बिना बैकअप ऑफर के शख्स ने इस बड़ी कंपनी से छोड़ी नौकरी, गिनाएं 6 कारण

पुणे के एक इंजीनियर भूपेंद्र विश्वकर्मा ने एक लिंक्डइन पोस्ट के माध्यम से साझा किया कि उन्होंने इंफोसिस जैसी प्रतिष्ठित कंपनी से नौकरी क्यों छोड़ी. उनके पास दूसरी नौकरी का कोई प्रस्ताव भी नहीं था. इस पोस्ट में उन्होंने छह प्रमुख कारणों का जिक्र किया.

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भूपेंद्र विश्वकर्मा ने कहा कि उन्हें अपनी नौकरी छोड़ने का कठिन निर्णय लेना पड़ा, जबकि वे अकेले ही अपने परिवार का खर्चा उठा रहे थे. भूपेंद्र ने इंफोसिस के भीतर व्याप्त कुछ महत्वपूर्ण चीजों को उजागर किया, जो न केवल उनके लिए, बल्कि कई अन्य कर्मचारियों के लिए भी चुनौतीपूर्ण थे.

कई समस्याओं का किया सामना

भूपेंद्र ने अपनी पोस्ट में कहा, "इंफोसिस में काम करने के दौरान मैंने कई समस्याओं का सामना किया, जिन्हें नजरअंदाज किया गया. इन समस्याओं का हल न मिलने पर मुझे बिना किसी दूसरे ऑफर के अपनी नौकरी छोड़ने का निर्णय लेना पड़ा." उन्होंने उन मुद्दों को स्पष्ट रूप से उजागर किया, जो एक बड़े कॉर्पोरेट कार्यस्थल में आमतौर पर अनदेखी की जाती हैं, जो अन्य कर्मचारियों के मानसिक और पेशेवर स्वास्थ्य पर असर डालती है. 

जानें 6 प्रमुख कारण

1. वित्तीय तरक्की का अभाव: भूपेंद्र ने बताया कि तीन साल तक कड़ी मेहनत करने के बावजूद उन्हें कोई वित्तीय फायदा नहीं मिला. वे सिस्टम इंजीनियर से सीनियर सिस्टम इंजीनियर के पद पर पदोन्नति प्राप्त कर चुके थे, लेकिन उनके वेतन में कोई वृद्धि नहीं हुई. भूपेंद्र ने कहा, "मैंने तीन वर्षों तक कड़ी मेहनत की और उम्मीदों पर खरा उतरा, फिर भी मुझे कोई वित्तीय सम्मान नहीं मिला."

2. कार्यभार का अनुचित वितरण: भूपेंद्र की टीम में जब कर्मचारियों की संख्या 50 से घटकर 30 हो गई, तो प्रबंधन ने बिना किसी सहारे के शेष कर्मचारियों पर अतिरिक्त कार्यभार डाल दिया. उन्होंने यह भी कहा कि प्रबंधन ने नए कर्मचारियों को नियुक्त करने के बजाय मौजूदा कर्मचारियों पर अतिरिक्त काम डालने का आसान रास्ता अपनाया. इसके लिए न तो कोई पारिश्रमिक दिया गया और न ही किसी प्रकार की मान्यता दी गई.

3. स्थिर कैरियर की संभावना का अभाव: भूपेंद्र ने बताया कि उन्हें एक घाटे में चल रहे खाते में काम करने का जिम्मा सौंपा गया था, जिससे उनके करियर की संभावनाएं ठप हो गईं. उनके प्रबंधक ने भी यह स्वीकार किया था कि जिस खाते पर वे काम कर रहे थे, वह घाटे में था. इस स्थिति का असर उनकी वेतन वृद्धि और करियर प्रगति पर पड़ा, जिससे वे पेशेवर रूप से ठहराव महसूस करने लगे.

4. विषाक्त क्लाइंट वातावरण: भूपेंद्र ने कहा कि कई क्लाइंट्स की अवास्तविक अपेक्षाएं और उनका तत्काल उत्तर की मांग करना एक तनावपूर्ण वातावरण बना देता था. छोटे-छोटे मुद्दों पर लगातार दबाव बनाना और तनाव बढ़ाना एक कारण बना, जिसने कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाया.

5. मान्यता का अभाव: भूपेंद्र ने बताया कि उन्हें सहकर्मियों और वरिष्ठों से प्रशंसा तो मिलती थी, लेकिन इसके बावजूद उनका कार्य प्रदर्शन कभी भी किसी प्रकार की पदोन्नति, वेतन वृद्धि या करियर में उन्नति के रूप में परिणामित नहीं हुआ. उनका मानना था कि उनकी कड़ी मेहनत का शोषण किया जा रहा था, न कि उसे उचित मान्यता दी जा रही थी.

6. ऑनसाइट अवसरों में क्षेत्रीय पूर्वाग्रह: भूपेंद्र ने यह आरोप भी लगाया कि ऑनसाइट भूमिकाएं योग्यता के आधार पर नहीं, बल्कि भाषाई प्राथमिकताओं के आधार पर दी जाती थीं. उन्होंने कहा, "तेलुगू, तमिल और मलयालम बोलने वाले कर्मचारियों को अक्सर ऑनसाइट अवसरों में प्राथमिकता दी जाती थी, जबकि हिंदी बोलने वाले कर्मचारियों को नज़रअंदाज़ किया जाता था. भले ही वे कितने भी योग्य क्यों न हों. यह साफ़ पक्षपाती व्यवहार था, जो न केवल अनुचित था बल्कि कर्मचारियों के मनोबल को भी गिराता था."

भूपेंद्र ने स्पष्ट किया कि यह समस्याएं केवल उनके व्यक्तिगत अनुभवों तक सीमित नहीं थीं, बल्कि यह उन अनगिनत कर्मचारियों की समस्याओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो इन व्यवस्थागत विफलताओं का सामना कर रहे हैं, उन्होंने अपनी पोस्ट में कहा, "मैंने अपनी नौकरी इसलिए छोड़ी क्योंकि मैं किसी ऐसे संगठन के लिए काम नहीं कर सकता था जो इन बुनियादी मुद्दों को नजरअंदाज करता है. यह संगठन अपने कर्मचारियों की भलाई की बजाय उनका शोषण करता है."

वायरल हुई पोस्ट

भूपेंद्र की यह पोस्ट अब सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. इसने कॉर्पोरेट कार्य संस्कृति के बारे में बहस छेड़ दी. कई उपयोगकर्ताओं ने अपनी राय साझा की है. कुछ ने भूपेंद्र के अनुभवों से मेल खाते हुए अपनी कहानी भी बताई. एक उपयोगकर्ता ने कंपनी की पदोन्नति नीति पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सिस्टम इंजीनियर से सीनियर सिस्टम इंजीनियर बनने को पदोन्नति नहीं, बल्कि केवल एक सामान्य प्रगति माना जाता है. भूपेंद्र ने इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए यह सवाल उठाया कि प्रौद्योगिकी विश्लेषक बनने के लिए क्या मापदंड हैं. First Updated : Saturday, 11 January 2025