भारत के इस रेलवे ट्रैक पर आज भी क्यों है ब्रिटेन का कब्जा? जानिए इसका इतिहास और वजह
क्या आप जानते हैं कि आज़ादी के 77 साल बाद भी भारत में एक ऐसा रेलवे ट्रैक है, जो ब्रिटेन की एक निजी कंपनी के अधीन है? भारत सरकार को हर साल करोड़ों की रॉयल्टी भी देनी पड़ती है. जानिए इस ट्रैक का इतिहास, क्यों आज भी भारत का कब्जा नहीं हो पाया और इस मामले में क्या चल रहा है. पूरी कहानी पढ़ें!

Trending Story: आजाद भारत में कई ऐसी बातें हैं जो हमारी समझ से बाहर होती हैं और इनमें से एक है – भारत के एक रेलवे ट्रैक पर ब्रिटेन का अभी भी कब्जा. आपको जानकर हैरानी होगी कि 77 सालों बाद भी इस रेलवे ट्रैक का मालिकाना अधिकार भारत सरकार के पास नहीं है बल्कि एक ब्रिटिश कंपनी के पास है. यह ट्रैक सिर्फ एक रेलवे मार्ग नहीं बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर भी है, जो आज भी भारत को ब्रिटिश साम्राज्य के युग से जोड़ता है. चलिए जानते हैं इस ट्रैक के बारे में और इसके पीछे की पूरी कहानी.
शकुंतला रेलवे ट्रैक: ब्रिटिश काल का अंश
यह ट्रैक महाराष्ट्र के अमरावती से मुर्तजापुर तक फैला हुआ है और इसकी कुल लंबाई लगभग 190 किलोमीटर है. यह ट्रैक अंग्रेजों के दौर का है और इसका निर्माण उस समय कपास की खेती के कारण हुआ था. ब्रिटिश शासन के दौरान कपास को मुंबई पोर्ट तक लाने के लिए अंग्रेजों ने यह रेलवे ट्रैक बनवाया था. इस ट्रैक को शकुंतला रेलवे ट्रैक के नाम से जाना जाता है, और इसकी ऐतिहासिक अहमियत आज भी बरकरार है.
ब्रिटेन की कंपनी का कब्जा: क्यों है यह ट्रैक उनके हाथों में?
यह ट्रैक ब्रिटेन की क्लिक निक्सन एंड कंपनी द्वारा बनवाया गया था. कंपनी ने इसे बनाने के लिए 1903 में सेंट्रल प्रोविंस रेलवे कंपनी (CPRC) की स्थापना की थी, और 1916 में यह पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ. इसके बाद से यह रेलवे ट्रैक ब्रिटेन की इस कंपनी के नियंत्रण में रहा. यह ट्रैक आज भी ब्रिटेन की एक निजी कंपनी के स्वामित्व में है, और भारत सरकार को इस ट्रैक के लिए हर साल रॉयल्टी का भुगतान करना पड़ता है.
शकुंतला पैसेंजर: इस ट्रैक का नाम कैसे पड़ा?
अंग्रेजों के जमाने में इस ट्रैक पर एक खास ट्रेन चलती थी, जिसका नाम था शकुंतला पैसेंजर. यह ट्रेन सिर्फ पांच डिब्बों के साथ चलती थी और इसे स्टिम इंजन से खींचा जाता था. इसी ट्रेन के नाम पर इस ट्रैक का नाम शकुंतला रेलवे ट्रैक पड़ा. यह ट्रेन महाराष्ट्र के अमरावती से लेकर मुर्तजापुर तक के रूट पर चलती थी, और यह ट्रैक उस समय की सबसे महत्वपूर्ण मार्गों में से एक था.
भारत सरकार और रॉयल्टी का भुगतान
इतनी लंबी आजादी के बाद भी भारत सरकार इस ट्रैक के लिए हर साल करोड़ों रुपये की रॉयल्टी ब्रिटेन की इस कंपनी को देती है. यह उस समय के अंश के रूप में अस्तित्व में है, और सरकार इस पर कुछ भी नहीं कर पाती, क्योंकि यह ट्रैक ब्रिटेन की एक कंपनी के नियंत्रण में है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि जब यह ट्रैक अंग्रेजों के दौर में बनाया गया था, तो इसे एक विशेष कानूनी व्यवस्था के तहत ब्रिटिश कंपनी को सौंप दिया गया था, जो आज भी कायम है.
आखिरकार, यह सवाल उठता है कि 77 सालों के बाद भी भारत को इस ट्रैक का मालिकाना अधिकार क्यों नहीं मिला? हालांकि, इस मुद्दे पर भारत सरकार ने कुछ पहलें की हैं, लेकिन यह मामला अभी भी कानूनी अड़चनों और पेचीदगियों में फंसा हुआ है. भारत सरकार के लिए यह एक चुनौती बना हुआ है, क्योंकि ब्रिटिश कानूनों के चलते यह ट्रैक आज भी ब्रिटेन के नियंत्रण में है.