87,000 शहीद, हजारों लापता... भारत की कीमत पर जीता गया युद्ध, ऐसी तबाही जो दुनिया ने नहीं देखी

दूसरे विश्व युद्ध में भारत ने 25 लाख सैनिक भेजकर मित्र राष्ट्रों की जीत में अहम भूमिका निभाई. इस भीषण युद्ध में 87,000 भारतीय सैनिक शहीद हुए, जबकि हजारों घायल और युद्धबंदी बने. भारत की आर्थिक, औद्योगिक और सैन्य सहायता के बिना मित्र देशों की जीत संभव नहीं थी, हालांकि ये भागीदारी बिना भारतीय जनता की सहमति के हुई थी.

इतिहास के पन्ने जब-जब पलटे जाते हैं, तब-तब युद्ध की भीषण त्रासदियां सामने आती हैं. लेकिन दूसरे विश्व युद्ध ने जो तबाही मचाई, वो किसी और संघर्ष में देखने को नहीं मिली. इस युद्ध में करीब 7 करोड़ लोग मारे गए, जिसमें 2 करोड़ सैनिक और 5 करोड़ निर्दोष नागरिक शामिल थे. इस वैश्विक महायुद्ध में भारत ने भी अप्रत्याशित योगदान दिया- ना केवल सैनिक भेजे, बल्कि आर्थिक और सैन्य सहायता से भी मित्र देशों की जीत की नींव रखी.

उस दौर में भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था और ब्रिटेन ने मित्र राष्ट्रों के समर्थन में युद्ध में हिस्सा लिया था. ऐसे में भारत को भी ना चाहते हुए भी इस भयानक संघर्ष में झोंक दिया गया. भारतीय सैनिकों ने यूरोप से लेकर अफ्रीका और एशिया तक कई मोर्चों पर वीरता से लड़ाई लड़ी.

बढ़ती गई भारतीय सैनिकों की संख्या

दूसरे विश्व युद्ध के आरंभ में केवल 2 लाख भारतीय सैनिक मोर्चे पर भेजे गए थे. लेकिन युद्ध जैसे-जैसे आगे बढ़ा, ये संख्या बढ़कर 25 लाख हो गई. जो उस समय की किसी भी स्वेच्छिक सेना में सबसे बड़ी संख्या थी. ज्यादातर सैनिकों को सहायक भूमिका में रखा गया, लेकिन फिर भी इनकी भूमिका निर्णायक रही.

87,000 भारतीय सैनिकों ने दी जान

आंकड़ों के अनुसार, इस युद्ध में करीब 87,000 भारतीय सैनिकों ने शहादत दी, जबकि 34,354 घायल हुए और 67,340 सैनिक युद्धबंदी बनाए गए. इतनी बड़ी संख्या में बलिदान देने के बावजूद इनकी कहानी अक्सर इतिहास के हाशिये पर ही रह गई. ऐतिहासिक विश्लेषण मानते हैं कि अगर भारतीय सेना और भारत की आर्थिक सहायता नहीं होती, तो मित्र राष्ट्रों की जीत मुश्किल होती. भारत से भेजी गई सामग्री, हथियार, कपड़े और अन्य संसाधनों ने युद्ध के मोर्चों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

जापान के खिलाफ एशिया में दिखाई ताकत

भारतीय सैनिकों ने जापानी सेना के खिलाफ एशियाई मोर्चे पर प्रभावी लड़ाई लड़ी. उस समय भारत की फैक्ट्रियों में हथियार और गोला-बारूद का भारी उत्पादन हो रहा था, जो युद्ध में एक निर्णायक हथियार साबित हुआ. इस युद्ध में भारत की भागीदारी बिना देश की सहमति के हुई थी. ब्रिटिश सरकार के उस समय के वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने भारतीय राजनीतिक नेतृत्व से कोई परामर्श किए बिना ही भारत को युद्ध में शामिल कर दिया था. दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य पूर्व, अफ्रीका और यूरोप- कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं था जहां भारतीय सैनिकों की उपस्थिति ना रही हो. उन्होंने हर मोर्चे पर दुश्मनों से लोहा लिया और मित्र देशों की जीत की नींव रखी. इस युद्ध ने ब्रिटेन को आर्थिक और सैन्य रूप से काफी कमजोर कर दिया.

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13 April 2025, 05:00 PM IST

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