गाय, बैल तो सही, लेकिन इस गांव में गधों की होती है पूजा, बनाया जाता है दुल्हन-VIDEO

Ajab-Gajab: राजस्थान के भीलवाड़ा के गोपाल कुम्हार बताते हैं कि उनका परिवार पिछले 60 से 70 सालों से गधों की पूजा की परंपरा निभा रहा है. पुराने समय में, जब परिवहन के अन्य साधन नहीं थे, तब किसान बैल की पूजा करते थे, उसी तरह हमारा समाज गधों की पूजा करता है.

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Ajab-Gajab: राजस्थान के भीलवाड़ा में दिवाली के अवसर पर कई परंपराएं निभाई जाती हैं, लेकिन यहां का मांडल गांव एक खास परंपरा के लिए जाना जाता है. यहां दिवाली के अगले दिन गधों की पूजा की जाती है. सबसे पहले, गधों को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और फिर उनकी पूजा अर्चना कर उन्हें दौड़ाया जाता है. यह परंपरा आज भी युवा पीढ़ी द्वारा जीवित रखी जा रही है.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, गोपाल कुम्हार, जो गधों की पूजा करते हैं, बताते हैं कि उनका परिवार पिछले 60 से 70 वर्षों से यह परंपरा निभा रहा है.  पुराने समय में, जब परिवहन का कोई साधन नहीं था, तब गधों के माध्यम से सामान का परिवहन किया जाता था. इसी कारण से गधों की पूजा की परंपरा की शुरुआत हुई. कुम्हार (प्रजापति) समाज ने हमेशा से गधों (बैशाखी नंदन) के पूजन का यह महत्व रखा है.

'इस दिन पूरा समुदाय एकत्र होता है'

इस खास दिन, हमारा पूरा समुदाय एकत्र होता है, और परिवार के सदस्य दूर-दूर से यहां आते हैं ताकि इस आनंदमय अवसर का अनुभव कर सकें. पुराने समय में, कुम्हार समाज के लोग तालाब से मिट्टी लाने के लिए गधों का इस्तेमाल करते थे. हालांकि, गधों की संख्या कम हो रही है, फिर भी हमारा समाज इस परंपरा को बनाए रखता है. जब गधों की कमी होती है, तो हम अन्य जगहों से गधे लाने की व्यवस्था करते हैं.

गधों की संख्या में या रही कमी 

गोपाल बताते हैं कि पहले तालाब की पाल से मिट्टी लाने के लिए गधों का उपयोग किया जाता था. लेकिन आधुनिकता के साथ, गधों की संख्या में कमी आई है, जिससे यह प्राचीन परंपरा लगभग समाप्त हो गई थी. फिर भी, हम युवाओं ने इस परंपरा को फिर से जीवित रखने का प्रयास किया है. हम हर साल दिवाली के दूसरे दिन गधों की पूजा करते हैं. आज के समय में गधों को पाना मुश्किल है, लेकिन हम फिर भी कहीं से गधे लाकर उन्हें पूजा करते हैं. First Updated : Sunday, 03 November 2024

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