Wedding Tradition History: किसने बनाई शादी करने की प्रथा, जानें इसके पीछे का दिलचस्प इतिहास

Wedding Tradition:हमारे देश में शादी के बंधन को एक पवित्र बंधन माना जाता है. जब एक लड़का एक लड़की शादी के पवित्र बंधन में बंध जाते हैं तो वो सात जन्मों के लिए एक दूसरे के हो जाते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि शादी करने का रिवाज बनाया किसने है, इसकी शुरुआत कैसे हुई है, अगर नहीं तो चलिए जानते हैं.

Deeksha Parmar
Edited By: Deeksha Parmar

Wedding Tradition History: विवाह एक ऐसी प्रथा है जिसमें दो लोगों को जीवन भर के बंधन में बांधा जाता है. विवाह एक ऐसी परंपरा है जिसमें दो लोगों के साथ दो परिवार को भी एक बंधन में बांधता है या यूँ कह ले कि विवाह की प्रथा रिश्ते को सामाजिक और धार्मिक मान्यता देने के लिए बनाया गया है. लेकिन आपके मन में कभी न कभी ये सवाल जरूर आया होगा की आखिर इस परंपरा को शुरू किसने किया था सबसे पहले शादी किसने की. तो चलिए जानते हैं  शादी की परंपरा के पीछे का इतिहास.

कैसे शुरू हुई विवाह की परंपरा-

कहा जाता है कि, शादी की प्रथा जैसा पहले कुछ भी नहीं था. पहले पुरुष और स्त्री दोनों स्वतंत्र रहते थे. हालांकि पहले के समय में पुरुष किसी भी स्त्री को उठाकर ले जाते थे. इसका उल्लेख महाभारत की एक कथा में मिलता है. महाभारत के एक कथा के अनुसार एक समय उद्दालक ऋषि के पुत्र श्वेतकेतु ऋषि अपने आश्रम में बैठ हुए थे. तब वहां एक ऋणि आया और उनकी माता को उठाकर ले गए. ये सब देखकर उन्हें बहुत गुस्सा आया. लेकिन उनके पिता ने उन्हें समझाया कि प्राचीन काल से यह नियम चलते आ रहा है. हालांकि अपने पिता की बात से श्वेतकेतु ऋषि सहमत नहीं हुए और वह विरोध करते हुए बोले कि यह पाशविक प्रवृत्ति है. यानी जानवरों की भांति जीवन जीने के समान है. जिसके बाद उन्होंने विवाह की परंपरा बनाया.

श्वेतकेतु ऋषि ने विवाह की परंपरा बनाते हुए कहा कि जो भी स्त्री विवाह के पवित्र बंधन में बंधने के बाद किसी गैर पुरुष के पास जाती है तो उस स्त्री को गर्भ हत्या करने का पाप लगेगा. और जो पुरुष अपनी पत्नी को छोड़कर किसी दूसरी स्त्री के पास जाएगा उसे भी इस पाप का भागी बनना पड़ेगा. इसके अलावा श्वेतकेतु ऋषि ने कहा कि विवाह करने के पश्चात स्त्री और पुरुष अपनी गृहस्थी को मिलकर चलाएंगे.

श्वेतकेतु ऋषि ने बनाई शादी की प्रथा-

श्वेतकेतु ऋषि के बाद महर्षि दीर्घतमा ने शादी की एक और परंपरा का निर्माण किया. इस परंपरा में पत्नियों को जीवन भर अपने पति के अधीन रहने को कहा गया. जिसके बाद स्त्री अपने पति की मृत्यु के बाद खुद को आग में जलाने लगी इस प्रथा को सती प्रथा कहा जाने लगा. शादी की परंपरा लागू करने के बाद आर्य समाज के लोग एक से अधिक शादी करने लगे जिसके बाद शादी के कई नए नियम बनाया गया. उस दौरान शादी दो प्रकार के होते थे. पहला युद्ध करके या कन्या को बहला फुसला कर, दूसरा यज्ञ के समय कन्या को दक्षिणा में दान देकर. इसके बाद पिता को अपनी बेटी के लिए योग्य वर चुनने का अधिकार दिया गया. विवाह 8 प्रकार के होते हैं जिसमें दैव्य ब्रह्मा, आसुर, ब्रह्म, प्राजापत्य, गंधर्व विवाह, राक्षस विवाह, पैशाच विवाह शामिल है. हालांकि ज्यादातर आजकल ब्रह्म विवाह प्रचलित है.

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05 July 2023, 04:28 PM IST

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