भूख मिटाने के लिए इंसानों को खा जाते हैं ये आदिवासी! अंतिम संस्कार के समय खाते हैं इंसानी दिमाग

For Tribe: अक्सर लोग कहते हैं कि, भूख लगने पर अपनी मनपसंद चीज को न भी मिले तो भी खाना खा लेते हैं. लेकिन क्या आपने सुना है कि, कोई अपने ही परिवार के लोगों को खा जाए? ये शायद ही आपने सुना होगा. आज हम आपको एक ऐसे ही जनजाति के बारे में बताने जा रहे हैं जो इंसान तो दूर अपने माता पिता को भी नहीं छोड़ते हैं और उन्हें खा जाते हैं.

JBT Desk
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Papua New Guinea: दुनिया में कई तरह की जनजातियां हैं, इनमें से कुछ अपनी अजीबो गरीब-प्रथाओं के लिए काफी मशहूर है. आज हम आपको एक ऐसी ही जनजाति के बारे में बताएंगे जो अपने ही परिवार को खा जाते हैं. ये जनजाति नरभक्षी कहलाते हैं जिनका रहन सहन आम इंसान के तुलना में काफी अलग होता है. खास तौर पर अफ्रीकी जनजातियों की बात करें तो इनके रस्म और रिवाज ऐसे हैं कि आप सुनकर दंग रह जाएंगे. तो चलिए आज हम आपको एक नरभक्षी जनजाति के बारे में बताते हैं जो इंसान के साथ-साथ उसके दिमाग खाने के लिए मशहूर हैं.

दरअसल, हम जिस जनजाति के बात कर रहे हैं वो पापुआ न्यू गुएना में रहते हैं. डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक फोर नाम की ये जनजाति अपनों के अंतिम संस्कार के तौर पर उन्हें खा जाते थे. हालांकि, वो शरीर का एक हिस्सा छोड़ देते थे क्योंकि वह बेहद कड़वा होता है.

नरभक्षी जनजाति

नरभक्षी का मतलब एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के मांस को खाना होता है. इसे आदमखोर भी कहा जाता है. फोर नाम की एक जनजाति की एक परंपरा है कि, वो अंतिम संस्कार से समय मरे हुए इंसान को खा जाते हैं चाहे वो उसके परिवार का ही सदस्य क्यों न हो. यह जनजाति Papua New Guinea के ओकापा जिले में रहते हैं. यहां 1960 के दशक तक परंपरा थी कि वो लोग परिजनों की मौत के बाद उन्हें जलाने ये दफनाने की बजाय खा जाते थे. वो ऐस इसलिए करते थे ताकि मरे हुए इंसान को कीड़े मकोड़े ने खाए. मरने के बाद अपने परिवार के द्वारा खाए जाने को अपना सम्मान मानते थे.

दिमाग खाने की परंपरा

लिंडेन बॉम नाम के एक ऑस्ट्रेलियन के रिपोर्ट के मुताबिक, फोर जनजाति के लोग मरे हुए इंसान की पूरी बॉडी खा जाते हैं लेकिन एक हिस्सा छोड़ देते हैं. इसकी वजह यह है कि, ये हिस्सा काफी कड़वा होता है. इस जनजाति की परंपरा ये भी है कि, अगर किसी महिला की मौत हुई है तो उसे घर की महिलाओं ही खा सकती है. इस परंपरा में इंसानी दिमाग भी शामिल था.

जब भी इस जनजाति को कोई सदस्य की मौत होती थी तो ये लोग दावत करते थे जिसमें पुरुष शरीर का मांस खाते थे और महिलाएं दिमाग खाती थी.  फोर जनजाति के लोग ये प्रथा अपने प्रियजनों को सम्मान देने के लिए करते थे. उनका मानना था कि, अगर उनके शरीर को दफनाया जाएगा तो कीड़े मकोड़े खा जाएंगे इसलिए वो खुद ही मृतक को खा जाते थे.

कैसे शुरू हुई परंपरा

1950 के दौर में वैज्ञानिक ने इस परंपरा के बारे रिसर्चर किया तो पता चला की ये एक बीमारी से उपजी है. ये परंपरा दरअसल, एक मानसिक बीमारी के कारण शुरू हुआ जिसे कुरु नाम से जाना जाता है. मानव विज्ञानी शर्ले लिंडेन बॉम ने डेली स्टार को बताया कि, जब फोर जनजाति के लोग से उन्होंने पूछा कि वो ऐसा क्यों करते हैं तो उन्हें जवाब दिया कि, हमने उन्हें खा लिया. इसके बाद उन्होंने इस पर रिसर्च किया तो पता चला कि, यह बीमारी एक लाइलाज न्यूरोलॉजिकल कंडीशन है, जो नर्वस सिस्टम को लगभग बंद कर देती है. कहा जाता है कि ये किसी इंफेक्शन के शिकार व्यक्ति के मस्तिष्क को खाने के वजह से आई होगी जो दूसरों में भी फैलती गई और आगे चलकर ये परंपरा बन गई.

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01 July 2024, 12:46 PM IST

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