वीर कुंवर सिंह जिन्होंने अंग्रेजों को चटाई थी धूल


2024/01/02 13:17:50 IST

पुरस्कार

    उस व्यक्ति को 25 हजार रुपये पुरस्कार में दिए जाएंगे, जो कुंवर सिंह को जीवित ब्रिटिश सरकार को सुपुर्द करेगा.

घोषणा

    गवर्नर जनरल भारत सरकार के सचिव के हस्ताक्षर से 12 अप्रैल, 1858 की इस बात की खुलेआम घोषणा की गई.

अंग्रेज सरकार

    इस घोषणा से यह साबित होता है कि अंग्रेज सरकार इस महानायक से कितना डरी हुई थी. वह उन्हें जीवित पकड़ना चाहती थी पर असफल रही.

‘बाबू साहब’

    कुंवर सिंह को ‘बाबू साहब’ और ‘तेगवा बहादुर’ के नाम से जाना जाता है. होली के अवसर पर भोजपुरी भाषी एक गीत गाते है-‘बाबू कुंवर सिंह तेगवा बहादुर, बंगला में उड़ेला अवीर’

विद्रोह

    27 जुलाई, 1857 को दानापुर छावनी से विद्रोह कर आए सैनिकों ने बाबू कुंवर सिह का नेतृत्व स्वीकार किया.

सेना

    ब्वायल कोठी/आरा हाउस, जिसमें अंग्रेज छिपे थे उसे घेर लिया. अंग्रेजों की रक्षा हेतु 29 जुलाई को डनबर के नेतृत्व में दानापुर से सेना भेजी गई.

सूचना

    डनबर के मारे जाने की सूचना मिलने पर मेजर विसेंट आयर, जो स्टीमर से प्रयागराज जा रहा था, बक्सर से वापस आरा लौटा.

‘बीबीगंज’ का युद्ध

    इसके बाद दो अगस्त को चर्चित ‘बीबीगंज’ का युद्ध हुआ. आरा पर नियंत्रण के बाद आयर ने 12 अगस्त को जगदीशपुर पर आक्रमण कर दिया.

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