एक प्रोफेसर से कैसे भगवान बन गया ओशो ! खुले शब्दों में सेक्सुअल लिबरेशन की करते थे वकालत

ओशो जिन्हें दुनिया भगवान रजनीश के नाम से जानती हैं वह एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता भी थे. उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन काल में एक विवादास्पद रहस्यदर्शी गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया. उन्होंने अलग-अलग धर्मों और विचारधारा पर देश भर में प्रवचन दिया. शुरुआती दौर में उन्हे केवल रजनीश के तौर पर जाना जाता था लेकिन नव संन्यास आंदोलन की शुरुआत करने के बाद वो खुद को ओशो कहने लगे.

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'ओशो' का मतलब वो शख्स होता है जो अपने आपको सागर में विलीन कर लिया हो. ओशो को दुनिया से गए लगभग 33 साल हो चुके हैं लेकिन आज भी उनकी लिखी किताबें बिक रही हैं. उनके वीडियो और ऑडियो सोशल मीडिया पर आज भी वायरल होते रहते हैं. ओशो की लोकप्रियता इसलिए भी देखने को मिलती है क्योंकि वो किसी परंपरा, दार्शनिक, विचारधारा या धर्म का हिस्सा कभी नहीं रहे. आज हम आपको ओशो की भगवान बनने की कहानी बताने जा रहे हैं तो चलिए जानते हैं.

11 दिसंबर, 1931 को मध्यप्रदेश में जन्मे ओशो का असली नाम चंद्रमोहन जैन था. वसंत जोशी ने ओशो की जीवनी पर एक किताब 'द ल्यूमिनस रेबेल लाइफ़ स्टोरी ऑफ़ अ मैवरिक मिस्टिक’ लिखी है जिसमें उन्होंने बताया है कि. ओशो भी एक सामान्य बच्चे की तरह ही पले बढ़े लेकिन उस समय भी उनमें कुछ अलग था जो उन्हें दूसरे बच्चों से अलग करता था. बचपन से ओशो को लोगों में दिलचस्पी थी. यही वजह है कि वो अपने से बाहर की दुनिया और मानव मस्तिष्क पर उनकी बारीक नजर हुआ करती थी.

ओशो

1. सवाल पुछने पर कॉलेज से निकाल गए ओशो

ओशो साल 1951 में बीए पास करने के बाद जबलपुर के हितकारिणी कॉलेज में दाखिला लिए.  क्लास के दौरान अक्सर प्रोफेसर से उनकी बहस हो जाती थी क्योंकि वो सवाल बहुत पूछते थे. प्रोफेसर उनके सवालों का जवाब देते -देते थक जाते और समय पर अपना कोर्स पूरा नहीं कर पाते थे. वसंत जोशी ने अपने किताब में लिखा है कि, अंत में जब प्रोफेसर से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उन्होंने प्रधानाचार्य को अल्टीमेटम दे दिया. उन्होंने कहा कि कॉलेज में या वो रहेंगे या फिर ओशो. इसके बाद ओशो को दफ्तर में बुलाकर प्रधानाचार्य ने कॉलेज छोड़ने की बात कही लेकिन उन्होंने कहा कि इससे उनकी कोई गलती नहीं है लेकिन वो ये भी नहीं चाहते थे कि प्रोफेसर इस्तीफा दे. विचार करने के बाद ओशो ने प्रधानाचार्य से इस शर्त पर कॉलेज छोड़ने को राजी हुए कि, वो किसी और कॉलेज में उनका दाखिला कर दे.

2. ज्यादा पढ़ने के कारण होता था सिरदर्द

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक युवावस्था में ओशो के सिर में हमेशा दर्द होती रहती थी.  एक बार उनका सिर दर्द इतना बढ़ गया था कि, उनके फुफरे भाई क्रांती और अरविंद को उनके पिता को बुलाना पड़ा. उनके पिता का कहना था कि, ज्यादा पढ़ाई के कारण रजनीश के सिर में दर्द होता है. उन्होंने बताया कि वह अक्सर सिर दर्द की वजह से माथे पर बाम लगाकर रहते लेकिन पढ़ना नहीं छोड़ते थे. ओशो ने अपने करियर की शुरुआत 1957 में रायपुर के संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रवक्ता बन कर की. सन 1960 में वो जबलपुर विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर बने. उस जमाने में ओशो को एक तेज तर्रार अध्यापक माना जाता था. इसी दौरान वो आध्यात्मिक गुरु के रूप में अपना करियर शुरू किया और फिर पूरे भारत का दौरा करने लगे. ओशो जहां भी जाते थे अपना खुला विचार पेश करते थे वो ज्यादातर राजनीति, धर्म और सेक्स पर विवादास्पद बयान देते थे.

आध्यात्मिक गुरु ओशो

3. मौलिक विचारों के कारण हुए प्रसिद्ध

एक आध्यात्मिक गुरु होने के नाते ओशो का मानना था कि, संगठित धर्म लोगों का आध्यात्मिक ज्ञान देने के बजाय विभाजन का कारण बन सकती है. ओशो  धर्म और राजनीति को एक ही सिक्के के दो पहलू मानते थे जिसका एकमात्र उद्देश्य लोगों पर नियंत्रण करना है. उन्होंने खुले शब्दों में सेक्सुअल लिबरेशन की वकालत करते हुए अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाया. जाने-माने लेखक खुशवंत सिंह ने उनकी तारीफ में लिखा है कि, ओशो भारत में पैदा हुए सबसे मौलिक विचारको में से एक थे. वो सबसे ज्यादा विचारशील, वैज्ञानिक और नए विचारों वाले शख्स थे. बता दें  कि, ओशो ने शुरू से ही सदियों से चली आ रही धार्मिक धारणाओं और कर्मकांडों के ख़िलाफ़ अपनी आवाज उठाई.

4. अपने हर अनुयायी को  'मां' कहते थे ओशो

अपने संपर्क में आए सभी अनुयायी को ओशो मां का नाम देते थे क्योंकि उनका मानना था कि महिला मातृत्व का प्रतीक होती है. इसके अलावा वो हर पुरुष को स्वामी कहते थे ताकि उन्हें हमेशा याद रहे कि उन्हें अपने आप पर नियंत्रण रखना है. जो भी व्यक्ति ओशो का शिष्य बनता था उसे वो एक लकड़ी की बनी एक माला देते थे जिसमें एक लॉकेट होता था और उसके दोनों तरफ ओशो की फोटो लगी होती थी. ओशो ये लॉकेट देते समय अपने शिष्यों से हमेशा अपने गले में पहनकर रहने की सलाह भी देते थे ताकि वो अपने आप को भूतकाल से अलग कर सके. ओशो ये भी चाहते थे कि उनके शिष्य लाल या फिर नारंग कपड़े ही पहने.

भगवान रजनीश 

5. भारतीय संसद में उठी थी ओशो पर बैन करने की मांग

अपने विवादित बयान को लेकर लोकप्रियता हासिल करने वाले ओशो हिंदी या फिर अंग्रेजी में बयान दिया करते थे.  भाषण देते समय अपने अनुयायियों को निर्देश देते थे कि, वो अपनी आंख बंद रखें. विन मैकॉर्मैक ने अपनी किताब ‘द रजनीश क्रोनिकल’ में लिखा है कि, उनके विचार इतने विवादुत होते थे कि, कई बार भारतीय संसद में उन पर प्रतिबंध लगाने के लिए चर्चा हुई. दरअसल, ओशो अलग अलग धर्म के लोगों को आकर्षित करने के लिए अलग-अलग विषय चुनते थे. हर आयु धर्म नस्ल के लोग उनका भाषण सुनते थे. जो भी उनके संपर्क में आता था या तो उनका शिष्य बन जाता था या फिर विरोधी बन जाता था. First Updated : Friday, 14 June 2024