हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी...पढ़ें अल्लामा इक़बाल के शेर


2024/08/10 11:36:46 IST

जहाँ

    सितारों से आगे जहाँ और भी हैं, अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

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इश्क़

    तिरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ, मिरी सादगी देख क्या चाहता हूँ

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परवाज़

    तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा, तिरे सामने आसमाँ और भी हैं

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निगाह

    फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का, न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है

सुरूर

    इल्म में भी सुरूर है लेकिन, ये वो जन्नत है जिस में हूर नहीं

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ख़ुदा

    हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी, ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़

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प्यार

    सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर मुझ को न ऐसे प्यार से देखा करे कोई

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