शतरंज की चाल... भारत का एक ऐसा गांव, जहां लोगों को शराब और जुए से बचाया
केरल का एक छोटा सा गांव, मारोट्टीचाल, जहां एक समय शराब और जुए की लत ने लोगों को बर्बादी के कगार पर ला दिया था. अब 'भारत का शतरंज गांव' के रूप में प्रसिद्ध है. गांव के लोग शतरंज में माहिर हैं और 15 साल के गौरिशंकर जयराज जैसे खिलाड़ी भारत का नाम ऊंचा करने की दिशा में अग्रसर हैं. चारालियिल उन्नीकृष्णन की प्रेरणादायक पहल से इस गांव ने नशे और जुए से उबरकर शतरंज को अपनी संस्कृति बना लिया.

दक्षिण भारत के एक चायघर में टेबल पर मोबाइल फोन, बटुए और अधूरे चाय के प्याले रखे हुए हैं, लेकिन एक टेबल पर भीड़ जमा है. वहां, शतरंज की बिसात पर दो खिलाड़ी आमने-सामने हैं. उनमें से एक 15 साल के गौरिशंकर जयराज हैं, जो आंखों पर पट्टी बांधकर खेल रहे हैं. खेल की शुरुआत से ही उन्हें अपनी मानसिक कल्पना में शतरंज की पूरी बिसात को सहेजना और हर चाल को सही तरीके से याद रखना पड़ता है. एक निर्णायक (रेफरी) दोनों खिलाड़ियों की चालें जोर से बोलता है, ताकि गौरिशंकर सही तरह से खेल को समझ सकें.
प्रतिद्वंद्वी से कहीं आगे 15 साल के गौरिशंकर
गौरिशंकर के सामने बैठे बेबी जॉन की शिकस्त करीब दिख रही है. उनकी सिकुड़ती कंधे और तनावग्रस्त चेहरे की झलक साफ बता रही है कि वे 40 मिनट में चौथी बार हारने वाले हैं. बेबी जॉन कहते हैं कि गौरिशंकर महज 15 साल का है और पहले से ही शतरंज का एक अद्भुत खिलाड़ी है. वह आंखों पर पट्टी बांधकर भी मुझे हरा देता है!
भारत का 'शतरंज गांव' – मारोट्टीचाल
गौरिशंकर और बेबी जॉन केरल राज्य के थ्रिसूर जिले में बसे छोटे से गांव मारोट्टीचाल के निवासी हैं. यह गांव शतरंज प्रेमियों के लिए किसी पहचान का मोहताज नहीं है. 2000 के दशक की शुरुआत में यह गांव ‘भारत का शतरंज गांव’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ, क्योंकि यहां हर घर में कम से कम एक व्यक्ति शतरंज खेलना जानता है. गांव के हर नुक्कड़, किराने की दुकान, बस स्टॉप और मैदान में लोग शतरंज खेलते नजर आते हैं.
बेबी जॉन, जो मारोट्टीचाल शतरंज संघ के अध्यक्ष भी हैं, वो कहते हैं, “यहां 6,000 की आबादी में से करीब 4,500 लोग शतरंज में पारंगत हैं. यानी 75% लोग शतरंज खेलना जानते हैं.”
भारत को गौरवान्वित करने की चाहत
गौरिशंकर विश्व शतरंज महासंघ (FIDE) के अनुसार, भारत के टॉप 600 सक्रिय शतरंज खिलाड़ियों में शामिल हैं. उनका सपना है कि वे भारत को शतरंज में और ऊंचाइयों तक ले जाएं. सितंबर 2024 में भारत ने शतरंज ओलंपियाड में ओपन और महिला वर्ग में स्वर्ण पदक जीते. इसके बाद, भारत के सबसे युवा ग्रैंडमास्टर गुकेश डोम्माराजू (18 वर्ष) ने दिसंबर में विश्व शतरंज चैम्पियनशिप जीतकर इतिहास रच दिया. उसी महीने, भारतीय ग्रैंडमास्टर कोनेरू हम्पी ने FIDE महिला विश्व रैपिड शतरंज चैम्पियनशिप जीतकर देश को एक और बड़ी सफलता दिलाई. गौरिशंकर का लक्ष्य भी इन दिग्गजों की राह पर चलते हुए भारत को शतरंज की दुनिया में और ऊंचा उठाना है.
आज शतरंज के लिए मशहूर केरल का मारोट्टीचाल गांव कभी शराब और जुए की लत से जूझ रहा था. 1970 के दशक में, गांव के तीन परिवार घरेलू इस्तेमाल के लिए अखरोट-आधारित शराब बनाते थे. लेकिन 1980 के दशक की शुरुआत तक, यह गांव अवैध शराब के उत्पादन और बिक्री का केंद्र बन गया था. स्थानीय निवासी जयाराज मनाझी बताते हैं, "लोग सिर्फ शराब पी ही नहीं रहे थे, बल्कि अपने घरों में रातभर शराब बना और बेच रहे थे."
मारोट्टीचाल से यह अवैध शराब आसपास के गांवों में सप्लाई की जाने लगी. खेती करने वाले परिवार अपने मवेशियों और फसलों की देखभाल करना भूल गए. खेती से होने वाली आमदनी कम होने लगी, तो गांव के लोग शराब के अड्डों पर जुआ खेलने लगे.
गरीबी और भूख की मार
गांव में नियमित आय का अभाव था और शराब की लत ने कई परिवारों को कर्ज में डुबो दिया. एक स्थानीय निवासी, जो गुमनाम रहना चाहता है, बताता है कि छोटे बच्चों के पास पहनने के लिए कपड़े नहीं थे. कुछ बच्चे तो भूख से तड़पते थे. गांव के लोग इस बुरी स्थिति से उबरने की कोई उम्मीद नहीं देख रहे थे.
1980 के दशक के अंत में, गांव के पूर्व निवासी चारालियिल उन्नीकृष्णन की वापसी ने इस संकट से मुक्ति की एक नई रोशनी जगाई. युवा अवस्था में माओवादी आंदोलन से जुड़ने के कारण उनके परिवार ने उन्हें ठुकरा दिया था. जब वे अपने तीसवें वर्ष में पहुंचे, तो उन्होंने आंदोलन छोड़ दिया और मारोट्टीचाल लौटकर गांव के बीच में एक चाय की दुकान खोली. लेकिन शराब की लत से जकड़े अपने गांव को देखकर वे बेचैन हो गए. वे याद करते हुए कहते हैं, "हमारे समुदाय के लिए वो बहुत ही अंधकारमय समय था."
शराब के खिलाफ क्रांति
उन्नीकृष्णन ने अपने बचपन के दोस्तों को इकट्ठा किया और शराब बनाने वाले परिवारों की पत्नियों और माताओं से बातचीत शुरू की. वर्षों से अपने पतियों और बेटों की इस आदत से गुस्साई महिलाएं उनके साथ आने लगीं. धीरे-धीरे, उन्नीकृष्णन को यह जानकारी मिलने लगी कि कब और कहां शराब बनाई जाती है. रात के अंधेरे में, वे और उनके साथी उन घरों पर छापे मारते, जहां शराब बनाई और संग्रहीत की जाती थी. वे शराब के स्टॉक को नष्ट कर देते और शराब बनाने के उपकरणों को तोड़ देते.
मारोट्टीचाल की नई पहचान: शतरंज गांव
धीरे-धीरे, गांव से शराब और जुए का सफाया होने लगा. लोगों को अपने जीवन में एक नए उद्देश्य की जरूरत थी. उन्नीकृष्णन ने शतरंज को एक नई संस्कृति के रूप में गांव में बढ़ावा दिया. आज, मारोट्टीचाल ‘भारत का शतरंज गांव’ के नाम से प्रसिद्ध है, जहां हर घर में कम से कम एक व्यक्ति शतरंज खेलना जानता है.