धरती से जल्द गायब हो जाएंगे मर्द! वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी ने बढ़ाई चिंता, होश उड़ा देगा वजह
हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक ऐसा रिसर्च किया है जो सभी को हैरान कर रहा है. प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक धरती से धीरे-धीरे पुरुषों की संख्या कम होती चली जाएगी. एक समय ऐसा आएगा जब धरती से मर्द पूरी तरह से गायब हो जाएंगे.
हाल ही में आई एक वैज्ञानिक रिपोर्ट में ऐसा दावा किया गया है कि धीरे-धीरे धरती से मर्दों की संख्या घट सकती है. इसका कारण है Y क्रोमोसोम का कमजोर होना, जो पुरुषों के लिंग का निर्धारण करता है. प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार, Y क्रोमोसोम ने समय के साथ बड़ी मात्रा में जीन खो दिए हैं, और अगर यह प्रवृत्ति जारी रहती है, तो भविष्य में पुरुषों का जन्म ही बंद हो सकता है.
कैसे होता है लिंग का निर्धारण?
इंसानों में दो प्रकार के गुणसूत्र X और Y होते हैं. X और Y क्रोमोसोम के संयोजन से यह तय होता है कि किसी बच्चे का लिंग क्या होगा. जहां XX क्रोमोसोम से लड़की का जन्म होता है, वहीं XY क्रोमोसोम से लड़का जन्म होता है. Y क्रोमोसोम लड़के का लिंग निर्धारित करने में महत्वपूर्ण होता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने पाया है कि Y क्रोमोसोम धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है. एक समय ऐसा भी आ सकता है जब यह पूरी तरह से खत्म हो जाएगा, जिससे धरती पर सिर्फ लड़कियों का ही जन्म होगा.
Y क्रोमोसोम क्यों हो रहा कमजोर?
ऑस्ट्रेलियाई आनुवंशिकीविद् जेनी ग्रेव्स का कहना है कि Y क्रोमोसोम अंडकोष में पाया जाता है, जो उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) की संभावनाओं से घिरा होता है. अंडकोष में कोशिकाओं का विभाजन लगातार होता रहता है, जिससे म्यूटेशन का खतरा बढ़ जाता है. इसके कारण Y क्रोमोसोम धीरे-धीरे अपने जीन खोता जा रहा है. जहां एक समय Y क्रोमोसोम में करीब 900 जीन होते थे, अब इसमें केवल 45 जीन बचे हैं. अगर यह जीन खत्म होते रहे, तो भविष्य में पुरुषों का जन्म असंभव हो जाएगा.
क्या हमें अभी घबराने की जरूरत है?
जेनी ग्रेव्स के अनुसार, यह स्थिति अभी घबराने लायक नहीं है. Y क्रोमोसोम के पूरी तरह से खत्म होने में लगभग 60 से 70 लाख साल लग सकते हैं. इस दौरान विकास प्रक्रिया के जरिए हमारे शरीर में एक नया लिंग निर्धारण जीन विकसित हो सकता है, जैसा कि कुछ जीवों में देखा गया है. Y क्रोमोसोम के खत्म होने की आशंका ने वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती बन गई है. हालांकि, कयास लगाया जा रहा है कि भविष्य में तकनीक और विकास के जरिए इस समस्या का समाधान खोजा जा सकता है.