भारत में अपराध के मामले लगातार सामने आते रहे हैं. किसी भी राज्य की पुलिस के लिए कैदियों को हिरासत में रखकर उनसे पूछताछ करना एक सामान्य कानूनी प्रक्रिया है. आपराधिक मामले में आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद, पुलिस उसे थाने के लॉकअप में हिरासत में रखती है. इस दौरान पुलिस आरोपी से मामले की जानकारी जुटाने के लिए पूछताछ कर सकती है, जिसके लिए उन्हें मजिस्ट्रेट से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती.
हालांकि, पुलिस को आरोपी को 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य होता है. इसके बाद मजिस्ट्रेट यह तय करता है कि आरोपी को पुलिस हिरासत में रखा जाएगा या न्यायिक हिरासत में भेजा जाएगा. पुलिस हिरासत में आरोपी की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी पुलिस विभाग की होती है. हत्या, लूट, चोरी जैसे गंभीर मामलों में आमतौर पर आरोपियों को पुलिस कस्टडी में रखा जाता है.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि कई बार दोषियों से पूछताछ के दौरान उनकी मौत भी हो जाती है? केंद्र सरकार के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में हिरासत में मौतों का आंकड़ा सबसे ज्यादा है.
2020-21: इस साल उत्तर प्रदेश में हिरासत में 451 मौतें दर्ज की गई
2021-22: यह आंकड़ा बढ़कर 501 हो गया
पश्चिम बंगाल दूसरे स्थान पर रहा
2020-21: इस दौरान पश्चिम बंगाल में 185 मौतें हुई
2021-22: यह संख्या बढ़कर 257 हो गई
देशभर में हिरासत में मौतों का हाल
पूरे भारत में हिरासत में मौतों के आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं
2020-21: पूरे देश में 1940 लोगों की मौत हुई
2021-22: यह आंकड़ा बढ़कर 2544 तक पहुंच गया
हिरासत में मौतें ना केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन करती हैं, बल्कि यह पुलिस तंत्र और न्याय प्रणाली पर भी सवाल उठाती हैं. इन घटनाओं को रोकने और दोषियों को न्याय दिलाने के लिए सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है.
First Updated : Friday, 10 January 2025