ट्रैडिंग न्यूज. पति ने अपनी पत्नी से तलाक लेने के लिए 2013 में सबसे पहले करनाल की फैमिली कोर्ट में अर्जी दी थी. यह मामला उस समय काफी चर्चित हुआ था, क्योंकि अदालत ने इस तलाक की अर्जी को खारिज कर दिया था. इस फैसले के बाद, पति ने इस मामले को लेकर हाई कोर्ट में अपील की, जहां यह मामला लगभग 11 साल तक लंबित रहा.
हाई कोर्ट ने भेजा मध्यस्थता केंद्र
हाई कोर्ट में लंबित रहने के बाद, इस मामले को मध्यस्थता के लिए भेज दिया गया. मध्यस्थता केंद्र में पति और पत्नी के बीच बातचीत हुई और दोनों पक्षों ने एक समाधान निकालने की कोशिश की. इस प्रक्रिया के दौरान दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से मामले का हल निकालने का निर्णय लिया.
3.07 करोड़ रुपए का भुगतान
मध्यस्थता के दौरान, पति, पत्नी और बच्चों ने कुल 3.07 करोड़ रुपये के भुगतान पर तलाक के लिए सहमति जताई. यह एक बड़ा वित्तीय सौदा था, जो दोनों पक्षों के बीच समझौते के रूप में हुआ. पति ने अपनी संपत्ति बेचकर यह रकम जुटाई और पत्नी को भुगतान किया।
जमीन बेचकर जुटाई रकम
तलाक के इस समझौते के लिए पति ने अपनी जमीन बेचकर दो करोड़ रुपये का डिमांड ड्राफ्ट पत्नी को दिया. इसके साथ ही, उसने 50 लाख रुपये नकद भी दिए. इन पैसों को फसल बेचकर जुटाया गया था. इसके अतिरिक्त, पति ने पत्नी को 40 लाख रुपए के सोने-चांदी के गहने भी दिए, जो इस समझौते का हिस्सा थे.
लंबी कानूनी प्रक्रिया
2013 में शुरू हुए इस मामले इसकी लंबी कानूनी प्रक्रिया ने इसे और जटिल बना दिया था. लगभग 11 साल तक यह मामला हाई कोर्ट में लंबित रहा, जिससे दोनों पक्षों को काफी समय तक मानसिक और भावनात्मक दबाव का सामना करना पड़ा. हालांकि, मध्यस्थता के माध्यम से अंततः एक समाधान निकल आया, जो दोनों पक्षों के लिए स्वीकार्य था. इस मामले ने यह साबित किया कि तलाक के मामलों में मध्यस्थता एक प्रभावी उपाय हो सकती है, जिससे दोनों पक्ष आपसी सहमति से विवादों का समाधान कर सकते हैं, बिना लंबी कानूनी प्रक्रिया के। First Updated : Tuesday, 17 December 2024