अरुणाचल प्रदेश की वो जनजाति जहां एक खास कारण से महिलाएं बिगाड़ती हैं खुद का चेहरा
अरुणाचल प्रदेश की यह बात जानकर आप भी हैरान रह जायेंगे, दरअसल अरुणाचल प्रदेश में कुछ जनजातियां ऐसी भी हैं जहां पर महिलाओं को जानबूझकर बदसूरत बनाया जाता है साथ ही उनकी नाक में लकड़ी डाली जाती है.
हाइलाइट
- अरुणाचल प्रदेश की यह बात जानकर आप भी हैरान रह जायेंगे.
दुनिया कई धर्मों के लोग जमीन पर रहते हैं और इसी कारण से हमेशा डाइवर्सिटी के लिए जाना जाता है. हिंदू मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, यहूदी, पारसी आदि से परे यहां कई आदिवासी जनजातियां निवास करती हैं. यदि हम बात करें डाइवर्सिटी की तो भारत की कई जनजातियां ऐसी हैं जो अपने अनोखे कल्चर के लिए जानी जाती है. ?
क्या थी दर्दनाक परंपरा?
जनजाति की महिलाओं के चेहरे पर एक टैटू होता है जिसे टिप्पी कहा जाता है जो कि सुअर की चर्बी और चिमनी से बनाया जाता है. इसे कांटेदार पौधे की मदद से चेहरे पर खींचा जाता है. कांटे को पहले त्वचा पर रखा और फिर एक छोटे हथौड़े से तब तक मारा जाता था जब तक चेहरे पर स्याही न लग जाएं. यह काली स्याही नाक से लेकर होंठ तक खींची जाती थी. वहीं लकड़ी महिलाओं की नाक में डालने के लिए जंगल से लाई जाती थी.
क्यों बिगाड़ना पड़ा महिलाओं को खुद का चेहरा?
माना जाता है कि जीरों घाटी में अपातानी जनजाति की अन्य जनजातियों के साथ सह- अस्तिव में थी. कहा जाता है कि अरुणाचल प्रदेश में महिलाएं अपनी सुंदरता के लिए जानी जाती थीं. और इसी कारण से पुरुष महिलाओं का अपहरण कर लिया करते थे. हर रोज पुरुष किसी न किसी महिला का अपहरण कर लेते थे.
यह घटना लगातार ऐसे ही काफी समय तक चलती रही जब महिलाएं अधिक परेशान हो गई तो उन्होंने पुरुषों से बचने के लिए चेहरे पर तरह-तरह के प्रयोग किए जिससे उनका चेहरा खराब हो गया. यह उपाय भले ही कुछ दिनों तक चला लेकिन महिलाओं के स्वास्थ के लिए यह बड़ी परेशानी बन गया. धीरे धीरे इसका विरोध होने लगा सन 1970 में सरकार ने इस परंपरा को बंद कर दिया.बताया जाता है कि जो नई पीढ़िया हैं उन्हें नाक में ठेपी लगाने की परंपरा यापिंग हर हुर्लो का दर्द नहीं झेलना पड़ता है.