कौन 'गपागप' खा रहा है सोना? जिसके लिए वैज्ञानिकों ने कहा- अब खानों से यहीं निकालेंगे गोल्ड
ऑस्ट्रेलिया के पर्थ में वैज्ञानिकों ने एक ऐसे कवक की खोज की है, जो सोने का चयापचय कर सकते हैं, जिससे खनन की पारंपरिक प्रक्रिया में क्रांति आ सकती है. इस खोज से मेटाबोलिक माइनिंग का रास्ता खुल सकता है, जिसमें जीवित जीवों का उपयोग कर खनिजों को निकाला जाएगा.

आपने सोने के खनन के पारंपरिक तरीकों के बारे में तो सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसा तरीका ढूंढ निकाला है, जो पूरी प्रक्रिया को बदल सकता है? पर्थ (ऑस्ट्रेलिया) के दक्षिण में बोडिंगटन क्षेत्र में शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक ऐसी खोज की है, जो आपको चौंका देगी. शोधकर्ताओं का दावा है कि उन्होंने एक विशेष प्रकार के कवक का पता लगाया है, जो सोने का चयापचय कर सकते हैं. इस खोज से ना केवल जीव विज्ञान, बल्कि खनन उद्योग में भी क्रांति आ सकती है. भविष्य में, ये कवक खानों से सोना निकालने के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं और ये संभावना अंतरिक्ष में स्थित खानों तक भी पहुंच सकती है.
वैज्ञानिकों का मानना है कि ये खोज खनन की दुनिया में एक नया युग ला सकती है, जहां पारंपरिक खनन से होने वाले प्रदूषण से बचा जा सकेगा. इतना ही नहीं, कवक का उपयोग मेटाबोलिक माइनिंग के क्षेत्र में भी किया जा सकता है, जिससे खनिजों को बिना खोदे निकाला जा सकता है.
कवक द्वारा सोने का चयापचय
इस खोज के तहत, वैज्ञानिकों ने पाया है कि फ्यूजेरियम ऑक्सीस्पोरम नामक कवक अपने आस-पास से सोना निकाल सकते हैं और उसे अपनी संरचना में शामिल कर सकते हैं. ये प्रक्रिया अब तक वैज्ञानिकों के लिए एक आश्चर्य रही है, क्योंकि सोना रासायनिक रूप से काफी निष्क्रिय होता है. ऐसे में, ये देखना कि कवक इसे अपने चयापचय में कैसे शामिल कर रहे हैं, वाकई एक अनोखा अनुभव है.
ऑस्ट्रेलिया में सोने का उत्पादन दुनिया में दूसरे स्थान पर है और यहीं कारण है कि यहां के शोधकर्ताओं ने इस कवक को खनन में उपयोगी बनाने की दिशा में तेजी से काम करना शुरू किया है. उनका उद्देश्य ये जानना है कि क्या ये कवक सोने के खनन की प्रक्रिया में इस्तेमाल हो सकते हैं.
जीवित जीवों से खनिज निकालने की संभावना
कवक के चयापचय के गुणों का अध्ययन करने के बाद, वैज्ञानिकों का मानना है कि मेटाबोलिक माइनिंग के क्षेत्र में ये एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है. मेटाबोलिक माइनिंग का मतलब है कि खनिजों को निकालने के लिए जीवित जीवों का उपयोग किया जाए. इन कवकों को आनुवंशिक रूप से संशोधित किया जा सकता है, ताकि वे कई प्रकार के खनिजों को संसाधित कर सकें. इसके साथ ही, इन कवकों को चरम परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए भी अनुकूलित किया जा सकता है.
अगर ये तरीका सफल होता है, तो पारंपरिक खनन विधियों को बदलने का मौका मिल सकता है. पारंपरिक खनन में ना केवल भारी प्रदूषण होता है, बल्कि इसका पर्यावरण पर भी गहरा असर पड़ता है. जबकि इस नए तरीके से खनिजों को निकालने में प्रदूषण और ऊर्जा की खपत कम हो सकती है.
जैव प्रौद्योगिकी और पारंपरिक खनन के बीच का अंतर
इस खोज का सबसे बड़ा फायदा ये है कि ये पारंपरिक खनन विधियों से उत्पन्न होने वाले पर्यावरणीय प्रभाव को कम कर सकता है. जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करने से हम खनिजों को बिना भूमि को खोदें या भारी प्रदूषण फैलाए निकाल सकते हैं. इससे ना केवल पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा होगी, बल्कि खनन प्रक्रिया भी सस्ती और प्रभावी हो सकती है.