'समय और पैसा क्यों बर्बाद किया?' शरीर की गंध वाली पीएचडी वायरल होने पर सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस
Body Odour Phd: शरीर की गंध को नस्लवाद से जोड़ने वाले अध्ययन ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया है. अब लोग इसका अधय्यन करने वाले को खूब ट्रोल कर रहे हैं.
Body Odour Phd: सोशल मीडिया पर इन दिनों डॉ. ऐली लूक्स का नाम चर्चा में है. हाल ही में उन्होंने अपने एक्स हैंडल पर घोषणा की कि उन्होंने अपना शोध प्रबंध पेश कर 'बिना किसी सुधार के मौखिक परीक्षा' देकर पीएचडी पूरी कर ली है. उनके इस पोस्ट ने सोशल मीडिया पर लोगों का ध्यान आकर्षित किया है.
डॉ. लूक्स की थीसिस "ऑल्फैक्टरी एथिक्स: द पॉलिटिक्स ऑफ स्मेल इन मॉडर्न एंड कंटेम्परेरी प्रोज" शीर्षक से है. इसमें उन्होंने गंध को लिंग, वर्ग, यौन, नस्लीय और प्रजातियों की शक्ति संरचनाओं से जोड़ा है.
Thrilled to say I passed my viva with no corrections and am officially PhDone. pic.twitter.com/4qwCyFYocX
— Dr Ally Louks (@DrAllyLouks) November 27, 2024
उनके शोध का उद्देश्य यह दिखाना है कि कैसे गंध का उपयोग उत्पीड़न या शक्ति के निर्माण में होता है. थीसिस का पहला अध्याय विशेष रूप से इस बात की पड़ताल करता है कि किसी की गंध के आधार पर उसके वर्ग का अंदाजा लगाया जा सकता है, विशेष रूप से बेघर लोगों के मामले में.
अपने पोस्ट में डॉ. लूक्स ने लिखा,"मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि मैंने अपना वाइवा बिना किसी करेक्शन के पास कर लिया है और अब मैं पीएचडी धारक हूं." उन्होंने अपना अध्ययन उन लोगों के लिए शेयर किया है, जिन्हें इस विषय में रुचि है.
लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं
डॉ. लूक्स के इस अध्ययन पर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है. उनके पोस्ट को 3.2 मिलियन व्यूज और 2,000 से ज्यादा कमेंट्स मिले हैं.
आलोचनाएं और सवाल
एक यूजर ने लिखा, "आपने समय और पैसा ऐसे अध्ययन पर खर्च किया जिसका असल जिंदगी में कोई महत्व नहीं है."एक अन्य ने टिप्पणी की, "इस थीसिस को पास क्यों किया गया? इसका कोई तात्पर्य नहीं है."कई यूजर्स ने इसे टैक्स के पैसे का गलत इस्तेमाल करार दिया.
समर्थन और प्रशंसा
एक यूजर ने लिखा, "यह अध्ययन बताता है कि गंध के प्रति नापसंदगी नस्लवाद और वर्गवाद का रूप क्यों हो सकती है." कुछ लोगों ने इस अध्ययन को गहन और समाज के लिए प्रासंगिक बताया.
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाने का दावा
डॉ. लूक्स ने दावा किया है कि अब वह कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं. उनके शोध ने भले ही विवाद खड़े किए हो, लेकिन यह समाज में गंध और पहचान के जटिल संबंधों पर एक नई सोच पेश करता है.