Trending News. सोशल मीडिया पर एक मुस्लिम मौलवी का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है। इस वीडियो में मौलवी अपने शागिर्दों की पानी की बोतलों में इस्लामिक प्रार्थनाएँ पढ़ने के बाद थूकते हुए नजर आते हैं। बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन ने इस वीडियो को सोशल मीडिया पर साझा किया और इसे लेकर एक विवादित टिप्पणी की।
तस्लीमा नसरीन की टिप्पणी
तस्लीमा नसरीन ने इस वीडियो के साथ ट्वीट करते हुए कहा, "एक मुल्ला सूरा पढ़ रहा है और फिर पानी पर थूक रहा है या फूंक रहा है, इसे उन लोगों को दे रहा है जो मानते हैं कि यह पानी पवित्र है और इसे पीने से वे बीमारियों और परेशानियों से मुक्त हो जाएंगे। मुल्ला सयाना है और शागिर्द बेवकूफ हैं।” नसरीन के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रिया आ रही है। कुछ लोग मौलवी के इस कार्य को आस्था के रूप में देखते हैं, तो कुछ लोग इसे अंधविश्वास करार दे रहे हैं।
इस्लाम में थूकने का महत्व
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, थूकने का विशेष महत्व है, खासकर शैतान या बुरी आत्माओं को दूर करने के लिए। विभिन्न इस्लामिक हदीसों में यह उल्लेख है कि थूकने का धार्मिक प्रभाव होता है। सहीह-अल-बुखारी (वॉल्यूम 4, पुस्तक 54, संख्या 513) में बताया गया है कि यदि कोई व्यक्ति बुरे सपने से परेशान हो तो बाईं ओर थूकने से बुरी आत्माएं दूर हो जाती हैं। इस्लामिक पैगंबर ने कहा है, “अच्छे सपने अल्लाह से होते हैं जबकि बुरे सपने शैतान से। बुरे सपने के बाद व्यक्ति को अपनी बाईं ओर थूकना चाहिए ताकि उसे अल्लाह की शरण मिले और शैतान से बच सके।”
हदीसों में थूकने का जिक्र
कुछ अन्य हदीसों में भी थूकने की चर्चा है। सहीह मुस्लिम (किताब 026, संख्या 5463) में बताया गया है कि यदि शैतान किसी व्यक्ति की इबादत में रुकावट डाले या उसे परेशान करे, तो उसे बाईं ओर तीन बार थूकना चाहिए। कुरान की आयतों का पाठ करते समय भी, शैतान को दूर रखने के लिए थूकने का सुझाव दिया गया है।
पैगंबर मोहम्मद और थूकने की घटनाएं
इस्लामी परंपरा में ऐसे कई संदर्भ हैं जहां पैगंबर मोहम्मद द्वारा थूकने को आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में माना गया है। सहीह बुखारी (वॉल्यूम 1, किताब 12, हदीस 801) के अनुसार, महमूद बिन अर-रबी ने बताया कि पैगंबर ने अपने मुख से पानी निकालकर उन पर फेंका। उरवा के अनुसार, पैगंबर के थूक को उनके अनुयायी अपने चेहरे और त्वचा पर रगड़ते थे ताकि उन्हें इसका आशीर्वाद प्राप्त हो सके।
इस्लामी मान्यताओं में थूक का धार्मिक महत्व
कुछ अन्य हदीसों में बताया गया है कि पैगंबर जिस पानी का इस्तेमाल खुद को साफ करने के लिए करते थे, लोग उस पानी का उपयोग खुद पर बरकत के लिए करते थे। सहीह अल-बुखारी के अनुसार, अबु जुहैफा ने देखा कि पैगंबर द्वारा उपयोग किए गए पानी का लोग आपस में उपयोग कर रहे थे।
थूकने की परंपरा और समाज में विवाद
इस्लाम में थूकने की इस धार्मिक परंपरा को आस्था का प्रतीक माना जाता है, लेकिन अन्य समाजों में इसे अप्रिय और असम्मानजनक माना जा सकता है। कई संस्कृतियों में थूकने का कार्य अनादर का प्रतीक है और यह विवाद का कारण भी बनता है। First Updated : Friday, 15 November 2024