Majrooh Sultanpuri Sher:


2023/11/13 16:06:31 IST

मजरूह के शेर

    मुझे ये फ़िक्र सब की प्यास अपनी प्यास है साक़ी, तुझे ये ज़िद कि ख़ाली है मिरा पैमाना बरसों से.

मजरूह के शेर

    तुझे न माने कोई तुझ को इस से क्या मजरूह, चल अपनी राह भटकने दे नुक्ता-चीनों को.

मजरूह के शेर

    सर पर हवा-ए-ज़ुल्म चले सौ जतन के साथ, अपनी कुलाह कज है उसी बाँकपन के साथ.

मजरूह के शेर

    जला के मिशअल-ए-जाँ हम जुनूँ-सिफ़ात चले, जो घर को आग लगाए हमारे साथ चले.

मजरूह के शेर

    वो आ रहे हैं सँभल सँभल कर नज़ारा बे-ख़ुद फ़ज़ा जवाँ है, झुकी झुकी हैं नशीली आँखें रुका रुका दौर-ए-आसमाँ है.

मजरूह के शेर

    फ़रेब-ए-साक़ी-ए-महफ़िल न पूछिए 'मजरूह', शराब एक है बदले हुए हैं पैमाने.

मजरूह के शेर

    सैर-ए-साहिल कर चुके ऐ मौज-ए-साहिल सर न मार, तुझ से क्या बहलेंगे तूफ़ानों के बहलाए हुए.

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