बजट भाषण के दौरान शायरियां पढ़ने की पुरानी है परंपरा!


2024/02/01 06:51:45 IST

1 फरवरी 2024 को पेश होगा अंतरिम बजट

    1 फरवरी 2024 को बजट पेश करने वाला है, बजट ब्रीफकेस से लेकर बजट भाषण के दौरान शायरी और कविताएं पढ़ने का इतिहास पुराना है.

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मनमोहन सिंह (साल 1991-92 बजट)

    'यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामोनिशान हमारा.'

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मनमोहन सिंह (साल 1992-93 बजट)

    'तारीखों में कुछ ऐसे भी मंजर हमने देखे है, कि लम्हों ने खता की थी और सदियों ने सजा पाई'

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यशवंत सिन्हा (साल 2001-02 बजट)

    'तकाजा है वक्त का कि तूफान से जूझो, कहां तक चलोगे किनारे-किनारे'

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अरुण जेटली (साल 2016-17 बजट)

    'इस मोड़ पर घबरा के थम न जाइए आप, जो बात नयी है उसे अपनाइए आप डरते हैं नई राह पे, क्यों चलने से हम आगे-आगे चलते हैं आजाइए आप'

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अरुण जेटली (साल 2016-17 बजट)

    'कुछ तो फूल खिलाए हमने, और कुछ फूल खिलाने हैं, मुश्किल है ये बाग में अब तक, कांटे कई पुराने हैं...'

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निर्मला सीतारमण (साल 2021-22 बजट)

    'उम्मीद एक ऐसा पक्षी है जो प्रकाश को महसूस करता है और अंधेरे में भी चहचहाता है.'

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