केरल का वो मंदिर जहां की जाती है कुत्तों की पूजा, होता है नामकरण
Parassini Madappura Sree Muthappan Temple: केरल के कन्नूर जिले में पारसिनी मदाप्पुरा श्री मुथप्पन मंदिर कुत्तों को समर्पित है. इस मंदिर में कुत्तों की पूजा होती है. इसके अलावा दूर-दराज से लोग यहां अपने पालतू कुत्तों के नामकरण के लिए भी आते है.
Parassini Madappura Sree Muthappan Temple: हमारे देश में ऐसे कई मंदिर हैं जो अपनी अजीबोगरीब परंपराओं और रीति-रिवाजों की वजह से जाने जाते हैं. कुत्ते असल में मनुष्य के सबसे अच्छे दोस्त हैं. यही वजह है कि कुत्तों को हमारे दिलों में एक विशेष स्थान मिलता है.
दक्षिण भारतीय राज्य केरल में एक मंदिर है जहां कुत्तों को पूजा जाता है. केरल के कन्नूर जिले में पारसिनी मदाप्पुरा श्री मुथप्पन मंदिर कुत्तों को समर्पित है. इस मंदिर में कुत्तों की पूजा होती है और उन्हें भगवान का दर्जा दिया जाता है.
कुत्तों को समर्पित है केरल का ये मंदिर
केरल के कन्नूर शहर से लगभग 10 किमी दूर वलपट्टनम नदी के तट पर स्थित पारसिनी मदप्पुरा श्री मुथप्पन मंदिर कुत्तों को समर्पित है. ये मंदिर रीति-रिवाजों, परंपराओं और मान्यताओं के एक विचित्र मिश्रण है.
कुत्तों को दिया जाता है पहला भोग
पारसिनी मंदिर की पहचान मंदिर के द्वार के बाहर खड़े कुत्तों की दो कांस्य मूर्तियों से होती है. भक्तों का मानना है कि कुत्ता मंदिर के देवता श्री मुथप्पन का पसंदीदा जानवर है. देवता श्री मुथप्पन को स्थानीय समुदाय भगवान शिव और विष्णु का अवतार मानते हैं. यहां पूजा के बाद हर रोज प्रसाद का पहला भोग कुत्ते को दिया जाता है.
मंदिर का इतिहास
परासिनी मंदिर का इतिहास मालाबार क्षेत्र में दमनकारी रीति-रिवाजों से जुड़ा हुआ है. जिसने सदियों से निचली जातियों के सदस्यों को समाज में सम्मान और स्वतंत्रता से वंचित रखा था. लोग श्री मुथप्पन को सीमांत निवासियों के मुक्तिदाता के रूप में देखते हैं. श्री मुथप्पन का पारंपरिक रूप से जानवरों, विशेषकर कुत्तों के साथ घनिष्ठ संबंध था्. पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुत्ते श्री मुथप्पन से अविभाज्य थे. वह सामाजिक बुराइयों से लड़ने के लिए मालाबार क्षेत्र में आए थे.
सूखी मछली का बनता है भोग
हर सुबह और शाम को, मंदिर में नायुत्तु (कुत्तों को खाना खिलाने का एक समारोह) आयोजित किया जाता है. भोग सूखी मछली से बनाया जाता है. मंदिर परिसर और आसपास के कुत्ते नायुत्तु के लिए आते हैं. वहां काम कर रहे लोगों का कहना है कि कुत्तों को पता होता है कि खाना खिलाने का समय कब हो गया है."
कुत्तों का किया जाता है नामकरण
इस मंदिर में दूर दूर से लोग अपने पालतू कुत्तों के नामकरण के लिए आते हैं. मंदिर में तिरुवप्पन वेल्लट्टम परंपरा के दौरान सभी कुत्तों का नामकरण किया जाता है. कुत्तों के नामकरण के लिए मंदिर प्रशासन की ओर से कोई फीस भी नहीं ली जाती है. तिरुवप्पन वेल्लट्टम परंपरा में मंदिर के पुजारी पहले कुत्तों के कानों में कुछ फुसफुसाते हैं और फिर उन्हें प्रसाद खिला देते हैं. इसके बाद कुत्तों को उनके मालिकों को सौंप दिया जाता है. स्थानीय लोगों के मुताबिक हर शनिवार और रविवार जहां लोगों की भीड़ रहती है.