Tehzeeb Hafi Poetry: दिल खुश कर देंगे तहज़ीब हाफ़ी के ये बेहतरीन शेर
Tehzeeb Hafi
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ,
पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे
Tehzeeb Hafi
दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगर,
तू जो सुन ले तो मुख़्तसर भी हूँ
Tehzeeb Hafi
वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं,
वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता
Tehzeeb Hafi
मैं जिस के साथ कई दिन गुज़ार आया हूँ,
वो मेरे साथ बसर रात क्यूँ नहीं करता
Tehzeeb Hafi
मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर,
ये क्या कि घर की उदासी भी साथ हो गई है
Tehzeeb Hafi
गली से कोई भी गुज़रे तो चौंक उठता हूँ,
नए मकान में खिड़की नहीं बनाऊँगा
Tehzeeb Hafi
मैं दुश्मनों से अगर जंग जीत भी जाऊँ,
तो उन की औरतें क़ैदी नहीं बनाऊँगा
Tehzeeb Hafi
मैं एक फ़िल्म बनाऊँगा अपने 'सरवत' पर,
और इस में रेल की पटरी नहीं बनाऊँगा
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