New Study: खुशी हो या गम, आवाजें निकालकर अपनी फीलिंग्स जाहिर करते हैं पेड़-पौधे
सिर्फ मनुष्य, जीव-जंतु, कीट-पतंगे ही नहीं पेड़-पौधे भी बोलते हैं। यदि वे किसी परेशानी में होते हैं तो जोर-जोर से आवाजें निकालते हैं और अपनी समस्या जाहिर करते हैं। प्लांट्स द्वारा खुशी और परेशानी के लम्हों में निकाली गई आवाजें दरअसल, अल्ट्रासोनिक साउंड (ultrasonic sound) के रूप में होती हैं, जिन्हें मनुष्य नहीं सुन सकता। हालांकि उनके आसपास के कुछ जीव और दूसरे पौधे इस आवाज को सुन सकते हैं।
हाइलाइट
- तकलीफ में होने पर जोर-जोर से चीखते हैं प्लांट्स
- पेड़-पौधे निकालते हैं अल्ट्रासोनिक साउंड
- मनुष्य अपने कानों से नहीं सुन सकता इनकी आवाज
- इजराइल की तेल अवीव यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दावा
सिर्फ मनुष्य, जीव-जंतु, कीट-पतंगे ही नहीं पेड़-पौधे भी बोलते हैं। यदि वे किसी परेशानी में होते हैं तो जोर-जोर से आवाजें निकालते हैं और अपनी समस्या जाहिर करते हैं। प्लांट्स द्वारा खुशी और परेशानी के लम्हों में निकाली गई आवाजें दरअसल, अल्ट्रासोनिक साउंड (ultrasonic sound) के रूप में होती हैं, जिन्हें मनुष्य नहीं सुन सकता। हालांकि उनके आसपास के कुछ जीव और दूसरे पौधे इस आवाज को सुन सकते हैं।
पेड़-पौधों द्वारा आवाज निकालने का यह दावा किया है, इजराइल (Israel) स्थित तेल अवीव यूनिवर्सिटी (Tel Aviv university) के वैज्ञानिकों ने, जिनका कहना है कि हमारे आस-पास का संसार प्लांट्स साउंड्स (plants sound) से भरा हुआ है और इनमें पानी की कमी, चोटिल होने जैसी बहुत से बातें साझा की जाती हैं। हालांकि ये आवाज हम सुन नहीं सकते हैं।
जरूरतों की पूर्ति के लिए निकालते हैं आवाजें
इजराइल के रिसचर्स ने शोध में दावा किया कि हमारी तरह पेड़-पौधे भी अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए तरह-तरह की आवाजें निकालते हैं और प्राणी जगत से मदद की गुहार करते हैं। Research में वैज्ञानिकों ने पाया कि जब plants को प्यास लगती है, तेज धूप लगती है या वे मुरझाने लगते हैं तो अल्ट्रासोनिक साउंड निकालते हैं जो बबल रैप के फूटने जैसी आवाज होती है।
वैज्ञानिक जर्नल 'Cell' में Study प्रकाशित
Tel Aviv university के शोधार्थियों ने तनाव की स्थिति में पादपों के प्रदर्शन को जांचने के लिए "Sounds emitted by plants under stress" टाइटल से स्टडी की। Prof. Lilach Hadany और Prof. Yossi Yovel की अगुवाई में यह शोध तेल अवीव यूनिवर्सिटी के प्लांट साइंस, जूलॉजी, न्यूरोसाइंस, मैथमेटिकल साइंस आदि विषयों से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा किया गया। यह स्टडी साइंटिफिक जर्नल Cell में प्रकाशित की गई है। रिसचर्स ने यह शोध करीब 6 साल तक किया और इसमें टमाटर (tomatoe), तम्बाकू (tobacco), गेहूं (wheat), मक्का (corn), कैक्टस (cactus), henbit आदि पौधों को शामिल किया गया।
इस स्टडी के अनुसार हालांकि लगभग सभी पौधे तरह-तरह की आवाज निकालते हैं, लेकिन परेशानी या खुशी की स्थिति में आवाज निकालने की आवृत्ति बढ़ जाती है, जिससे यह समझा जा सकता है कि पौध किस हालात में है। हालांकि अभी तक प्लांट्स को साइलेंट स्पीसीज माना जाता था, लेकिन इस शोध के बाद माना जा रहा है कि ये प्लांट रिसर्च को एक नया आयाम देगा और वनस्पति विज्ञान के बहुत से अनछुए पहलू अब सामने आ सकेंगे।
मनुष्य नहीं सुन सकता 20 kHz से अधिक की आवाज
बचपन में मनुष्य की आवाज सुनने की क्षमता काफी बेहतर होती है और वह 20 किलोहर्ट्ज तक की आवाज सुन सकता है, वहीं यह क्षमता भी उम्र बढ़ने के साथ कम होती जाती है। जबकि इस शोध के अनुसार पौधे 40 से 80 kHz की आवाजें निकालते हैं, जिन्हें मनुष्य नहीं सुन सकता। गौरतबल है कि 20 kHz से अधिक की आवाजें अल्ट्रासोनिक साउंड की कैटेगिरी में आती हैं। हालांकि चूहे, गिलहरी, चमगादड़ जैसे कुछ जीव-जंतु इन आवाजों को सुन सकते हैं। शोध में यह भी बताया गया कि जिस तरह किसी मनुष्य या जीव को परेशान देखकर अन्य जीव मदद के लिए आगे बढ़ते हैं, वैसे ही प्लांट्स की आवाज सुनने में सक्षम अन्य जीव भी उनकी मदद के लिए आगे आते हैं।
Cavitation हो सकती है इसकी वजह
शोध के अनुसार पौधे जैसी परेशानी महसूस करते हैं, वैसी ही आवाज निकालते हैं। ये अल्ट्रासोनिक आवाजें कई फीट दूर तक पहुंचती हैं। शोधार्थियों का मानना है कि पौधों से निकलने वाली इन आवाजों के पीछे वैज्ञानिक कारण कैविटेशन (cavitation) है। दरअसल, पादपों में संवहन तंत्र (vascular system) यानी पौधे की जड़, तना आदि हिस्सों में भोजन और जल पहुंचाने का काम करता है। इस तंत्र में कम या अधिक दबाव की स्थिति में कैविटेशन होता है यानी बबल्स बनते हैं और इन्हीं के फूटने पर ये आवाजें आती हैं।
इस तरह किया गया अध्ययन
इस शोध में तम्बाकू और टमाटर के पौधे प्रमुखता से शामिल किए गए, हालांकि दूसरे कई पौधों को भी शोध में शामिल किया गया। ग्रीन हाउस में तैयार इन पौधों को ऐसे साउंडप्रूफ बॉक्सेज (soundproof boxes) में रखा गया, जहां कोई बाहरी आवाज नहीं आ सके। अंदर कोई भी जीव न रह जाए यह भी सुनिश्चित किया गया। इन पौधों को तीन श्रेणियों में रखकर अलग-अलग ट्रीटमेंट दिया गया। पहले पौधे ऐसे थे, जिन्हें कई दिनों तक पानी नहीं दिया गया, दूसरे वे, जिनके तने काट दिए गए और तीसरे वे जिनके साथ सामान्य व्यवहार किया। इस दौरान हरेक पौधे के पास 20kHz से लेकर 250kHz साउंड रिकॉर्ड करने की क्षमता वाले कुछ अल्ट्रासोनिक माइक्रोफोन लगाए गए।
इस शोध के बाद अप्रत्याशित परिणाम सामने आए। जिन पौधों के साथ सामान्य बर्ताव किया गया, उन्होंने एक घंटे में एक से भी कम बार आवाज निकाली, वहीं जिन्हें पानी न मिलने या इंजरी की दिक्कत हुई उन्होंने एक घंटे में 12 से अधिक बार तेज आवाजें निकाली। जैसे-जैसे परेशानी बढ़ी आवाजों की आवृति और तीव्रता बढ़ती गई। इस शोध में मशीन लर्निंग (machine learning) और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (artificial intelligence) का भी इस्तेमाल किया गया, जिससे पता चला कि अलग-अलग पौधों ने इन हालातों में अलग-अलग आवाजें निकालीं।