तवायफों का नाम सुनते ही हमारे मन में कई तरह के ख्याल आते हैं. इसके पीछे की असली वजह है कि हमें बचपन से बताया जाता है कि तवायफ कोठे पर देह व्यापार करती हैं. जिसे समाज में हीन दृष्टि से देखा जाता है, मगर लोग कहते हैं कि पुराने समय में तवायफों का असली काम नाच-गाना महफिल सजाना हुआ करता था. तवायफों को एक फनकार के रूप में देखा जाता था. आज हम इस बारे में इसलिए बात कर रहें हैं क्योंकि एक तवायफ ऐसी भी थी जिससे भारत की शान महात्मा गांधी को मदद मांगने की जरूरत पड़ गई थी.
उनकी गायकी के चर्चे दूर-दूर तक थे
आपको बता दें कि साल 1903 में देश में एक ऐसी तवायफ हुआ करती थी जिसकी आवाज में जादू हुआ करता था. उनकी आवाज सुनते ही लोग दिवाना हो जाते थे. वहीं इनका गाना भी रिकॉर्ड किया गया था जिसे साल 1903 के समय में खूब सुना जाता था. उस गाने से भारतीय संगीत में कई तरह के बदलाव देखे गए थे. जिसके बारे में हम बात कर रहें हैं उनका नाम था गौहर जान.
जिसने अपने कोठे पर सीखे संगीत को दुनिया के सामने पेश किया था. उनकी गायकी के बारे में इस बात से समझा जा सकता है कि उस समय में उनकी फीस 3 हजार रुपए हुआ करती थी. साल 1903 में ये रकम बहुत बड़ी हुआ करती थी. गौहर जान भले ही तवायफ थीं मगर महात्मा गांधी को भी उनसे सहायता लेने की जरूरत पड़ गई थी.
स्वराज निधि के समय की पूरी कहानी
ये कहानी उस समय की है जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत आए थे तो उन्होंने देश को ब्रिटिश राज्य से बचाने के लिए स्वराज निधि की शुरुआत की थी. उस दरमियान गौहर जान अमीरों की गिनती में आया करती थी. कहा जाता है कि साल 1903 के समय उनकी नेटवर्थ 1 करोड़ रुपए हुआ करती थी. जिसके बाद महात्मा गांधी ने गौहर जान से मदद करने की बात कही. इस बात पर तावयफ ने शर्त रख दिया कि आपको मेरे कोठे पर मेरा डांस परफॉर्मेंस देखने आना पड़ेगा.
मगर जब कोठे पर गौहर जान मुजरा करने पहुंची तो उन्होंने बापू को नहीं पाया. बल्कि उनके बदले महात्मा गांधी ने मौलाना शौकत अली को भेज दिया था. जिस बात से नाराज होकर गौहर जान ने 24 हजार रुपए की मदद करने के बजाय मात्र 12 हजार रुपए दिए, और कहा कि महात्मा गांधी को कह देना वह अपना वादा नहीं निभा सकते तो मैं भी पूरा पैसा नहीं दूंगी. First Updated : Wednesday, 22 May 2024