75 साल बाद मिले बिछड़े भाई-बहन

75 साल बाद मिले बिछड़े भाई-बहन

Janbhawana Times
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फिल्मी पर्दों पर आपने भारत-पाकिस्तान के रिश्ते पर कई मनोरंजक और रोमांच पैदा करने वाली कहानियां देखी और सुनी होंगी। बजरंगी भाईजान, गदर, वीरजारा, हिना, पिंजर ऐसी कुछ यादगार फिल्में हैं जो आपको बार-बार देखने का जी भी करता है। क्योंकि इसमें परिवार से बिछुड़ने का दर्द है। बिछुड़ने के बाद परिवार के मिलन की मिठास है। बरसों का बिछुड़ा हुआ जब अनायास एक दिन सामने आ जाता है तो शब्द सूख जाते हैं आंसू सैलाब बन जाते हैं। दोनों एक दूसरे को किंकर्तव्यविमूढ़ की स्थिति में एक दूसरे को निहारते रह जाते हैं लब से कुछ नहीं निकल पाता है।

घंटों आलिंगनबद्ध खड़े रहते हैं उस वक्त एक दूसरे के आंसू ही उनके शब्द बन जाते हैं जो उनकी कहानियां भी बयां कर देती है। यही है रिश्ते की खूबसूरती। अब हम जो आपको कहानी बताने जा रहे हैं उससे कई फिल्मों की पटकथा लिखी जा सकती है। दिन को झकझोरने वाली और भावनाओं सागर में डुबोने वाली ये कहानी भी भारत और पाकिस्तान से ही जुड़ी है।

1947 में जब देश का बंटवारा हुआ था उस समय के कई किस्से आपने सुने होंगे, उसपर बनी कई फिल्में देखी होगी, कई किताबें भी पढ़ी होंगी। भारत विभाजन की दर्दनाक कहानियां आज भी उस दौर के लोग सुनाते रहते हैं। उस दौरान कई परिवार ऐसे भी थे, जिसके कई सदस्य बिछड़ गए। कोई पाकिस्तान चला गया तो कोई भारत में ही अपने परिवार से बिछुड़कर रह गया। ऐसा ही एक मामला मुमताज बीबी का है जो विभाजन के बाद पाकिस्तान चली गईं और एक सिख परिवार में जन्म लेने के बाद भी मुस्लिम हो गईं। अब वो 75 साल बाद अपने सिख भाइयों से मुलाकात की है। अपने तीनों भाईयों से मिलने के बाद ना भाईयों के आंसू थम रहे हैं और ना ही मुमताज के।

भाई-बहन की ये मुलाकात करतारपुर कॉरिडोर पर हुई। 1947 में जब देश का बंटवारा हुआ उस वक्त हिंसा के दौरान कई परिवार की जिंदगी तहस नहस हो गई थी। हर ओर कत्लेआम मचा था। उसी हिंसा में मुमताज की मां की मौत हो गई थी। उस वक्त मुमताज बीबी महज दो या तीन साल की दुधमुंही बच्ची थीं। उस अबोध बच्ची को तो पता भी नहीं था कि उसकी मां इस दुनिया से जा चुकी है और वो मां के शव के ऊपर ही लेटकर रो रही थी इसी दौरान मुहम्मद इकबाल और उनकी पत्नी अल्लाह रक्खी ने मुमताज को गोद में उठा लिया। बंटवारे के बाद इकबाल मुमताज को शेखुपुरा जिले में स्थित अपने घर ले आए। अपनी बच्ची की तरह ही मुमताज का पालन पोषण किया उसे इस बात की कभी भनक तक लगने नहीं दी कि वो एक सिख है और उनकी सगी औलाद नहीं है। दो साल पहले जब इकबाल की अचानक तबीयत बिगड़ी तो उन्हें लगा कि अब सच बता देना चाहिए और उन्होंने मुमताज को 73 साल पुरानी वो बता डाली कि वो उनकी सगी बेटी नहीं हैं बल्कि एक सिख परिवार की बेटी हैं।

मुमताज को यकीं नहीं आया। इकबाल का इंतकाल हो गया। इकबाल की मौत के बाद मुमताज और उनके बेटे शहबाज को अपने असली परिवार के बारे में जानने की इच्छा हुई। दोनों मां-बेटे ने अपने भारतीय परिवार की तलाश के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। मुमताज के असली पिता और पंजाब के पटियाला स्थित सिदराणा गांव की जानकारी इकबाल ने उन्हें दे दी थी। मां-बेटे की मेहनत रंग लाई और मुमताज का परिवार मिल गया। दोनों परिवार सोशल मीडिया के जरिए जुड़ गए। उसके बाद दोनों से एक-दूसरे से मिलने की ठानी और करतारपुर कॉरिडोर में मिलने की योजना बनाई गई। फिर एक दिन वो भी आया जब मुमताज बीबी उर्फ गज्जो अपने तीनों भाई गुरमीत सिंह, सरदार नरेंद्र सिंह और सरदार अमरिंदर सिंह से आमने-सामने हो पायी। 75 साल बाद चार भाई-बहन एक दूसरे के सामने थे।

75 रक्षाबंधन इन भाई-बहनों से खो दिया। किसी के आंसू रूकने के नाम नहीं ले रहे थे। किसी को यकीं नहीं हो पा रहा था कि ऐसा भी हो सकता है। दोनों तरफ का पूरा परिवार भी मौजूद था जो चारों को निहार रहा था और उनके भी आंसू निकले जा रहे थे। पूरा माहौल भावुक हो चुका था। गुरमीत करतारपुर साहिब जाते समय अपनी बहन गज्जो के लिए चांदी के कड़े और सोने की अंगूठी लेकर गए। गुरमीत सिंह बताते हैं कि गज्जो अपने परिवार के सदस्यों को बहुत याद करती है। वो उनके पास पटियाला आना चाहती है, लेकिन बीच में दीवार बनकर सरहद खड़ी है। गज्जो उर्फ मुमताज बेगम ने भारत आने के लिए पाकिस्तान में वीजा अप्लाई कर दिया है। उम्मीद है कि एक महीने में प्रोसेस पूरा हो जाने के बाद उनकी बहन बंटवारे के 75 साल बाद अपने घर में अपनों के बीच आकर बैठ सकेगी। जो एक सुखद पल होगा।

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20 May 2022, 06:41 PM IST

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