
एथनॉल और बायोफ्यूल बनाने के लिए आलू, अंगूर, गन्ना, मक्का आदि को जरूरत पड़ती है। भारत गन्ना उत्पादन के क्षेत्र में दूसरे स्थान पर है। बायोफ्यूल को बढ़ावा मिलने से पेट्रोल खरीदने के लिए दूसरे देशों के ऊपर से निर्भरता कम होगी। इसकी कीमत में भी कमी हो सकती है। इसके अलावा पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारों की तुलना में बायोफ्यूल 70% कम हाइड्रोकार्बन, 65% कम कार्बन मोनोऑक्साइड और 30% कम नाइट्रोजन छोड़ती हैं। इस से प्रदूषण लेवल को आसानी से कम किया जा सकता है यही वजह है कि इसे ग्रीन फ्यूल भी कहते हैं।
 
एथनॉल बायो फ्यूल के क्या नुकसान है
 
एथनॉल बायो फ्यूल के नुकसान नहीं है। लेकिन इसे बनाने के लिए जिन चीजों की जरूरत पड़ती है, उससे नुकसान हो सकता है। दरअसल इसे बनाने के लिए 78 गुना पानी लगता है। वहीं दूसरी तरफ केवल एक लीटर एथनॉल बनाने के बाद कम से कम 10 से लीटर तक प्रदूषित केमिकल निकलते हैं। इसके अलावा खेती योग्य जमीन होना जरूरी है। अगर इससे किसानों को ज्यादा फायदा हो तो खाद्य पदार्थ की कीमतें बढ़ सकती है। किसान भी केवल एक ही तरह की खेती करना शुरू कर देंगे। पानी के लिए ग्राउंड लेवल नीचे जाने की संभावना है।
 
एथेनॉल और इलेक्ट्रिक गाड़ियों में कौन है ज्यादा फायदे का सौदा
 
एथेनॉल ऑयल से आम लोगों को भले ही कम फायदा हो लेकिन इससे प्रदूषण लेवल को खत्म किया जा सकता है। अगर इसकी तुलना इलेक्ट्रिक गाड़ियों से करें तो यह किफायती नहीं है। एक हेक्टेयर जमीन में सोलर प्लांट लगाकर इलेक्ट्रिक गाड़ियों को जितना चला सकते हैं इसके लिए एथेनॉल ऑयल बनाने के लिए कम से कम 187 हेक्टेयर जमीन की खेती लगेगी। अब आप खुद से ही यह तक कर सकते हैं की इनमें कौन ज्यादा फायदे का सौदा है।
 
वर्तमान समय में इलेक्ट्रिक गाड़ियां है ज्यादा किफायती
 
वर्तमान समय की बात करें तो इलेक्ट्रिक गाड़ियों को चलाने में ज्यादा खर्च करने नहीं पड़ते हैं। हालांकि इसकी कीमत पेट्रोल और डीजल इंजन के मुकाबले काफी ज्यादा है। लेकिन एक बार बजट बनाकर इसके ऊपर निवेश करने के बाद आप पेट्रोल और डीजल के ऊपर होने वाले खर्च को बचाकर इस रकम की पूर्ति कर सकते हैं। आने वाले समय में इलेक्ट्रिक इंजन गाड़ी और बायोफ्यूल के बीच मुकाबला देखने को मिल सकती है।
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17 March 2023, 06:46 PM IST

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