मुगल काल की वो शहजादी, 14 साल की उम्र में हर साल मिलता था ₹6 लाख, क्या रही वजह?
जहां आरा बेगम, शाहजहां और मुमताज महल की बड़ी बेटी, अपनी काबिलियत, प्रशासनिक दक्षता और कला के प्रति लगाव के लिए जानी जाती थी. मुमताज महल की मृत्यु के बाद, उन्हें ‘पादशाह बेगम’ की उपाधि मिली और उन्होंने साम्राज्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

जहां आरा बेगम, मुगल साम्राज्य के सम्राट शाहजहां और उनकी पत्नी मुमताज महल की सबसे बड़ी संतान थी. उन्हें अपनी काबिलियत, प्रशासनिक दक्षता और कला के प्रति लगाव के लिए जाना जाता था. महज 14 साल की उम्र में उन्हें सालाना 6 लाख रुपये का वजीफा प्राप्त हुआ था और वे अपनी संपत्ति के मामले में उस समय की सबसे अमीर शहजादी मानी जाती थी. उनका जीवन ना केवल प्रशासनिक मामलों में उनके योगदान के लिए, बल्कि उनके द्वारा दिल्ली के चांदनी चौक जैसी शानदार स्थापत्य संरचनाओं के निर्माण के लिए भी याद किया जाता है.
मुमताज महल की मौत के बाद का परिवर्तन
मुमताज महल की मौत के बाद, उनकी संपत्ति को उनके बच्चों में बांटा गया और जहां आरा को उसका आधा हिस्सा प्राप्त हुआ. 17 साल की उम्र में, उन्होंने अपनी मां की मृत्यु के बाद राजमहल की सर्वोच्च महिला के रूप में ‘पादशाह बेगम’ की उपाधि प्राप्त की. जहां आरा को ना केवल उच्चतम राजनीतिक और प्रशासनिक जिम्मेदारियां सौंपी गई, बल्कि उन्होंने अपनी भूमिका को इस प्रकार निभाया कि शाहजहां की सलाहकार के रूप में उनका योगदान अनमोल था.
प्रशासनिक क्षमता और वास्तुकला में योगदान
जहां आरा बेगम को अपनी प्रशासनिक क्षमता के लिए पहचाना जाता था. वे महल और दरबार की जिम्मेदारी संभालती थी और उनका गहरा असर मुगल प्रशासन पर पड़ा. इसके साथ ही, वे एक प्रमुख कला संरक्षक भी थी, जिन्होंने समय-समय पर अपनी कला नीतियों से सम्राट शाहजहां के साम्राज्य को संवारा. इसके अलावा, वे वास्तुकला के क्षेत्र में भी विशेष रूप से पारंगत थीं, और आज की दिल्ली के चांदनी चौक का डिज़ाइन उन्हीं के दिमाग की उपज था. इसके साथ ही, शाहजहांनाबाद शहर में कई महत्वपूर्ण इमारतों का निर्माण भी जहां आरा ने करवाया.
विवाह ना करने का फैसला
जहां आरा ने अपने जीवन में विवाह नहीं किया और अपने जीवन का ज्यादातर समय प्रशासनिक कार्यो और साम्राज्य के विकास में समर्पित किया. 67 साल की उम्र में उनका निधन हुआ और उन्हें हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह के पास दफनाया गया. जहां आरा का जीवन ना केवल एक शहजादी के रूप में देखा गया, बल्कि उनकी बुद्धिमानी, संघर्ष और साम्राज्य के प्रति समर्पण ने उन्हें एक प्रेरणा का स्रोत बना दिया.