महाभारत के सबसे ज्ञानी व्यक्ति... धृतराष्ट्र और पांडु के भाई ही थे विदुर, फिर भी क्यों नहीं बने राजा?

महाभारत में धृतराष्ट्र के दो भाई थे - विदुर और पांडु, लेकिन क्या आपको पता है कि विदुर, जो थे सबसे बुद्धिमान और नीतिज्ञ, कभी राजा क्यों नहीं बने? उनकी चुप्पी और राज्य के लिए समर्पण के पीछे एक दिलचस्प कारण छिपा है. जानिए इस गूढ़ सवाल का जवाब और समझिए महाभारत के इस अनकहे पहलू को!

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Edited By: Aprajita

Mahabharat: महाभारत की कहानी में कौरव और पांडवों की लड़ाई, उनके संघर्ष, और उनके परिवार की घटनाएँ सभी जानते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि धृतराष्ट्र और पांडु के भाई, विदुर, कभी राजा क्यों नहीं बने?

धृतराष्ट्र, जो कि हस्तिनापुर के राजा थे, उनके दो भाई थे - पांडु और विदुर. धृतराष्ट्र की कहानी विशेष रूप से दिलचस्प है क्योंकि वह नेत्रहीन थे और इसी कारण उनकी योग्यताओं पर सवाल उठाए गए थे. धृतराष्ट्र के पिता, महाराज विचित्रवीर्य, और उनकी मां अंबिका के साथ महर्षि व्यास ने उन्हें जन्म दिया था. हालांकि धृतराष्ट्र के अलावा, उनके दोनों भाई विदुर और पांडु भी बेहद महत्वपूर्ण थे.

विदुर का जन्म और उनका बुद्धिमान व्यक्तित्व

विदुर का जन्म महर्षि व्यास और परिश्रमी के बीच हुआ था. परिश्रमी रानी अंबिका और अंबालिका की दासी थीं. इस वजह से विदुर का जन्म शूद्र वर्ण में हुआ था. जबकि पांडु और धृतराष्ट्र राजाओं की तरह क्षत्रिय वर्ग से थे, विदुर को शूद्र जाति का माना गया. इसके कारण वह राजा बनने के लिए योग्य नहीं माने गए.

इसके बावजूद, विदुर तीनों भाइयों में सबसे बुद्धिमान और नीतिज्ञ थे. वह अपने समय के सबसे कुशल मंत्री और सलाहकार थे. उनका दूरदर्शिता और निर्णय लेने की क्षमता बेहद चर्चित थी. बावजूद इसके, उन्हें कभी राजा बनने का मौका नहीं मिला.

विदुर को क्यों नहीं मिला सिंहासन?

विदुर का नाम हमेशा महाभारत के सबसे बुद्धिमान व्यक्तियों में लिया जाता है, लेकिन फिर भी उन्हें सिंहासन पर बैठने का अवसर क्यों नहीं मिला? इसका कारण था उनकी जन्मगत स्थिति. उनका जन्म दासी से हुआ था और उन्हें शूद्र जाति का माना गया. उस समय केवल क्षत्रिय वर्ग को ही राजा बनने का अधिकार था, और इसी कारण विदुर को कभी राजगद्दी नहीं मिली.

इसके अतिरिक्त, विदुर खुद भी कभी राज सत्ता की इच्छा नहीं रखते थे. उनका हमेशा यही मानना था कि वह एक मंत्री के रूप में अपने राज्य की सेवा करें. उनका उद्देश्य केवल राज्य के कल्याण के लिए काम करना था, न कि सत्ता प्राप्त करना.

राजा बनने की इच्छा नहीं थी

विदुर का जीवन हमेशा राज्य और समाज की भलाई के लिए समर्पित रहा. उन्होंने कभी सत्ता के लिए कोई लालसा नहीं दिखाई. वह हमेशा एक सलाहकार के रूप में काम करते रहे और महाभारत के महत्वपूर्ण मोड़ों पर उन्होंने अपने बुद्धिमत्ता से कई कड़े फैसले लिए. उनकी यही नीतिशक्ति उन्हें एक महान विचारक और मार्गदर्शक बनाती है, लेकिन कभी उन्हें राजा बनने का अवसर नहीं मिला.

धृतराष्ट्र और पांडु के भाई, विदुर, महाभारत में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनका जीवन और कार्य कई मायनों में प्रेरणादायक है. विदुर ने कभी राजगद्दी की इच्छा नहीं की और अपने जन्म और सामाजिक स्थिति को कभी अपने रास्ते की रुकावट नहीं बनने दिया. उनका उद्देश्य हमेशा समाज और राज्य की भलाई करना था.

यहां से हमें यह सीखने को मिलता है कि व्यक्ति का मूल्य उसकी जाति या जन्म से नहीं, बल्कि उसकी बुद्धि, कर्म और नीयत से मापा जाता है.

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03 April 2025, 03:05 PM IST

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