इन राज्यों में मिल रहे हैं टीबी के सबसे ज्यादा मरीज, दवाओं की कमी बन रही चुनौती

माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से फैलने वाली एक संक्रामक बीमारी, भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में एक बड़ी चुनौती बनी हुई है. यह बीमारी आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करती है, लेकिन गंभीर मामलों में यह रीढ़, मस्तिष्क और किडनी जैसे महत्वपूर्ण अंगों को भी अपनी चपेट में ले सकती है. भारत सरकार ने 2025 तक देश को टीबी-मुक्त बनाने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है.

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Health: ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) एक गंभीर संक्रामक बीमारी है, जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Tuberculosis) नामक बैक्टीरिया से होती है. यह आमतौर पर फेफड़ों को प्रभावित करता है लेकिन गंभीर मामलों में अन्य अंगों, जैसे रीढ़, मस्तिष्क और किडनी को भी प्रभावित कर सकता है. भारत सरकार ने 2025 तक टीबी को खत्म करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है, लेकिन हाल ही में आई रिपोर्ट्स के अनुसार, इस लक्ष्य को हासिल करने में दवाओं की कमी सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरी है.

टीबी के मामले और भारत की स्थिति

आपको बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, भारत में पिछले एक दशक में टीबी के मामलों में 18% और मौतों में 24% की कमी आई है. यह उपलब्धि वैश्विक औसत से अधिक है. लेकिन 2023 में भी देश में 27 लाख टीबी मामलों का अनुमान है, जिनमें से 85% मरीजों को ही समय पर दवा मिल पा रही है. यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारत टीबी उन्मूलन के प्रयासों में आगे बढ़ रहा है, लेकिन दवाओं की आपूर्ति में कमी मिशन की गति को धीमा कर रही है.

दवाओं की कमी

बताते चले कि टीबी उपचार में दो चरण शामिल हैं. पहले चरण में मरीज को दो-तीन महीने तक चार एंटीबायोटिक्स का संयोजन दिया जाता है, जबकि दूसरे चरण में चार से सात महीने तक तीन एंटीबायोटिक्स के साथ एक अतिरिक्त दवा दी जाती है. 2022 से 2024 तक इन दवाओं की आपूर्ति में गिरावट देखी गई है. वहीं 2023 में पहले चरण की दवाओं की आपूर्ति में 56.5% और दूसरे चरण में 23% की कमी दर्ज की गई. नोडल परचेज एजेंसी द्वारा प्रशासनिक कारणों से 26 में से 9 टेंडर्स रद्द कर दिए गए, जबकि तीन आपूर्तिकर्ताओं को जाली गारंटी और गलत मूल्य निर्धारण के कारण ब्लैकलिस्ट कर दिया गया.

क्या कर रही है सरकार?

केंद्र सरकार ने राज्यों को अस्थायी रूप से लोकल स्तर पर दवाएं खरीदने के निर्देश दिए हैं. साथ ही, मरीजों को दवाएं उपलब्ध न होने पर इसके लिए धन मुहैया कराने का प्रावधान किया गया है. हालांकि, यह समाधान स्थायी नहीं है और बफर स्टॉक बनाए रखने की आवश्यकता है. विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मरीज दवा लेने से चूकते हैं, तो दवा-प्रतिरोधी टीबी के मामलों में वृद्धि हो सकती है.

टीबी का इलाज और खर्च

वहीं बताते चले कि सरकारी अस्पतालों में टीबी का इलाज मुफ्त है, लेकिन प्राइवेट अस्पतालों में इलाज का खर्च अधिक है. छह महीने के इलाज के लिए मरीज को लगभग 10,000 रुपए और दवा पर हर महीने 20-30 हजार रुपए खर्च करने पड़ सकते हैं.

कहां हैं सबसे अधिक मामले?

बता दें कि उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में टीबी के सबसे अधिक मामले दर्ज हुए हैं. उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 6.3 लाख मरीज हैं, जो पूरे देश के टीबी मामलों का बड़ा हिस्सा है.

2025 का मिशन, क्या हो सकता है समाधान?

बहरहाल, टीबी के खिलाफ भारत की लड़ाई को सफल बनाने के लिए दवा आपूर्ति में सुधार, जागरूकता बढ़ाने और स्थानीय स्तर पर मजबूत स्वास्थ्य ढांचे की जरूरत है. यदि इन पहलुओं पर ध्यान दिया जाए, तो भारत 2025 तक टीबी को खत्म करने के अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है. First Updated : Saturday, 07 December 2024