बजट भाषण के दौरान शायरियां पढ़ने की पुरानी है परंपरा!
1 फरवरी 2024 को पेश होगा अंतरिम बजट
1 फरवरी 2024 को बजट पेश करने वाला है, बजट ब्रीफकेस से लेकर बजट भाषण के दौरान शायरी और कविताएं पढ़ने का इतिहास पुराना है.
Credit: Social Mediaमनमोहन सिंह (साल 1991-92 बजट)
'यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहां से, अब तक मगर है बाकी नामोनिशान हमारा.'
Credit: Social Mediaमनमोहन सिंह (साल 1992-93 बजट)
'तारीखों में कुछ ऐसे भी मंजर हमने देखे है, कि लम्हों ने खता की थी और सदियों ने सजा पाई'
Credit: Social Mediaयशवंत सिन्हा (साल 2001-02 बजट)
'तकाजा है वक्त का कि तूफान से जूझो, कहां तक चलोगे किनारे-किनारे'
Credit: Social Mediaअरुण जेटली (साल 2016-17 बजट)
'इस मोड़ पर घबरा के थम न जाइए आप,
जो बात नयी है उसे अपनाइए आप डरते हैं नई राह पे,
क्यों चलने से हम आगे-आगे चलते हैं आजाइए आप'
Credit: Social Mediaअरुण जेटली (साल 2016-17 बजट)
'कुछ तो फूल खिलाए हमने, और कुछ फूल खिलाने हैं,
मुश्किल है ये बाग में अब तक, कांटे कई पुराने हैं...'
Credit: Social Mediaनिर्मला सीतारमण (साल 2021-22 बजट)
'उम्मीद एक ऐसा पक्षी है जो प्रकाश को महसूस करता है और अंधेरे में भी चहचहाता है.'
Credit: Social Media View More Web Stories