जब तवायफों के कोठों से लेकर राजघरानों तक से मिला था AMU को चंदा – जानिए कैसे बनी ये ऐतिहासिक संस्था!
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी आज देश की एक बड़ी शिक्षा संस्था है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसे बनाने के लिए सर सैयद अहमद खान ने कितनी मेहनत की थी? चौंकाने वाली बात यह है कि उन्होंने इसके लिए तवायफों के कोठों से लेकर राजा-महाराजाओं तक से चंदा लिया था. पटियाला, बनारस जैसे बड़े राजघरानों से लेकर हैदराबाद के निजाम तक ने इस विश्वविद्यालय की नींव में मदद की. जानिए कैसे यह ऐतिहासिक संस्था 150 साल पहले चंदे और संघर्ष की बदौलत अस्तित्व में आई. पढ़ें पूरी कहानी!
Shocking Secret Of Aligarh University: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) का नाम सुनते ही दिमाग में एक शान और प्रतिष्ठा का ख्याल आता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस ऐतिहासिक विश्वविद्यालय की नींव रखने के लिए सर सैयद अहमद खान ने किस तरह से संघर्ष किया और चंदे जुटाने के लिए तवायफों के कोठों से लेकर राजा-महाराजाओं तक से मदद ली थी? ये कहानी सिर्फ संघर्ष और कड़ी मेहनत की नहीं, बल्कि उस वक्त के समाज और राजनीति की भी एक झलक है.
1875 में शुरू हुआ सपना
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 में एक कॉलेज के रूप में की गई थी, लेकिन 1920 में इसे यूनिवर्सिटी का दर्जा मिला. सर सैयद अहमद खान ने इस संस्था की नींव रखने के लिए कई सालों तक मेहनत की और इसके लिए धन जुटाने का बड़ा अभियान चलाया. उन्होंने न केवल देश के बड़े राजघरानों से बल्कि छोटे-छोटे गांवों से भी चंदे की अपील की.
तवायफों और राजघरानों से मिला चंदा
सर सैयद अहमद खान ने इस यूनिवर्सिटी के लिए चंदा जुटाने के लिए कई अनोखे रास्ते अपनाए उन्होंने भारत के विभिन्न हिस्सों से चंदा इकठ्ठा किया. उदाहरण के लिए, बनारस के राजा शंभू नारायण और पटियाला के महाराजा महिंद्रा सिंह साहब ने इस नेक काम में बड़ी मदद की. पटियाला से 58,000 रुपए और बनारस से 60,000 रुपए का दान मिला.
इतना ही नहीं, सर सैयद ने कई बार तवायफों के कोठों से भी मदद ली इस पर कुछ लोगों ने आलोचना की, लेकिन सर सैयद ने इसका विरोध करते हुए कहा कि वो इन पैसों का सही इस्तेमाल करेंगे, जैसे कि यूनिवर्सिटी में टॉयलेट बनवाने की योजना बनाई. इसके अलावा, उन्होंने नुक्कड़ सभाओं में जाकर भी चंदा इकठ्ठा किया.
निजाम का योगदान
लेकिन सबसे बड़ी मदद हैदराबाद के सातवें निजाम ने की थी. कहा जाता है कि उन्होंने इस यूनिवर्सिटी के निर्माण के लिए करीब 5 लाख रुपए का दान दिया, जो उस वक्त बहुत बड़ी रकम थी. यह दान इस यूनिवर्सिटी के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ.
आम जनता का योगदान
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना में केवल बड़े राजघरानों और शाही परिवारों का ही योगदान नहीं था, बल्कि हजारों आम लोगों ने भी छोटी-छोटी रकम दान दी. 25 रुपए तक का दान देने वालों की संख्या भी काफी थी. और जिन लोगों ने 500 रुपए या उससे अधिक दान दिया, उनके नाम सेंट्रल हॉल में उकेरे गए.
उस वक्त के पैसे की अहमियत
जब हम बात करते हैं पैसे की तो यह समझना जरूरी है कि उस वक्त 1 रुपया आज के हिसाब से बहुत ज्यादा था. उस समय भारत में 1 रुपए की वैल्यू 12 ग्राम चांदी के बराबर थी, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना में कुल कितनी रकम खर्च हुई होगी.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी आज एक प्रतिष्ठित संस्थान है, लेकिन इसके निर्माण के पीछे संघर्ष, चंदे और देश भर के लोगों का योगदान रहा. यह कहानी केवल शिक्षा के महत्व को नहीं दर्शाती, बल्कि यह भी बताती है कि जब एक अच्छा उद्देश्य सामने हो तो समाज के सभी वर्गों से सहयोग मिल सकता है. 150 साल पहले शुरू हुआ यह सफर आज भी जारी है और यूनिवर्सिटी का यह इतिहास हमें सिखाता है कि सही उद्देश्य और सामूहिक प्रयास से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है.